आज के युग में मनुष्य पूर्ण भौतिकता में लिप्त होकर अपने सन्मार्ग से भटक गया है। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए वह अनैतिक और कदाचारी बन चुका है। ऐसे में सदगुरु ही एक ऐसा प्रकाश स्तंभ है जो इन भटके हुए लोगों को नैतिकता और सदाचार के मार्ग पर ला सकता है।
कहा गया है कि गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई यानी संसार सागर दुःख भरा हुआ है। उसे गुरु के बिना कोई भी पार नहीं लगा सकता है। गुरु की महिमा के बारे में सिखों के पहले गुरु कहते हैं कि सौ चांद और हजार सूर्य भी एक साथ आकाश में आ जाए तो भी गुरु की रोशनी का कोई मोल नहीं है।गुरु को भगवान से ऊंचा दर्जा देने वाले संत कबीर दास ने कहा है कि पहले में गुरु महाराज के चरण स्पर्श करुंगा उसके बाद भगवान के चरण स्पर्श करना चाहूंगा।
गुरु विकास का कारण है, वह कल्याण मित्र है और शिष्य की प्रतिभा को तराश कर कंचन बना देता है। जैसे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बना दिया था। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा का पर्व आस्था और विश्वास का पर्व है। यह समर्पण का पर्व है साथ ही लोगों में विश्वबंधुत्तव की भावना को बढ़ावा देता है।
कहा गया है कि गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई यानी संसार सागर दुःख भरा हुआ है। उसे गुरु के बिना कोई भी पार नहीं लगा सकता है। गुरु की महिमा के बारे में सिखों के पहले गुरु कहते हैं कि सौ चांद और हजार सूर्य भी एक साथ आकाश में आ जाए तो भी गुरु की रोशनी का कोई मोल नहीं है।गुरु को भगवान से ऊंचा दर्जा देने वाले संत कबीर दास ने कहा है कि पहले में गुरु महाराज के चरण स्पर्श करुंगा उसके बाद भगवान के चरण स्पर्श करना चाहूंगा।
गुरु विकास का कारण है, वह कल्याण मित्र है और शिष्य की प्रतिभा को तराश कर कंचन बना देता है। जैसे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बना दिया था। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा का पर्व आस्था और विश्वास का पर्व है। यह समर्पण का पर्व है साथ ही लोगों में विश्वबंधुत्तव की भावना को बढ़ावा देता है।
Source: Spiritual Hindi News & Hindi Rashifal 2014
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