Monday 30 June 2014

What irritated by elves


हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां लोग सभी अप्सराओं को मार देना चाहते हैं। हमने उन तपस्वियों का गुणगान किया है जो किसी भी तरह के बहलाव, उकसावे, आकर्षण, आनंद, सम्मोहन को खारिज कर दें। सेंसरशिप के मूल में भी यही है।

पुराणों में वर्णन आता है कि जब भी कोई पुरुष तपस्या के लिए अपनी आंखें मूंदता है तब एक अप्सरा प्रकट होती है और उसके सम्मुख नृत्य करके उसे बाध्य करती है कि वह अपनी आंखें खोल दे। तपस्या का लक्ष्य संसार से दूर जाना, मस्तिष्क को प्रज्वलित करना और दिमाग में विचार अग्नि पैदा करने, या उसे तपाने से है जिससे कि सारा अज्ञान जल जाए और उसके प्रकाश में विवेक प्रकट हो। सफलता किसी मनुष्य को प्रज्ञावान मनुष्य यानी तपस्वी का रूप दे सकती है और यहां प्रज्ञा का अर्थ भीतरी बौद्धिक अग्नि से है जो बिना किसी ईंधन के जलती है।

लेकिन तपस्वी के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा अप्सरा होगी जिसे वस्तुत: जल कन्या के रूप में चित्रित किया गया है, यहां अप्सा शब्द संस्कृत से आया है जिसका अर्थ होता है जल। वह तप से प्रज्वलित अग्नि को बुझा देगी और अपने रूप सौंदर्य के साथ उसका ध्यान भंग करते हुए उसे आंखें खोलने पर विवश कर देगी। अपनी मानसिक अवस्था पर नियंत्रण खत्म होने की इस अवस्था को दृश्य रूप में 'वीर्य प्रस्फुटन" के साथ दर्शाया गया है।

कोई फेसबुक अपडेट या ट्वीट एक अप्सरा की तरह ही है जो हमें किसी भी तरह की प्रतिक्रिया के लिए उकसाते हैं। हम उसे लाइक, डिस्लाइक, फेवरिट, रिट्वीट, फॉरवर्ड और डिलीट करना चाहते हैं। कुछ तपस्वियों के लिए इसका अर्थ यही है कि अपनी हॉकी स्टिक बाहर निकालना और किसी को पीटकर मृत्यु तक पहुंचा देना।

इस संदर्भ की कथा आती है कि जब इच्छाओं के देव, अप्सरों के प्रिय सखा कामदेव ने दुनिया के श्रेष्ठतम तपस्वी शिव की इंद्रियों को उकसाने का प्रयास किया, तो शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला और उसे भस्म कर दिया। महादेव ने इस तरह फुसलाने की कोशिश को ठीक नहीं माना।

लेकिन तब देवी शक्ति कामाख्या या कामाक्षी के रूप में अवतरित हुईं तो कामदेव पुनर्जीवित हुए। देवी ने ईख से बना कामदेव का धनुष और पुष्पों से बने उनके तीर उठाए और शिव के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। लेकिन यह हिंसक युद्ध नहीं था। यह आकर्षण और प्रेम का युद्ध था। उन्होंने तीव्र वेदना से भरे शिव से आंखें खोल उनकी ओर देखने की प्रार्थना की।

देवी की महत्ता है, कामदेव का महत्व है, अप्सरा की महत्ता है और जिस संसार से तपस्वी दूर जाते हैं उसका भी अपना महत्व है। इनके बिना विवेक हो ही नहीं सकता। शिव ने यह समझा और शंकर रूप में रूपायित हुए और शक्ति के पति बने। उन्होंने शक्ति को इस तरह धारण किया कि वह उनके शरीर का आधा भाग भी बन गईं।

हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां लोग सभी अप्सराओं को मार देना चाहते हैं। हमने उन तपस्वियों का गुणगान किया है जो किसी भी तरह के बहलाव, उकसावे, आकर्षण, आनंद, सम्मोहन को खारिज कर दें। सेंसरशिप के मूल में भी यही है।

आज प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनियां गोरेपन और सौंदर्य उत्पाद बेचती हैं। आज के समय में राष्ट्रीयता का दम भरने वाली भारतीय कंपनियां महत्वाकांक्षी गृहिणियों और बच्चों को हर चीज बेचने के लिए गोरी चमड़ी वाली मॉडल का उपयोग करती हैं जो अमेरिकन उच्चारण वाली अंग्रेजी बोल सकें।

हम सेंसरशिप की तीसरी आंख द्वारा उन्हें रोक सकते हैं। या हम बुद्धिजीवी तपस्वी बन सकते हैं जो समझते हैं कि अप्सरा हमारी प्राकृतिक वृत्तियों को उजागर करती है। वह हमारी कमजोरियों का दर्पण होती है। वह बताती है कि हमें किन पक्षों पर काम करने की जरूरत है, हमारा आत्म सम्मान और आत्ममूल्य किस कमजोर धरातल पर खड़ा है। असल में वह हमारी शिक्षक है। यही वजह है कि विष्णु ने मोहिनी रूप धरा और सभी को मोहित किया। बहलाकर वह हमें बाध्य करती है कि हम अपने अवचेतन की भूख को समझें।


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