Wednesday 18 June 2014

Trestle forest and climbs in wedding wear

विवाह में अमूमन दूल्हा घोड़ी पर बैठकर वधू के घर जाता है। यह काफी पुरानी रस्म है। इस रस्म को लेकर अलग-अलग मत हैं।

बात अगर सेहरा की जाए तो इस विशेष अनुष्ठान को केवल लड़के के घर पर संपन्न किया जाता है। परिवार के सभी सदस्यों और सम्बंधियों की उपस्थिति में वर यह शपथ लेता है कि अपने जन्म से लेकर अब तक उसने परिवार की परंपराओं का पालन करते हुए जीवन बिताया है।

भविष्य में भी वह परिवार की परंपराओं का पालन करेगा। वह अपने परिवार और समाज की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देगा।

सेहरा बंधवाने के बाद वह घर के बुजुर्ग का आशीर्वाद लेता है। वह वर के सिर पर पगड़ी रखता है, जो कि आदर और सम्मान की सूचक है। इसके बाद सेहरा बांधा जाता है।

वर अपनी राजशाही परिधान पहन कर घोड़ी पर सवार होता है। रास्ते में उसके पीछे परिवार के सदस्य चलते हैं। आगे-आगे बैंड इस वैवाहिक जुलूस के साथ चलता है।

बारात वधू के के घर पहुंचकर समाप्त हो जाती है। अब वधू पक्ष के लोग बारात और वर का स्वागत करते हैं। वर की बहिनें घोड़ी के लंबे आयलों(बालों) को बांधती हैं। वे घोड़ी को पहले से भीगे हुए चने की दाल खिलाती हैं।

ऐसा करने पर वर की बहिनों को और बहनोईयों को नगद धन और उपहार दिए जाते हैं। इस अवसर पर, जिसको सेहराबंदी भी कहते हैं। इस समय घोड़ी के मालिक को भी उपहार दिए जाते हैं। जिसे सगुन कहा जाता है।

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