Wednesday, 30 July 2014

Action under section 144 if crops fire in filed

खेतों में फसल जलाने पर अब किसान पर धारा 144 के तहत कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए कृषि विभाग ने राज्य के सभी कलेक्टर को निर्देश दे दिए हैं। यह बात नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में सोमवार को ओलावृष्टि मामले में सुनवाई के दौरान कृषि विभाग की ओर से बताई गई। कृषि विभाग ने एनजीटी को फसलों के अवशेष (नरवई) के निस्तारण की योजना और कार्यविधि की जानकारी दी।

कृषि विभाग द्वारा बताया गया कि राज्य में हर साल 332 लाख टन नरवई जलाई जाती है, जो जमीन के लिए बहुत नुकसानदायक है। इसके लिए जन जागरण अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। विभाग ने इस संबंध में राज्य के सभी जिलों के कलेक्टर को दिशा निर्देश दे दिए हैं।

जिससे नरवई को खेत में नहीं जलाया जा सके। वहीं उल्लंघन करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जा सके। कृषि विभाग ने बताया कि नरवई से खाद बनाने की योजना बनाई जा रही है। नरवई से बनाए गए खाद से भूमि उपजाऊ होगी, वहीं जल संरक्षण में भी फायदा होगा। एनजीटी ने कृषि विभाग को याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए सुझावों पर भी अमल करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई 1 अगस्त को होगी।

हार्वेस्टर में स्ट्रा रीपर होगा जरूरी

कृषि विभाग द्वारा बताया गया कि नरवई को जलाने से रोकने के लिए हार्वेस्टर में स्ट्रा रीपर अनिवार्य किया जाएगा। जिससे फसल नीचे तक काटी जा सकेगी। जिससे भूसा बनाया जा सके। सुनवाई में इस दौरान पूछा गया कि बाहर से आने वाले हार्वेस्टर में स्ट्रा रीपर नहीं लगे होने की स्थिति में कृषि विभाग द्वारा क्या कार्रवाई की जाएगी। इस पर कृषि विभाग द्वारा बताया गया कि कलेक्टर को दिशा निर्देश दिए गए हैं कि राज्य में बाहर से आने वाले हार्वेस्टर को भी तभी प्रवेश दिया जाएगा, जब उनके हार्वेस्टर में स्ट्रा रीपर लगा होगा।

पुराने आंकड़े प्रस्तुत किए एआईसी ने

एनजीटी ने एग्रीकल्चर इंश्युरेंस कंपनी (एआईसी) से मुआवजे के संबंध में पूछा तो एआईसी द्वारा जबाव दिया गया कि उनके पास ओलावृष्टि के संबंध में खराब हुई फसलों के आंकड़े नहीं हैं। इस पर याचिकाकर्ता द्वारा पूछा गया कि गत सुनवाई में जो आंकड़े मौखिक तौर पर बताए गए हैं, वे कौन से थे। इस पर एआईसी ने बताया कि वर्ष 2013 में सोयाबीन फसल खराब होने के आंकड़ों को बताया गया था, जिनका मुआवजा अब तक बांटा जा रहा है।

मार्च में दायर हुई थी याचिका

गत 13 मार्च को पर्यावरणविद डॉ. सुभाष पांडेय द्वारा एनजीटी में याचिका दायर की गई। जिसमें बताया गया कि ओला वृष्टि कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है। मानवीय गलतियों के कारण और उस पर प्रशासन द्वारा सख्ती के कदम न उठाए जाने से यह स्थिति निर्मित होती है। एनजीटी ने सभी पक्षों को सुनते हुए केंद्र और मप्र सरकार से जवाब मांगा था।

-एनजीटी में ओलावृष्टि मामले में सुनवाई

-कृषि विभाग ने प्रस्तुत किया जबाव

-स्ट्रा रीपर वाले हार्वेस्टर का उपयोग किए जाने की बात

-बाहर से आने वाले हार्वेस्टर को भी सशर्त प्रवेश की मिलेगी अनुमति

-हर साल राज्य में 332 लाख टन फसल के अवशेष जलाए जाते हैं खेतों में

-अगली सुनवाई 1 अगस्त को होगी

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