राशन कार्ड के सत्यापन और निरस्तीकरण को लेकर प्रदेशभर में बवाल मचा हुआ है। उसके लिए सरकारी सिस्टम ही जिम्मेदार है। मालूम हुआ है कि नए कार्ड बनने से लेकर सत्यापन की प्रक्रिया में पुराने कार्डधारकों को शामिल ही नहीं करना था, लेकिन इसमें शुरू से गड़बड़ी की गई। अब इसका खमियाजा कार्डधारकों से लेकर छोटे अधिकारी-कर्मचारियों को भी उठाना पड़ रहा है। इस गड़बड़ी से सरकारी खजाने को नुकसान हुआ, वह अलग है।
छत्तीसगढ़ खाद्य नागरिक आपूर्ति कर्मचारी-अधिकारी संघ के पदाधिकारियों के मुताबिक छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा अधिनियम में स्पष्ट तौर पर लिखा हुआ है कि पुराने कार्डधारकों को प्रभावित नहीं करना है। मतलब पिछले साल जब नए राशन कार्डों के लिए आवेदन भराए गए, तब केवल ऐसे पात्र लोगों के आवेदन लेने थे, जिनके कार्ड नहीं बने हैं, लेकिन पुराने कार्डधारकों के भी आवेदन लिए गए।
प्रदेश के 35 लाख पुराने कार्डधारकों ने नए कार्ड के लिए आवेदन जमा किए। इससे आवेदन जमा करने के लिए अफरा-तफरी मची रही, जबकि आवेदन लेने वाले अमले को पुराने कार्डधारकों से आवेदन जमा ही नहीं करना था। नए कार्ड आने के बाद भी भरी बवाल मचा। पुराने कार्डधारकों को नए कार्ड मिले नहीं, बल्कि उनके पुराने कार्ड भी सरेंडर करा लिए गए।
लोकसभा चुनाव निपटने के बाद राज्य सरकार ने सत्यापन और अपात्रों के कार्ड निरस्त करने की प्रक्रिया शुरू की, तब पुराने कार्डधारकों को शामिल नहीं करना था, लेकिन सत्यापन दल पुराने राशन कार्डधारकों के कार्डों का भी सत्यापन किया। प्रदेश में 12 लाख से अधिक कार्ड निरस्त कर दिए गए, उसमें पुराने राशन कार्डों की संख्या काफी है। इसका मतलब, सरकारी सिस्टम और सत्यापन दलों ने वर्ष 2007 में गरीबी रेखा के लिए हुए सर्वे को ही नकार दिया।
पुराने कार्डधारकों पर खर्च 33.95 करोड़
खाद्य अधिकारियों की मानें तो एक राशन कार्ड की प्रिंटिंग में लगभग चार रुपए खर्च होता है, लेकिन उसके परिवहन, वितरण, डाटा इंट्री, बिजली खपत और अमले के वेतन को मिलाकर यह राशि 97 रुपए तक पहुंच जाती है। सरकारी सिस्टम की गड़बड़ी के कारण 35 लाख पुराने राशन कार्डधारकों के नए कार्ड बनाए गए हैं। इस हिसाब से पुराने कार्डधारकों पर सरकार के अतिरिक्त 33.95 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।
बड़े-छोटे अधिकारियों में शीतयुद्ध की स्थिति
खाद्य सूत्रों से पता चला है कि अपात्रों के कार्ड अब भी पूरी तरह से निरस्त नहीं हुए हैं। इस कारण मुख्यमंत्री खाद्य अधिकारियों से बेहद नाराज हैं। ऐसी स्थिति में बड़े अधिकारी छोटे कर्मचारियों पर ठीकरा फोड़कर खुद को बचाने में लगे हैं। राजनांदगांव में कार्रवाई के बाद छत्तीसगढ़ खाद्य नागरिक आपूर्ति कर्मचारी-अधिकारी संघ छोटे अधिकारियों के बचाव में खुलकर सामने आ गया है। छत्तीसगढ़ खाद्य नागरिक आपूर्ति कर्मचारी-अधिकारी संघ के कार्यकारी अध्यक्ष संजय दुबे ने बताया कि रविवार को एक होटल में संघ की बैठक भी रखी गई है।
राजनांदगांव जैसी स्थिति यहां भी
राजनांदगांव के एक वार्ड में परिवार की संख्या से ज्यादा राशन कार्ड बनने पर छोटे अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई हुई है, लेकिन यह स्थिति रायपुर जिले में भी है। जैसे कि गोबरानवापारा विकासखंड में 6199 परिवार है, लेकिन कार्ड 7685 बन गए हैं। तिल्दा नेवरा में 7458 परिवार के एवज में 8693, खरोरा में 1961 परिवार के एवज में 2430, कुंरा में 1876 परिवार के एवज में 2334, धरसींवा में 36563 परिवार के एवज में 49648, अभनपुर में 39945 परिवार के एवज में 53068, आरंग में 58841 परिवार के एवज में 80591 और तिल्दा में 49235 परिवार के एवज में 54640 राशन कार्ड बना दिए गए हैं।
