Friday 27 June 2014

Statue of goddess saraswati

छत्तीसगढ़ आदिकाल से ही शक्ति उपासना का केन्द्र रहा है। जहां एक तरफ तो छत्तीसगढ़ के दक्षिण भू-भाग में मां दंतेवश्वरी की पूजा की जाती है तो उत्तर के भूभाग में महामाया की पूजा आस्था का केंद्र है।

रायपुर से करीब 140 किलोमीटर दूर है रतनपुर। कहते हैं कि यहां कभी 1400 से भी ज्यादा तालाब थे। महाभारत काल में इस स्थान का नाम रत्नावली था और नालंदा विश्वविद्यालय जैसा शिक्षा का केन्द्र स्थापित था। किंवदंती है कि मां की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में मां सरस्वती की प्रतिमा है जो विलुप्त मानी जाती है।

दसवीं शताब्दी में कलचुरी राजा रत्नदेव ने राजधानी यहां लाए तो शक्तिरूपेण मां महामाया की यहां स्थापना की। जंगल और पहाड़ों के बीच स्थापित रतनपुर का महामाया मंदिर तंत्र और शक्ति आराधना का केन्द्र रहा है। नागर शैली में बने मंदिर का मण्डप 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है।

भव्य गर्भगृह में मां महामाया की साढ़े तीन फीट ऊंची दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है। यहां सरस्वती की प्रतिमा विलुप्त रूप में मिलती है।

देवी सती का दाहिना स्कंध इस पवित्र धरा में में बना है, इसलिए इसे कौमारी शक्तिपीठ के रूप में भी स्वीकार किया जाता है इसके कारण से कुंवारी कन्याओं को मां के दर्शन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यहां की शक्ति कुमारी और भैरव भगवान शिव है।

छत्तीसगढ़ में ज्वारे( जवारा) लगाकर माता सेवा की परंपरा है। देवी के रूप में गेहूं, जौं, की अराधना नौ दिन तक की जाती है। वहीं नौ दिन तक जलने वाली अखंड ज्योति से जीवन के अंधकार समाप्त हो जाते हैं। यहां 17 हजार से भी ज्यादा मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की जाती है।

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