Monday, 14 July 2014

Keep love the idea of engagement between

व्यस्तता के बीच भी जरूरतों और सीमाओं को पहचानकर खुशियों के लिए कदम बढ़ाया जा सकता है। यह प्रतिस्पर्धात्मक समय है। लोगों की जिंदगी पहले से ज्यादा व्यस्त हो गई है। दफ्तर में हर महीने बढ़ती जिम्मेदारी, परिवार के प्रति बढ़ता दायित्व और मित्रों के साथ जुड़े रहने की कोशिशें हर चीज हमसे ज्यादा समय की मांग करती है। हमारी व्यस्तता खत्म नहीं होती क्योंकि जिंदगी में लगातार नई जिम्मेदारियां जुड़ती जाती हैं।

जीवन में आगे बढ़ते हुए मिलने वाली जरूरी फुर्सत कम होती जाती है लेकिन काम के ज्यादा दबाव के बीच भी हमें अपनी प्रसन्नाता और खुशियों के लिए प्रयास करना छोड़ना नहीं चाहिए वरना जीवन से ऊब पैदा होने लगती है और जीवन निराशाजनक लगने लगता है। काम को टाला नहीं जा सकता लेकिन उसके साथ जीवन में प्रसन्नाता की तलाश करना बहुत जरूरी है। यह ठीक वैसे ही है कि एक नट रस्सी पर चलते हुए संतुलन साधता है लेकिन उसके चेहरे पर सहजता और मुस्कान बनी रहती है। संतुलन के साथ व्यस्तता के बीच भी खुश रहा जा सकता है।

अपनी जरूरतों को पहचानें आप संतुलित और प्रसन्ना रहना चाहते हैं तो अपनी जरूरतों को पहचानें। सुनिश्चित करें कि आपकी जरूरी आवश्यकताएं समय पर पूरी हों। अति व्यस्त रहने के बावजूद यह महत्वपूर्ण है कि आप पर्याप्त नींद लें और आपका खानपान भी संतुलित रहे। काम का दबाव इतना नहीं हो कि आप दैनिक जरूरतों को पूरा करने का समय भी न पाएं। ऐसी स्थिति है तो उसकी तरफ तुरंत ध्यान देना चाहिए। अगर आप खाने, पहनने और जीने के अंदाज पर गौर करने का समय भी नहीं पा रहे हैं तो आपको इन चीजों के लिए समय निकालना ही चाहिए।

पूर्व योजना के साथ आगे बढ़ें

व्यक्तिगत जीवन में आपको समय तभी मिलेगा जब आप अपने काम को नियत समय में पूरा कर पाएंगे। तभी सहजता और शांति आएगी। इसके लिए पूर्व योजना सबसे अहम है।

अपने कामों के लिए पूर्व योजना बनाने पर आप बिना किसी चूक के साथ उन्हें पूरा कर पाएंगे। एक उपाय यह हो सकता है कि आप अपने कामों की सूची बनाएं ताकि उन्हें याद रख सकें। हालांकि व्यस्त रहने पर सभी चीजें कर पाना तो संभव नहीं होगा लेकिन अगर आपको अपने कामों के बारे में पता है तो उन्हें लेकर आपको चिंता नहीं होगी। भले ही आप उनमें से कुछ ही काम पूरे कर पाएं लेकिन आप कामों के बीच प्राथमिकता भी तय कर पाएंगे।

दबाव में बिखरे नहीं

अत्यधिक व्यस्तता में यह भी होता है कि आप हताशा और गुस्से को परिजनों और मित्रों पर व्यक्त करने लगते हैं। अगर आपके साथ ऐसा कुछ हो रहा है जबकि आप काम से घर पहुंचने पर बहुत ज्यादा थकान और चिड़चिड़ापन महसूस कर रहे हैं तो काम के दौरान हर थोड़ी देर में खुद को सहज करना जरूरी है। काम को अपने ऊपर इतना हावी न होने दें कि आपकी भावनाएं बुरी तरह प्रभावित हों।

किसी भी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में लगे होने के बावजूद छोटे-छोटे ब्रेक लें, खुद को समय दें और तनाव को निकल जाने दें। पूरे दिन काम के बारे में ही सोचते रहने पर मानसिक थकान ज्यादा हो जाती है। अपने दिन में सहजता के लिए एक से ज्यादा चीजों को शामिल करें।

अपने लिए समय निकालें

आप कितने ही व्यस्त क्यों न हों लेकिन अपनी रुचियों के लिए समय निकालना आपको हताशा में नहीं घिरने देगा। सप्ताह में एक दिन की छुट्टी जरूर लें। रोज काम के अलावा अपनी रुचियों के लिए कुछ समय देना चाहिए। शारीरिक कसरत वाली किसी गतिविधि से

जुड़ना तनाव को कम करने में मदद करता है। माना कि आपके पास बहुत काम है लेकिन उसके बावजूद सुबह काम शुरू करने से पहले दस मिनट के लिए श्वास का अभ्यास असंभव नहीं है। इसके अलावा रात को घर पहुंचने के बाद मोबाइल फोन, ईमेल और अन्य चीजों से खुद को दूर रखने का प्रयास करें। अपने काम से यह अलगाव आपके मस्तिष्क को शांति देगा। संगीत या कोई अच्छी किताब आपको व्यस्तता के बावजूद प्रसन्नाता हासिल करने में मदद करेगी। ये सभी चीजें आपको प्रेरित भी करती हैं।

क्षमता से ज्यादा को कहें ना

आज के समय की मुश्किल यही है कि हमसे हमेशा अधिक की उम्मीद बंधी रहती है। भले ही हम मौजूदा स्थितियों में संघर्ष कर रहे हों लेकिन हम पाते हैं कि हमें नया काम मिलता ही जाता है। अगर अपनी प्रसन्नाता को बनाए रखना है तो बोझ से लगातार मुक्त होने का विवेक जगाना चाहिए।

जीवन में हम परिवार, मित्रों और कार्य से दूर नहीं हो सकते हैं लेकिन अतिरिक्त काम को ओढ़ने से पहले विचार कर सकते हैं कि क्या हम उसे सहज रूप में कर सकते हैं। स्पष्ट रूप से मना करने का अर्थ यह नहीं है कि आप जिम्मेदारी से जी चुरा रहे हैं बल्कि इसका अर्थ यही है कि आप सीमा तय कर रहे हैं और अपने जीवन में संतुलन बना रहे हैं। सीमाएं और प्राथमिकताएं तय करके ही आप आनंद पा सकेंगे। व्यस्त रहते हुए खुश रहने का यही मंत्र है।

काम और निजी जीवन में ऐसे साधें संतुलन

    तय करें कि आप कितने अधिक व्यस्त रहना चाहते हैं।

    देखें कि काम के घंटे निजी प्राथमिकताओं को प्रभावित न करें।

    व्यावसायिक लक्ष्य पूरे हों लेकिन सामाजिक मेलजोल भी बना रहे।

    संबंधों के लिए भी समय निकालें। उन्हीं से जिंदगी खुशहाल बनेगी।

    दिन में ऐसा समय जरूर हो जब गैजेट्स और उपकरणों से कटे रहें।

व्यस्त रहो पर आनंदित भी

कभी भी इतने व्यस्त न हो जाना कि दूसरों के बारे में सोच भी न सको।

- मदर टेरेसा

जो अच्छे काम में बहुत व्यस्त रहता है उसके पास अच्छा बनने के लिए समय ही नहीं रहता।

- रवींद्रनाथ टैगोर

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