हिन्दू पौराणिकता को हम पश्चिमी चश्मे से देखते हैं और इसलिए कोई भी विमर्श संभव ही नहीं हो पाता है। इसे समझने के लिए हमें हिन्दू मान्यताओं से भी सहमत होना होगा जो कि बहुत कठिन है क्योंकि इस समय दुनिया पश्चिमी मान्यताओं पर आधारित है।
यह सबकुछ हैरी पॉटर श्रृंखला के साथ शुरू हुआ था। अचानक ही जादू बच्चों की उत्सुकता का विषय बन गया और फिर जब भारतीय बच्चों ने अपने इर्द-गिर्द जादू की दुनिया को खोजना शुरू किया तो उन्होंने पौराणिक आख्यानों को पाया।
एक ऐसी दुनिया जो हैरतअंगेज पात्रों और उनके कारनामों से भरी है। लेकिन रोचक बात यह है कि इन दिनों ये पौराणिक कथाएं जिस तरह बताई जा रही हैं वह भारतीयों के मस्तिष्क पर योरपियन और अमेरिकन विचार पद्धति का प्रभाव बताती है।
एक उत्साही नृतक से मुझे अपनी मुलाकात याद है जबकि उसने मुझे बहुत आत्मविश्वास के साथ बताया था कि राम एक आर्य आक्रान्ता थे जो कि काली चमड़ी वाले राक्षसों को समाप्त करने के लिए आए थे। इंद्र के नेतृत्व उत्तर-भारतीय शहरों के असुरों को खत्म करने वाले देवों के बारे में उसके मन में ऐसा ही कुछ विचार था।
अब यह नृतक मुझसे चाहता था कि मैं उसे उसकी खींची सीमाओं के दायरे में उसे रामायण का भावार्थ समझाऊं। वे सीमाएं जिनके बारे में उसने तय कर लिया था कि वे तटस्थ भाव से खींची गई हैं और सही हैं।
मेरा उससे कहने का मन नहीं था कि पौराणिकता को इस तरह नस्लीय आधार पर देखने की दृष्टि को 20 वीं सदी के ब्रिटिश विद्वानों ने लोकप्रिय बनाया था। ये विद्वान भारत और उन भारतीयों को समझने के लिए संघर्ष कर रहे थे जो कि अपने ही इतिहास के प्रति अपेक्षाकृत रूप से उदासीन नजर आते हैं।
उन्होंने इस नस्लीय और आक्रांता सिद्धांत को लोकप्रियता दी। गोरी चमड़ी के लोगों की उच्चता पर उनके विश्वास को यह सिद्धांत फिर से पुष्ट भी करता था। यह बताते हुए कि भारत के प्रभावी समुदाय जिनमें विभिन्ना राज्यों में शासन कर रहे मुस्लिम शासक और उनके ब्राह्मण मंत्री सभी पूर्ववर्ती आक्रमणकारियों के वंशज थे, वे भारत पर ब्रिटिश शासन को तर्कसंगत ठहराते हैं।
क्या यह एक समझबूझ के साथ बनाई गई रणनीति थी या सामान्य सिद्धांत, तभी खारिज हो गया था? हम कभी नहीं जान पाएंगे। निश्चित रूप से हम चाय के प्याले पर इस पर कितनी भी बात कर सकते हैं।
फिर मुझे एक नाराज सामाजिक कार्यकर्ता का ई-मेल मिला और उन्होंने पूछा था कि हिन्दू उसकी पूजा क्यों करते हैं जिसने अपनी गर्भवती पत्नी को जंगल में छोड़ दिया था। मैंने अनुभव किया कि चूंकि निर्णय सुना दिया गया है, और मैं पौराणिक व्याख्याकार हूं और हिन्दू भी तो अचानक ही मुझे राम का बचाव करने को कहा गया था। इस विमर्श के लिए सभी मापदंड ई-मेल लिखने वाले ने तय कर दिए थे और वह कुछ भी ऐसा सुनने को अनिच्छुक था जिनसे कि बातचीत के मानक बदल जाते।
