छत्तीसगढ़ में एमबीबीएस की सीटें बढ़ने से डेंटल कॉलेज को नुकसान हो सकता है, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा छात्र एमबीबीएस में दाखिला लेने के इच्छुक होते हैं। इस साल से छत्तीसगढ़ चिकित्सा शिक्षा संचालनालय (डीएमई) ने एमबीबीएस में दाखिला लेने के बाद सीट छोड़ने पर 25 लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान कर दिया है। वहीं अब छत्तीनसगढ़ के एक मात्र शासकीय डेंटल कॉलेज की स्वशासी समिति ने फैसला लिया है कि डेंटल (बीडीएस) की सीट छोड़ने पर छात्र को 1 लाख का जुर्माना भरना होगा।
इसके साथ ही साथ शेष वर्षों की सालाना फीस भी जमा करनी होगी, तभी उसे नो ऐब्जेक्शॅन सर्टिफिकेट दिया जाएगा। खास बात यह है कि यह फैसला मेडिकल, डेंटल, फिजियोथैरेपी, नर्सिंग कॉलेजों पर नियंत्रण रखने वाले चिकित्सा शिक्षा संचालनालय ने नहीं, बल्कि कॉलेज स्वशासी समिति ने लिया है।
छत्ती सगढ़ में पांच शासकीय और निजी मेडिकल कॉलेज की स्थापना हो चुकी है। जिनमें एमबीबीएस की कुल 700 सीट हैं। इस साल राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज को 100 सीट की मान्यता मिल गई, वहीं एमसीआई ने निरीक्षण के बाद रोकी 200 सीटों को भी मान्यता जारी कर दी। यानी एमबीबीएस की स्टेट कोटा की सीटों की संख्या बढ़कर 489 पहुंच गई है। जबकि शासकीय और निजी डेंटल कॉलेजों में स्टेट कोटा की सीटों की संख्या 332 है।
'नईदुनिया" पड़ताल में सामने आया कि ऑल इंडिया पीएमटी के बाद छत्तीसगढ़ डीएमई को भेजी गई मेरिट सूची में 760 अभ्यर्थियों के नाम हैं। जिन्होंने एआई-पीएमटी में क्वॉलिफाइ किया है। यानी साफ है कि स्टेट कोटा की एमबीबीएस और बीडीएस सीटों का जोड़ 821 है जो मेरिट सूची से अधिक है। ऐसे में साफ है कि छात्र एमबीबीएस कोर्स में दाखिला को प्राथमिकता देंगे और बीडीएस की सीट खाली रहेंगी ही। जो बड़ा नुकसान साबित हो सकता है।
सेकंड राउंड काउंसिलिंग के बाद स्थिति-
निजी डेंटल कॉलेज में स्टेट कोटा की 250 सीट हैं, जिनमें से सेकंड राउंड काउंसिलिंग के बाद सिर्फ एक सीट पर ही आवंटन हो सका है। जबकि प्रदेश के एक मात्र शासकीय डेंटल कॉलेज में स्टेट कोटा की 82 सीट में से 63 सीट सेकंड राउंड काउंसिलिंग के बाद भी खाली हैं। रूगंटा डेंटल कॉलेज की स्टेट कोटा की सिर्फ एक सीट ही आवंटित हुई है। जबकि मैत्री डेंटल कॉलेज, त्रिवेणी डेंटल कॉलेज, न्यू हॉरिजन डेंटल कॉलेज और सीडीसीआरआई डेंटल कॉलेज की सभी 50-50 सीटें रिक्त हैं।
क्यों एमबीबीएस कोर्स को तबज्जो ज्यादा-
शासन एमबीबीएस कोर्स को अन्य चिकित्सकीय पाठ्यक्रमों जैसे डेंटल, फिजियोथेरेपी से ज्यादा तबज्जो देता है। एमबीबीएस की सीट छोड़ने पर जहां शासन 25 लाख का जुर्माना, 2 साल की ग्रामीण सेवा अनिवार्य करता है, लेकिन डेंटल सीट को लेकर ऐसा शख्त नियम क्यों नहीं बनाया गया, बड़ा सवाल है? जबकि हर साल एमबीबीएस से ज्यादा बीडीएस की सीट छात्र छोड़ते हैं। अगर 1लाख की राशि को बढ़ा दिया जाए तो छात्रों में डर पैदा होगा, जिसका फायदा शासन को होगा। वहीं एमबीबीएस में 2 साल की ग्रामीण सेवा अनिवार्य है, जबकि डेंटल छात्रों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
8-10 छात्र छोड़ते हैं सीट
यह फैसला संचालनालय ने नहीं, बल्कि स्वशासी समिति ने लिया है। अगर कोई छात्र डेंटल कॉलेज में दाखिला लेता है और वह अच्छे अवसर पर सीट छोड़ता है तो उसे 1लाख रुपए का भुगतान करना होगा। यह दाखिला नियम में उल्लेखित है। साथ ही उसे शेष वर्षों की फीस का भी भुगतान करना होगा। कॉलेज में हर साल 8-10 छात्र सीट छोड़ते हैं, जिससे शासन को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है।
