त्रेतायुग में कोशल देश में कोशल नाम का एक राजा था। उसकी विवाह योग्य पुत्री थी, नाम था कौशल्या। राजा कोशल ने अपनी पुत्री का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से करने का निर्णय लिया,और राजा दशरथ को विवाह का प्रस्ताव सुनाने के लिए आमंत्रित किया, जिस समय दूत राजा के पास पहुंचा वह जलक्रीड़ा कर रहे थे।
लगभग उसी समय लंकापति रावण ब्रह्मलोक में ब्रह्माजी के सामने आदरपूर्वक पूछ रहा था कि मेरी मृत्यु किसी हाथों होगी। रावण की बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि दशरथ की पत्नी कौशल्या से साक्षात् भगवान विष्णु जी का जन्म होगा। वही तुम्हारा विनाश करेंगे।
ब्रह्माजी की बात सुनकर रावण अपनी सेना के साथ अयोध्या की ओर निकल पड़ा वहां पहुंचकर उसने युद्ध किया और राजा दशरथ को पराजित कर दिया। लड़ाई सरयु के निकट हो रही थी और राजा नौका में थे। रावण ने नौका को तहस-नहस कर दिया, तब राजा दशरथ और उनके मंत्री सुमंत नदी में बहते हुए समुद्र में जा पहुंचे।
उधर रावण अयोध्या से चलकर कोशल नगरी में जा पहुंचा। वहां भयानक युद्ध करके उसने राजा कोशल को भी जीत लिया। इसके बाद कौशल्या का हरण करके खुश होते हुए आकाशमार्ग से लंका की ओर चल पड़ा। रास्ते में समुद्र में रहने वाली तिमंगिल मछली को देखकर रावण ने सोचा कि सभी देवता मेरे शत्रु हैं, कहीं रूप बदलकर वे ही कौशल्या को लंका से न ले जाएं।
इसलिए कौशल्या को इस तिमिंगिल मछली को ही क्यों न सौंप दूं। ऐसा सोचकर उसने कौशल्या को एक संदूक में बंद करके मछली को सौंप दिया, और वह लंका चला गया। मछली संदूक लेकर समुद्र में घूमने लगी। अचानका एक और मछली के आने से वह उसके साथ युद्ध करने लगी और संदूक को समुद्र में छोड़ा दिया।
उसी समय राजा भी अपने मंत्री के साथ बहते हुए समुद्र में पहुंचे। वहां उनकी दृष्टि पेटिका पर पडी़। कौशल्या ने अपनी आपबीती सुनाई। राजा भी कौशल्या को देखकर आश्चर्यचकित हो गए।
आपस में संवाद करने के बाद वह तीनों पुनः संदूक में बैठ गए। वह इसलिए क्यों कि ज्यादा समय तक समुद्र के अंदर रहना ठीक नहीं था। मछली जब आई तो उसने संदूक को मुंह में रख लिया।
तब अहंकारी रावण ने कहा ब्रह्माजी से कहा कि मैनें दशरथ को जल में और कौशल्या को संदूक में छिपा दिया है। तब ब्रह्माजी आकाशवाणी से बोले कि उन दोनों का विवाह हो चुका है। रावण बहुत क्रोधित हुआ। तब ब्रह्माजी ने कहा कि होनी होकर ही रहती है।
जब राजा दशरथ अयोध्या पहुंचे तो उनका विवाह विधि-विधान से कोशल्या के साथ हो गया।
लगभग उसी समय लंकापति रावण ब्रह्मलोक में ब्रह्माजी के सामने आदरपूर्वक पूछ रहा था कि मेरी मृत्यु किसी हाथों होगी। रावण की बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि दशरथ की पत्नी कौशल्या से साक्षात् भगवान विष्णु जी का जन्म होगा। वही तुम्हारा विनाश करेंगे।
ब्रह्माजी की बात सुनकर रावण अपनी सेना के साथ अयोध्या की ओर निकल पड़ा वहां पहुंचकर उसने युद्ध किया और राजा दशरथ को पराजित कर दिया। लड़ाई सरयु के निकट हो रही थी और राजा नौका में थे। रावण ने नौका को तहस-नहस कर दिया, तब राजा दशरथ और उनके मंत्री सुमंत नदी में बहते हुए समुद्र में जा पहुंचे।
उधर रावण अयोध्या से चलकर कोशल नगरी में जा पहुंचा। वहां भयानक युद्ध करके उसने राजा कोशल को भी जीत लिया। इसके बाद कौशल्या का हरण करके खुश होते हुए आकाशमार्ग से लंका की ओर चल पड़ा। रास्ते में समुद्र में रहने वाली तिमंगिल मछली को देखकर रावण ने सोचा कि सभी देवता मेरे शत्रु हैं, कहीं रूप बदलकर वे ही कौशल्या को लंका से न ले जाएं।
इसलिए कौशल्या को इस तिमिंगिल मछली को ही क्यों न सौंप दूं। ऐसा सोचकर उसने कौशल्या को एक संदूक में बंद करके मछली को सौंप दिया, और वह लंका चला गया। मछली संदूक लेकर समुद्र में घूमने लगी। अचानका एक और मछली के आने से वह उसके साथ युद्ध करने लगी और संदूक को समुद्र में छोड़ा दिया।
उसी समय राजा भी अपने मंत्री के साथ बहते हुए समुद्र में पहुंचे। वहां उनकी दृष्टि पेटिका पर पडी़। कौशल्या ने अपनी आपबीती सुनाई। राजा भी कौशल्या को देखकर आश्चर्यचकित हो गए।
आपस में संवाद करने के बाद वह तीनों पुनः संदूक में बैठ गए। वह इसलिए क्यों कि ज्यादा समय तक समुद्र के अंदर रहना ठीक नहीं था। मछली जब आई तो उसने संदूक को मुंह में रख लिया।
तब अहंकारी रावण ने कहा ब्रह्माजी से कहा कि मैनें दशरथ को जल में और कौशल्या को संदूक में छिपा दिया है। तब ब्रह्माजी आकाशवाणी से बोले कि उन दोनों का विवाह हो चुका है। रावण बहुत क्रोधित हुआ। तब ब्रह्माजी ने कहा कि होनी होकर ही रहती है।
जब राजा दशरथ अयोध्या पहुंचे तो उनका विवाह विधि-विधान से कोशल्या के साथ हो गया।
Source: Spirituality News & Spiritual Hindi News
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