एक बार देवर्षि नारद राजा दशरथ के यहां अयोध्या गए। राजा ने खूब आदर सत्कार किया। मुनि ने राजा को आशीर्वाद दिया। राजा ने मुनिश्री के आने का कारण पूछा। तब मुनि बोले राजन् आपको प्रजा कि चिंता नहीं बस स्त्रियों में मग्न रहते हैं। प्रजा परेशान है।
रोहिणी पर शनि की दृष्टि पहले ही थी, अब उसकी संपूर्ण दृष्टि उस पर छा गई है, यही कारण है कि वर्षा नहीं हो रही है। आप स्वयं अपने राज्य को देखें, लोगों की परेशानियों को सुनें।
इतना कहकर देवर्षि नारदजी चले गए। इसके बाद राजा दशरथ अपने रथ पर सवार होकर दक्षिण दिशा की ओर चले। वह वन में पहुंचे। जहां एक तोता अपनी पत्नी से कह रहा था कि मेरा वचन सुना प्रिये, हम इस वन को छोड़ दूसरे वन में चलते हैं।
तब तोते की पत्नी ने कहा सुनो, मैं इस वन को छोड़कर जाने का कारण बताता हूं। सूर्यवंश में अनेक महान राजा हो चुके हैं। उनके राज्य में कभी कोई जीव दुखी नहीं हुआ है। इतने दिनों बाद अब यहां अंधकार उतर आया है। यहां के राजा को अपनी प्रजा के बारे में कोई भी फ्रिक नही हैं। अतः चलो कहीं और चलते हैं क्योंकि यहां अब पांच वर्षों तक वर्षा नहीं होगी।
इतना कहकर तोते ने जैसे ही नीचे देखा तो वहां राजा दशरथ बैठे थे। तब राजा बोले डरो मत यहीं रहो ऐसा कुछ नहीं होगा। यह कहकर राजा दशरथ अमरावती के लिए निकल पड़े और इंद्र भवन में जा पहुंचे। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र से कहा उठो इंद्र मैं तुमसे युद्ध करने आया हूं। देवताओं ने कहा कि इंद्र आपसे युद्ध नहीं करेंगे। तब राजा दशरथ बोले कि इंद्र अधीन है वो मेरे राज्य में वर्षा क्यों नहीं करते।
तब इंद्र ने कहा कि हे राजन् ध्यान से सुनो रोहिणी पर शनि की पूर्ण दृष्टि है। इस कारण से मैं बारिश नहीं कर सकता। अगर शनिदेव मान जाएं तो बारिश हो सकती है। तब राजा दशरथ शनिदेव के पास गए। राजा को आया देख शनि ने उन्हें गुस्से से देखा। जिससे उनके रथ टूटकर गिर पड़ा और वह घोड़े सहित नीचे आ गए। उनकी रक्षा करने वाला कोई नहीं था। गरुड़ के पुत्र जटायु ने राजा को आसामान से गिरते देख लिया था। तो उन्होंने राजा को पंख फैलाकर राजा को बचा लिया।
लेकिन राजा दशरथ फिर से शनिदेव के पास गए। राजा को जिंदा देख शनिदेव सोचने लगे जरूर यह कोई पुण्यआत्मा हैं। इससे वह काफी प्रसन्न हो गए और राजा दशरथ को शनि ने अपनी पूर्वकथा सुनाई।
इसके बाद उन्होंने राजा से वर मांगने को कहा तो राजा दशरथ ने वर मांगा कि आप रोहिणी पर से अपनी दृष्टि हटा लो ताकि मेरे राज्य में बारिश हो सके। शनिदेव ने ऐसा ही किया। कहते हैं अयोध्या में उस वर्ष काफी
रोहिणी पर शनि की दृष्टि पहले ही थी, अब उसकी संपूर्ण दृष्टि उस पर छा गई है, यही कारण है कि वर्षा नहीं हो रही है। आप स्वयं अपने राज्य को देखें, लोगों की परेशानियों को सुनें।
इतना कहकर देवर्षि नारदजी चले गए। इसके बाद राजा दशरथ अपने रथ पर सवार होकर दक्षिण दिशा की ओर चले। वह वन में पहुंचे। जहां एक तोता अपनी पत्नी से कह रहा था कि मेरा वचन सुना प्रिये, हम इस वन को छोड़ दूसरे वन में चलते हैं।
तब तोते की पत्नी ने कहा सुनो, मैं इस वन को छोड़कर जाने का कारण बताता हूं। सूर्यवंश में अनेक महान राजा हो चुके हैं। उनके राज्य में कभी कोई जीव दुखी नहीं हुआ है। इतने दिनों बाद अब यहां अंधकार उतर आया है। यहां के राजा को अपनी प्रजा के बारे में कोई भी फ्रिक नही हैं। अतः चलो कहीं और चलते हैं क्योंकि यहां अब पांच वर्षों तक वर्षा नहीं होगी।
इतना कहकर तोते ने जैसे ही नीचे देखा तो वहां राजा दशरथ बैठे थे। तब राजा बोले डरो मत यहीं रहो ऐसा कुछ नहीं होगा। यह कहकर राजा दशरथ अमरावती के लिए निकल पड़े और इंद्र भवन में जा पहुंचे। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र से कहा उठो इंद्र मैं तुमसे युद्ध करने आया हूं। देवताओं ने कहा कि इंद्र आपसे युद्ध नहीं करेंगे। तब राजा दशरथ बोले कि इंद्र अधीन है वो मेरे राज्य में वर्षा क्यों नहीं करते।
तब इंद्र ने कहा कि हे राजन् ध्यान से सुनो रोहिणी पर शनि की पूर्ण दृष्टि है। इस कारण से मैं बारिश नहीं कर सकता। अगर शनिदेव मान जाएं तो बारिश हो सकती है। तब राजा दशरथ शनिदेव के पास गए। राजा को आया देख शनि ने उन्हें गुस्से से देखा। जिससे उनके रथ टूटकर गिर पड़ा और वह घोड़े सहित नीचे आ गए। उनकी रक्षा करने वाला कोई नहीं था। गरुड़ के पुत्र जटायु ने राजा को आसामान से गिरते देख लिया था। तो उन्होंने राजा को पंख फैलाकर राजा को बचा लिया।
लेकिन राजा दशरथ फिर से शनिदेव के पास गए। राजा को जिंदा देख शनिदेव सोचने लगे जरूर यह कोई पुण्यआत्मा हैं। इससे वह काफी प्रसन्न हो गए और राजा दशरथ को शनि ने अपनी पूर्वकथा सुनाई।
इसके बाद उन्होंने राजा से वर मांगने को कहा तो राजा दशरथ ने वर मांगा कि आप रोहिणी पर से अपनी दृष्टि हटा लो ताकि मेरे राज्य में बारिश हो सके। शनिदेव ने ऐसा ही किया। कहते हैं अयोध्या में उस वर्ष काफी
Source: Spiritual News & Horoscope 2014
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