Thursday 12 June 2014

Sai baba of shirdi sai stock present some kind of name

कहते हैं कि शिरडी के साईं बाबा को सबसे पहले नीम के पेड़ के नीचे ध्यानमुद्रा में लीन, सबसे पहले शिरडी के गांव में नाना चोपदार की बूढ़ी मां ने देखा था। वह उस समय सोलह वर्ष के थे और ध्यानमुद्रा में लीन थे। उनके मुख मंडल में अनूठा तेज और शांति थी। उन्हें सबसे पहले साईं नाम भगत म्हालसापति ने दिया था।

उनके व्यक्तित्व में एक चुंबकीय आकर्षण था। इस कारण लोगों की दिन-प्रतिदिन उनके बारे में जानने की इच्छा बढ़ती गई तब एक दिन आश्चर्यजनक घटना घटी। एक भक्त को भगवान खण्डोवा का संचार हुआ और वह बहुत खुश हो गया।

उस समय शिरड़ी में कुछ व्यक्तियों ने उससे पूछा कि हे भद्रजन आप यह बताने की कृपा करें की शिरडी में जो बालक ध्यान में लीन है। ये किस पिता की संतान है और शिरडी में कहां से आए हैं?

तब उस भक्त ने कहा कि भगवान खण्डोवा ने एक मुख्य स्थान पर खोदने का आदेश दिया है। लोगों द्वारा उस स्थान को खोदने पर एक बड़ी शिला के नीचे ईंटों के स्तम्भ दिखाई दिए तब उस बड़ी पत्थर की शिला को हटाया गया तो एक लंबी सी कतार का बरांडा दिखाई पड़ा जिसके अंदर एक गुफा थी जिसके चारों कोने पर दीप जल रहे थे। यह एक कमरा था जो तहखाना था।

जब लोगों ने उस बालक से पूछा तो उसने बताया कि यह स्थान उसके गुरु कहा है और लोगों को उस पवित्र स्थान की रक्षा करनी चाहिए। लोगों ने उस स्थान को वही बंद कर दिया। साईं उसी के पास लगे नीम के पेड़ के नीचे बैठे रहते थे। कहते हैं बाबा उस समय अंतध्यान हो गए। दूसरी बार जब साईं बाबा सदा के लिए पधारे तो फिर अपने दीर्ध जीवनकाल में शिरडी छोड़कर कहीं नहीं गए।

उसी समय औरंगाबाद जिले में धूप नाम का एक छोटा सा गांव है। जहां चांद पाटिल ना का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति रहता था। उस समय औरंगाबाद जिला निजाम स्टेट में आता था।

एक बार चांद पाटिल के भाई क लड़के की शादी थी और बारात शिडी आने वाली थी। फकीर उस शादी में अन्य अतिथिगणों के साथ आए। भगत म्हालसापति के खेत के किनारे भगवान खण्डोवा के मंदिर के पास बारात के लोग उतेर।

बैलगाड़ियों से एक-एक करके उतर रहे थे और जब बाबा उतरे तो उन्हें देखते ही भगत म्हालसापति ने उत्साहित हो उनका स्वागत किया और उन्हें साईं कहकर सम्बोधित किया। साईं का अर्थ होता है स्वागत करना। इसके बाद सभी भक्त लोग बाबा को साईं बाबा कहने लगे।

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