छत्तीसगढ़ खाद्य नागरिक आपूर्ति कर्मचारी-अधिकारी संघ के पदाधिकारियों के मुताबिक छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा अधिनियम में स्पष्ट तौर पर लिखा हुआ है कि पुराने कार्डधारकों को प्रभावित नहीं करना है। मतलब पिछले साल जब नए राशन कार्डों के लिए आवेदन भराए गए, तब केवल ऐसे पात्र लोगों के आवेदन लेने थे, जिनके कार्ड नहीं बने हैं, लेकिन पुराने कार्डधारकों के भी आवेदन लिए गए।
प्रदेश के 35 लाख पुराने कार्डधारकों ने नए कार्ड के लिए आवेदन जमा किए। इससे आवेदन जमा करने के लिए अफरा-तफरी मची रही, जबकि आवेदन लेने वाले अमले को पुराने कार्डधारकों से आवेदन जमा ही नहीं करना था। नए कार्ड आने के बाद भी भरी बवाल मचा। पुराने कार्डधारकों को नए कार्ड मिले नहीं, बल्कि उनके पुराने कार्ड भी सरेंडर करा लिए गए।
लोकसभा चुनाव निपटने के बाद राज्य सरकार ने सत्यापन और अपात्रों के कार्ड निरस्त करने की प्रक्रिया शुरू की, तब पुराने कार्डधारकों को शामिल नहीं करना था, लेकिन सत्यापन दल पुराने राशन कार्डधारकों के कार्डों का भी सत्यापन किया। प्रदेश में 12 लाख से अधिक कार्ड निरस्त कर दिए गए, उसमें पुराने राशन कार्डों की संख्या काफी है। इसका मतलब, सरकारी सिस्टम और सत्यापन दलों ने वर्ष 2007 में गरीबी रेखा के लिए हुए सर्वे को ही नकार दिया।
पुराने कार्डधारकों पर खर्च 33.95 करोड़
खाद्य अधिकारियों की मानें तो एक राशन कार्ड की प्रिंटिंग में लगभग चार रुपए खर्च होता है, लेकिन उसके परिवहन, वितरण, डाटा इंट्री, बिजली खपत और अमले के वेतन को मिलाकर यह राशि 97 रुपए तक पहुंच जाती है। सरकारी सिस्टम की गड़बड़ी के कारण 35 लाख पुराने राशन कार्डधारकों के नए कार्ड बनाए गए हैं। इस हिसाब से पुराने कार्डधारकों पर सरकार के अतिरिक्त 33.95 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।
बड़े-छोटे अधिकारियों में शीतयुद्ध की स्थिति
खाद्य सूत्रों से पता चला है कि अपात्रों के कार्ड अब भी पूरी तरह से निरस्त नहीं हुए हैं। इस कारण मुख्यमंत्री खाद्य अधिकारियों से बेहद नाराज हैं। ऐसी स्थिति में बड़े अधिकारी छोटे कर्मचारियों पर ठीकरा फोड़कर खुद को बचाने में लगे हैं। राजनांदगांव में कार्रवाई के बाद छत्तीसगढ़ खाद्य नागरिक आपूर्ति कर्मचारी-अधिकारी संघ छोटे अधिकारियों के बचाव में खुलकर सामने आ गया है। छत्तीसगढ़ खाद्य नागरिक आपूर्ति कर्मचारी-अधिकारी संघ के कार्यकारी अध्यक्ष संजय दुबे ने बताया कि रविवार को एक होटल में संघ की बैठक भी रखी गई है।
राजनांदगांव जैसी स्थिति यहां भी
राजनांदगांव के एक वार्ड में परिवार की संख्या से ज्यादा राशन कार्ड बनने पर छोटे अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई हुई है, लेकिन यह स्थिति रायपुर जिले में भी है। जैसे कि गोबरानवापारा विकासखंड में 6199 परिवार है, लेकिन कार्ड 7685 बन गए हैं। तिल्दा नेवरा में 7458 परिवार के एवज में 8693, खरोरा में 1961 परिवार के एवज में 2430, कुंरा में 1876 परिवार के एवज में 2334, धरसींवा में 36563 परिवार के एवज में 49648, अभनपुर में 39945 परिवार के एवज में 53068, आरंग में 58841 परिवार के एवज में 80591 और तिल्दा में 49235 परिवार के एवज में 54640 राशन कार्ड बना दिए गए हैं।
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