रामायण जैसे भारतीय महाकाव्यों की सत्य और न्याय के चश्मे से ऐसी व्याख्या अमेरिकन विद्वानों द्वारा प्रचलित की गई। अमेरिका पृथ्वी पर खुद को ऐसा देश होने का श्रेय देता है जिसने सामतंशाही और राजतंत्र को चुनौती दी और लोकतंत्र आधारित शासन का मॉडल स्थापित किया। और इसलिए अमेरिकी विद्वान जहां कहीं भी एक 'आदर्श राजा" देखते हैं वे बिना विचारे तप्त हो जाते हैं। तभी से राम एक्टिविस्ट के लिए एक विषय हो गए जिन पर बात करने के लिए वे हमेशा तैयार हैं।
इसी तरह कृष्ण के बारे में भी है जो धर्म की स्थापना के लिए नियमों को तोड़ते और मोड़ते हैं। 'धार्मिकता" से योरपियन जो अर्थ लगाते रहे या जो गलत अर्थ निकालते रहे हैं वह भारतीय लेखकों और पत्रकारों तक ऐसे ही आता रहा। यह दक्षिणपंथी चरमपंथियों को भी नाराज करता रहा है और उन्हें उत्तेजित भी करता रहा। कोई भी संतुलित विमर्श संभव ही नहीं है।
हिन्दू पौराणिकता को समझने के लिए हमें हिन्दू मान्यताओं से भी सहमत होना होगा। जो कि बहुत कठिन है क्योंकि आधुनिक विश्व पूरी तरह पश्चिमी मान्यताओं पर आधारित है। जैसे पुनर्जन्म एक हिन्दू मान्यता है। इसलिए रामायण और महाभारत को उस दायरे में देखा जाना चाहिए जहां कि हर घटना पूर्व में घटित घटना का एक क्रम है।
इसलिए शोषित, खलनायक और नायक जैसे शब्द यहां आसानी से लागू नहीं किए जा सकते हैं। ये शब्द तो एकरेखा में चलने वाली निश्चित समय में सिमटी ग्रीक पौराणिक आख्यान जैसी चीजों पर लागू होते हैं। राम और कृष्ण नायक और महानायक नहीं हैं, वे तो अवतार हैं जिसका कि बहुत ही विशिष्ट अर्थ है जो पश्चिमी जगत के लिए कोई मायने नहीं रखता है। परिप्रेक्ष्य को चुनौती देने वाली ऐसी बातचीत बहुत ही दुर्लभ है क्योंकि हमें बहुत ही सरल और कहें कि सरलतम व्याख्या पाने और उसे स्वीकारने के लिए तैयार किया गया है ऐसी कि जो हमारे मन में पहले से मौजूद अनुमानों को पुष्ट करती हों।
यह सबकुछ हैरी पॉटर श्रृंखला के साथ शुरू हुआ था। अचानक ही जादू बच्चों की उत्सुकता का विषय बन गया और फिर जब भारतीय बच्चों ने अपने इर्द-गिर्द जादू की दुनिया को खोजना शुरू किया तो उन्होंने पौराणिक आख्यानों को पाया।
एक ऐसी दुनिया जो हैरतअंगेज पात्रों और उनके कारनामों से भरी है। लेकिन रोचक बात यह है कि इन दिनों ये पौराणिक कथाएं जिस तरह बताई जा रही हैं वह भारतीयों के मस्तिष्क पर योरपियन और अमेरिकन विचार पद्धति का प्रभाव बताती है।
एक उत्साही नृतक से मुझे अपनी मुलाकात याद है जबकि उसने मुझे बहुत आत्मविश्वास के साथ बताया था कि राम एक आर्य आक्रान्ता थे जो कि काली चमड़ी वाले राक्षसों को समाप्त करने के लिए आए थे। इंद्र के नेतृत्व उत्तर-भारतीय शहरों के असुरों को खत्म करने वाले देवों के बारे में उसके मन में ऐसा ही कुछ विचार था।
अब यह नृतक मुझसे चाहता था कि मैं उसे उसकी खींची सीमाओं के दायरे में उसे रामायण का भावार्थ समझाