Monday 23 June 2014

Spirituality-and-music

हमारे दर्शन में नाद को ब्रह्म माना गया है। नाद मतलब ध्वनि और ध्वनि मतलब संगीत क्योंकि शोर और आवाज़ के बीच बहुत फर्क है, फासला है। आवाज़ का मतलब ध्वनि से है। संगीत ध्वनि का ही नाजुक, खुशनुमा हिस्सा है।

वैसे तो हर धर्म में आराधना-उपासना की एक खास पद्धति हुआ करती है, लेकिन संगीत उसका एक अहम हिस्सा हुआ करता है। चाहे आप उसे कुछ भी कह लें ध्यान का साधना कह लें या फिर आराधना का तरीका, संगीत उसका हिस्सा होता है।

अमूमन मंदिरों में या फिर घरों में पूजा या फिर किसी भी दूसरी तरह के धार्मिक अनुष्ठानों में इन सारे वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है। जिन घरों में मंदिर हैं, उन घरों में गरूड़जी और मंजीरा मंदिरों का एक अहम हिस्सा हुआ करते हैं। संगीत हमारे जीवन की अंतर्धारा है। हर अवसर पर शगुन, शुभ और उत्सव की अभिव्यक्ति संगीत के माध्यम से की जाती है।

    जप : यदि नाम ही जपा जा रहा है तो उसे भी सस्वर किया जाता है।

    मंत्रजाप : मंत्रों का जाप तो सस्वर होता ही है। एक विशेष लय में मंत्रजाप थोड़ी देर में सुनने वाले और जपने वालों को स्थिर मनोदशा में ले जाने में कामयाब हुआ करता है।

    भजन : ईश्वर की भक्ति में भजन गाना एक तरह से ध्यान में जाने का ही उपक्रम है। भक्ति में लीन होने का खुद में डूब जाने का या फिर यूं कह लें कि सबसे अलग हो जाने में भजन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।

    आरती : सस्वर आरती... पूजा के समापन की परंपरा है। ये भी संगीत का ही एक रूप है। आरती पूजा के पूर्णाहुति मानी जानी चाहिए। औपचारिक तौर पर पूजा का समापन।

    सामूहिक कीर्तन : भजन से आगे बढ़कर कीर्तन भी हमारे यहां भक्ति का एक रूप है। जब समूह में भजन गाए जाते हैं, वाद्य-यंत्रों के साथ तो वह कीर्तन का रूप ले लेता है। ये सामूहिक ध्यान का सर्वोत्तम पद्धति है।

ये तो सारे धार्मिक अनुष्ठानों के हिस्से हैं, लेकिन हमारी परंपरा और संस्कृति का संगीत से गहरा संबंध है। जीवन के हर हिस्से में संगीत उत्साह और उत्सव की अभिव्यक्ति संगीत के माध्यम से हुआ करती है।

शायद दुनिया भर में हर कहीं संगीत भीतर के उत्साह का व्यक्त करने का माध्यम हुआ करता है। किस तरह हमारे यहां हर शुभ अवसर के लिए खास तरह के संगीत की व्यवस्था है, ये सिद्ध करता है कि संगीत सिर्फ मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह आत्मा का परिष्कार है।

    गणपति : शादी के शगुन गीतों की शुरुआत गणपति से हुआ करता है। हमारे यहां गणपति की स्तुति से हर शुभ अवसर की शुरुआत की जाती है। तो शादी के मौके पर गणपति गाए जाने की परंपरा शुभ अवसर पर उन्हें आमंत्रित करना है।

    बन्ना-बन्नी : शादी के संगीत का अहम हिस्सा रहा है। अब चाहे इसकी जगह महिला संगीत ने ले ली है, लेकिन बन्नाा-बन्नाी गाया जाना भी विवाह उत्सव के उत्साह की अभिव्यक्ति है।

    मेंहदी : मेंहदी गीत भी विवाह-संगीत की एक परंपरा है।

    विदाई : विदाई गीत एक किस्म के कैथार्सिस का तरीका है। बेटी की विदाई पर चूंकि बेटी सहित परिजनों का मन भरा हुआ होता है, ऐसे में माहौल को हल्का करने के लिए और उस विछोह को व्यक्त करने के लिए विदाई गीत गाए जाते हैं। विदाई गीतों में खासतौर पर बेटी को नए घर में रहने, इस घर में रहने की यादें और उसके साथ के दिनों में प्रेम और स्मृति की अभिव्यक्ति की जाती है।

हमारे जीवन के हर हिस्से में संगीत का शुमार यूं ही नहीं है। असल में संगीत उस नाद ब्रह्म का हिस्सा है, जिसे हमने एक विधा के तौर पर ईजाद किया है।

संगीत का लक्ष्य सिर्फ मनोरंजन नहीं है, ये ध्यान की एक विधि है, अध्यात्म के चरम पर पहुंचने और आनंद की अनुभूति का साधन है... यहां से परमात्मा के अहसास का रास्ता निकलता है।

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