Tuesday 17 June 2014

There were times when the river runs in a threestorey boats

आगरा शहर में यमुना को शहरवासी आज नहर की तरह देख रहे हैं, किसी जमाने में उसका तेज बहाव और चौड़ा फाट था। उन दिनों सड़क मार्ग बहुत कम थे। नदियों में नावों के जरिए ही अधिकांश व्यापार होता था।

यही वजह थी कि नदी के किनारे ही बसावट होती थी। तीन मंजिली नाव यहां का प्रमुख आकर्षण होती थीं। वह इतनी मजबूत होती थी कि उन पर हाथी, घोड़े भी लाद कर लाए जाते थे।

सन् 1530 में जब हुमायूं बीमार पड़ा, तो उसे दिल्ली से आगरा नाव से ही लाया गया था। तब मुगल शासक रामबाग और उसके आसपास ही रहा करते थे। वहीं पर बाबर ने हुमायूं की परिक्रमा लगाकर अपना जीवन उन्हें देने की प्रार्थना की। बताया जाता है, यहां पर खुदा ने उनकी दुआ कबूल की थी। बाबर बीमार हुआ और उसका देहांत हो गया था। हुमायूं की तबियत सही हो गई थी।

नहरों में भी चलती थी नाव-यमुना से जुड़ी कई नहरें शहर के अंदर बहा करती थीं, जिनसे व्यापारी अपने सामान को विक्रय हेतु लाया करते थे। इनमें से कुछ नहरें अब नाले में तब्दील हो चुकी हैं। भैरों नाला भी नहर हुआ करता था, जहां नावों से विभिन्न नगरों से सामग्री आती थी। जिसे गधों पर लादकर शहर और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा जाता था।

चैत्र माह में हुआ था निकास यमुनोत्री से यमुना नदी का निकास माना जाता है। यमुना जी की यहां के जोंस पब्लिक लाइब्रेरी में प्रदर्शित यमुना की दुर्लभ प्रतिमा।

यमुना के मंदिर और उनकी प्रतिमाएं बहुत कम हैं। विगत वर्षो यमुना की एक खंडित मूर्ति कैलाश मंदिर के समीप मिली थी, जो अब जोंस पब्लिक लाइब्रेरी के म्यूजियम में प्रदर्शित है।

म्यूजियम में 1722 में बनाया गया एक नक्शा भी है, जिसमें यमुना नदी और उससे निकली नहरों को दिखाया गया है। यमुना के किनारे मकान भी प्रदर्शित किए गए हैं।

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