Wednesday 18 June 2014

Put humanity together forever

कहते हैं महापुरषों का बचपन असामान्य रहता है। ऐसा ही कुछ पं. मदन मोहन मालवीय जी का भी था। एक बार प्रयाग में चौक के पास एक गली में बीमार श्वान (कुत्ता) पड़ा था। चोट लगने से उसे घाव हो गया था। वह छटपटा रहा था, चिल्ला रहा था।

पर तमाशबीन बने लोग उसे देख रहे थे। बारह वर्षीय मदन मोहन जी किसी काम से उस गली से निकले। वह श्वान की पीड़ा देख कर उनके मन में दया आ गई।वह गए और तुरंत डॉक्टर के पास से दवा ले आए। दवा तेज थी तो श्वान गुर्राने और दांत दिखाने लगा।

कई लोगों ने कहा अरे दूर हट जाओ, नहीं तो यह तुम्हे काट लेगा। पर बालक ने न केवल दवा लगाई बल्कि उसे नियमित दवा लगाकर ठीक कर दिया। बाद में यही बालक बड़े होकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक बने।

संक्षेप में

इंसान को सबसे पहले इंसानियत को महत्व देना चाहिए। अगर वह एक अच्छा इंसान बनने की चाह रखता है। तो वह ईमानदार इंसान बने। सफलता खुद-ब-खुद उसके कदमों तले आ जाएगी।

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