डॉ. बिश्वजीत मित्रा, प्राचार्य, शासकीय डेंटल कॉलेज रायपुर
इसके साथ ही साथ शेष वर्षों की सालाना फीस भी जमा करनी होगी, तभी उसे नो ऐब्जेक्शॅन सर्टिफिकेट दिया जाएगा। खास बात यह है कि यह फैसला मेडिकल, डेंटल, फिजियोथैरेपी, नर्सिंग कॉलेजों पर नियंत्रण रखने वाले चिकित्सा शिक्षा संचालनालय ने नहीं, बल्कि कॉलेज स्वशासी समिति ने लिया है।
छत्ती सगढ़ में पांच शासकीय और निजी मेडिकल कॉलेज की स्थापना हो चुकी है। जिनमें एमबीबीएस की कुल 700 सीट हैं। इस साल राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज को 100 सीट की मान्यता मिल गई, वहीं एमसीआई ने निरीक्षण के बाद रोकी 200 सीटों को भी मान्यता जारी कर दी। यानी एमबीबीएस की स्टेट कोटा की सीटों की संख्या बढ़कर 489 पहुंच गई है। जबकि शासकीय और निजी डेंटल कॉलेजों में स्टेट कोटा की सीटों की संख्या 332 है।
'नईदुनिया" पड़ताल में सामने आया कि ऑल इंडिया पीएमटी के बाद छत्तीसगढ़ डीएमई को भेजी गई मेरिट सूची में 760 अभ्यर्थियों के नाम हैं। जिन्होंने एआई-पीएमटी में क्वॉलिफाइ किया है। यानी साफ है कि स्टेट कोटा की एमबीबीएस और बीडीएस सीटों का जोड़ 821 है जो मेरिट सूची से अधिक है। ऐसे में साफ है कि छात्र एमबीबीएस कोर्स में दाखिला को प्राथमिकता देंगे और बीडीएस की सीट खाली रहेंगी ही। जो बड़ा नुकसान साबित हो सकता है।
सेकंड राउंड काउंसिलिंग के बाद स्थिति-
निजी डेंटल कॉलेज में स्टेट कोटा की 250 सीट हैं, जिनमें से सेकंड राउंड काउंसिलिंग के बाद सिर्फ एक सीट पर ही आवंटन हो सका है। जबकि प्रदेश के एक मात्र शासकीय डेंटल कॉलेज में स्टेट कोटा की 82 सीट में से 63 सीट सेकंड राउंड काउंसिलिंग के बाद भी खाली हैं। रूगंटा डेंटल कॉलेज की स्टेट कोटा की सिर्फ एक सीट ही आवंटित हुई है। जबकि मैत्री डेंटल कॉलेज, त्रिवेणी डेंटल कॉलेज, न्यू हॉरिजन डेंटल कॉलेज और सीडीसीआरआई डेंटल कॉलेज की सभी 50-50 सीटें रिक्त हैं।
क्यों एमबीबीएस कोर्स को तबज्जो ज्यादा-
शासन एमबीबीएस कोर्स को अन्य चिकित्सकीय पाठ्यक्रमों जैसे डेंटल, फिजियोथेरेपी से ज्यादा तबज्जो देता है। एमबीबीएस की सीट छोड़ने पर जहां शासन 25 लाख का जुर्माना, 2 साल की ग्रामीण सेवा अनिवार्य करता है, लेकिन डेंटल सीट को लेकर ऐसा शख्त नियम क्यों नहीं बनाया गया, बड़ा सवाल है? जबकि हर साल एमबीबीएस से ज्यादा बीडीएस की सीट छात्र छोड़ते हैं। अगर 1लाख की राशि को बढ़ा दिया जाए तो छात्रों में डर पैदा होगा, जिसका फायदा शासन को होगा। वहीं एमबीबीएस में 2 साल की ग्रामीण सेवा अनिवार्य है, जबकि डेंटल छात्रों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
8-10 छात्र छोड़ते हैं सीट
यह फैसला संचालनालय ने नहीं, बल्कि स्वशासी समिति ने लिया है। अगर कोई छात्र डेंटल कॉलेज में दाखिला लेता है और वह अच्छे अवसर पर सीट छोड़ता है तो उसे 1लाख रुपए का भुगतान करना होगा। यह दाखिला नियम में उल्लेखित है। साथ ही उसे शेष वर्षों की फीस का भी भुगतान करना होगा। कॉलेज में हर साल 8-10 छात्र सीट छोड़ते हैं, जिससे शासन को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है।
डॉ. बिश्वजीत मित्रा, प्राचार्य, शासकीय डेंटल कॉलेज रायपुर
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