Thursday 12 June 2014

How did stress

आधुनिक जीवन में हम भौतिक तरक्की और आराम को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। सुविधाओं के इस समय में भौतिक वस्तुएं अधिक प्रकाशमान हो गई हैं या कहें कि उनकी महत्ता अधिक हो गई है। हालांकि यह मानने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि यह तरक्की और आराम बहुत सारे तनाव और खिंचाव के साथ आता है और इसी वजह हम उसका वैसा उपभोग नहीं कर पाते हैं।

तनाव और खिंचाव हमारे जीवन के हर क्षेत्र में मौजूद है और हम उसे अनुभव भी करते हैं। व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा है, परिवार और सामाजिक संबंधों में तनाव है और अंतत: हम अपने भीतर इस तनाव को चिंता, डर और हताशा के रूप में महसूस करने लगते हैं।

निश्चित मात्रा में तनाव बहुत सामान्य है। इसे हम ऑब्जेक्टिव स्ट्रेस कह सकते हैं। यह तनाव चुनौतीपूर्ण स्थितियों में होता है। जैसे कि बहुत ही थोड़े समय में आपको बहुत सारा काम पूरा करना है। यद्यपि हम कार्यकुशल हो सकते हैं, कार्य के कारण हमारा शेड्यूल अति व्यस्त है तो हम तनाव महसूस करते ही हैं।

इस तरह की स्थितियों में हमें शांत रहने की जरूरत है। हमें तय समय में काम को अच्छे से पूरा करने के रास्ते तलाशना ही होते हैं। इसे समय प्रबंधन भी कहा जाता है। अगर मुझे बहुत थोड़े समय में दस पत्र लिखना होंगे तो मैं हर पत्र में कुछ ही लाइनें लिख पाऊंगा।

ऑब्जेक्टिव स्ट्रेस से मुक्ति का एक तरीका है खुद को अधिक अनुशासित और व्यवस्थित करना। सुबह जल्दी उठने का अनुशासन हमारे जीवन को सहज बनाने में मदद करता है। अक्सर काम में जब हम जल्दी में होते हैं, हम हड़बड़ी में चीजें करने लगते हैं और ऐसे में ही अक्सर गलतियां कर बैठते हैं लेकिन योजना और अनुशासन के साथ हम तनाव से मुक्ति की स्थिति बना सकते हैं और उसमें ज्यादा बेहतर काम कर सकते हैं।

अगर हम सब्जेक्टिव स्ट्रेस की बात करें तो इस दुनिया में केवल स्थितियां होती हैं और तनाव और दबाव जैसा कुछ नहीं होता। जो तनाव हम महसूस करते हैं वह बाह्य परिस्थितियों के कारण नहीं होता बल्कि उस स्थिति में हम कैसा बर्ताव करते हैं उस कारण होता है। इस तरह का तनाव हमारी आंतरिक बनावट के कारण होता है।

बाह्य स्थिति नहीं हमारी आंतरिक बनावट या संरचना ही हमारे लिए समस्या बन जाती है?

चिंता और व्यग्रता इससे पैदा होती है कि हम किसी खास परिस्थिति का कुशलता के साथ मुकाबला नहीं कर पाते हैं। यह तनाव का एक प्रकार होता है जो हम अमूमन महसूस करते हैं और हम इससे मुक्ति के लिए कई तरह से प्रयास करते हैं। जैसे कि जब हमारी तैयारी नहीं होती है तो हम चिंतित हो जाते हैं और तनाव में आ जाते हैं लेकिन अगर किसी विद्यार्थी ने अच्छे से पढ़ाई की है तो परीक्षा उसके लिए चिंता की बात नहीं है।

अगर कोई विद्यार्थी अच्छी तैयारी के बावजूद परीक्षा कक्ष में भी चिंता में है तो उसका अर्थ है कि उसकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा या उसके माता-पिता की उससे अपेक्षा बहुत ज्यादा है। इसलिए अपेक्षा, महत्वाकांक्षा, इच्छा एक प्रेरक या आगे ले जाने वाली शक्ति के बजाय हमें सफलता से दूर ले जानी वाली चीजें साबित होती हैं। अपेक्षा की वजह से ही तनाव पैदा होता है।

इच्छा और महत्वाकांक्षा हमें कार्य के लिए प्रेरित करती हैं लेकिन अगर वे बड़ी हों तो वे हमारे माथे पर पसीना ला देती हैं वे फिर प्रेरक नहीं रह जातीं। फिर वे हम पर हावी होने लगती हैं। व्यावसायिक असुरक्षा, भावनात्मक असुरक्षा, तनावपूर्ण संबंध या किसी भी तरह की असुरक्षा तनाव पैदा करती है।

हर समय एक भय लगा रहता है। इस दुनिया के बारे में एक ही बात निश्चित है कि यहां सबकुछ अनिश्चित है। इस तथ्य को स्वीकार करना कि कुछ भी निश्चित नहीं है, हमें बड़ी राहत मिलती है। हम इसी तरह सहज हो सकते हैं कि इस दुनिया में सबकुछ बदलता रहता है और हमें अपनी तरह से प्रयास करने के बाद शांत रहना चाहिए।

सब्जेक्टिव स्ट्रेस से मुक्ति का तरीका यह है कि हमें आस्था रखना चाहिए। चाहे इसे आस्था कहिए या भरोसा या विश्वास। यह उसी तरह है कि जब हम प्लेन में सफर करते हैं तो हम आराम से सोते हैं और पायलट के भरोसे सबकुछ छोड़ देते हैं। उसकी कुशलता पर निर्भर रहते हैं और बहुत चिंतित नहीं होते।

इसी तरह हमें अपने जीवन में भी निश्चिंत होना चाहिए। इसी तरह हमें दुनिया को चलाने वाली शक्तियों पर आस्था रखना चाहिए। मन में अगर शांति रहेगी तो हम ज्यादा बेहतर काम कर पाएंगे।

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