Tuesday 24 June 2014

I do not heron

महाभारत दुनिया का सबसे बड़ा ग्रंथ हैं। इस बात में कोई दोराय नहीं। महाभारत में कई कथाओं का उल्लेख मिलता है। कहते हैं एक बार पांडव जब वनवास पर थे तब उनके घर मार्कण्डेय मुनि आए।

इस दौरान युधिष्ठिर स्त्रियों के गुणों की चर्चा करते हुए बोले- 'स्त्रियों की सहनशीलता और सतीत्व से बढ़कर आश्चर्य की बात संसार में और क्या हो सकती है? बच्चे को जन्म देने से पहले स्त्री को कितना कष्ट उठाना पढ़ता है? पति के अत्याचार सहती है? बच्चे का लालन-पालन करती हैं? यह एक आश्चर्यजनक बात ही है।'

यह सुनकर मार्कण्डेय मुनि ने युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई। कथा कुछ इस तरह थी। एक गांव में कौशिक नाम का एक ब्रह्मण रहता था। वह ब्रह्मचर्य व्रत पर अटल था। एक दिन वह पेड़ की छांव में बैठा बात कर रहा था। उसके सर पर किसी पक्षी ने बीट कर दी। कौशिक ने ऊपर देखा तो एक बगुला बैठा हुआ था।

ब्रह्मण ने सोचा , इसी बगुले ने यह करतूत की है। उन्हें क्रोध आ गया। उनकी क्रोध भरी दृष्टि से उस बगुले को भस्म कर दिया। बगुले के मरे शरीर देखकर ब्रह्मण को पछतावा हुआ। कौशिक इस घटना के बाद से काफी दुखी हो गए कि मैनें एक निर्दोष पक्षी को मार दिया।

वह यह सोच ही रहे थे कि भिक्षा का समय हो गया। वह एक घर के बाहर खड़े थे और भिक्षा की याचना करते हुए आवाज देने लगे। जिस घर में गए थे। वहां का मुखिया आ गया। मुखिया की पत्नी ने अपने पति को खाना खिलाया। मुनि की तरफ ध्यान नहीं दिया।

कौशिक द्वार पर ही खड़े रहे जब वह महिला भिक्षा देने आई। उसने मुनि से क्षमा मांगी। मुनि काफी गुस्सा थे। मुनि ने कहा कि बहुत देर से मैं यहां था। तब वह महिला बोली। ब्रह्मण श्रेष्ठ पति की सेवा में लगी रही इसलिए देर हो गई।

कौशिक ने कहा तुम्हें अपनी पतिव्रता पर घमंड है। तब स्त्री ने कहा कि नाराज न हों मुनि, आपसे प्रार्थना है कि मुझे पेड़ वाला बुगुला समझने की गलती न कीजिएगा। आपका क्रोध पति की सेवा में रत सती का कुछ नही बिगाड़ सकता। मैं बगुला नहीं हूं।

स्त्री की बातें सुनकर मुनि चौंक गए। उन्हें बड़ा अचरज हुआ कि इस स्त्री को बगुले के बारे में कैसे पता चल गया। तब वह स्त्री बोली की मुनि आपने धर्म का मर्म न जाना। शायद आपको इस बात का भी पता नहीं कि क्रोध एक ऐसा शत्रु है जो मनुष्य के शरीर के अंदर रहते हुए उसका नाश कर देता है।

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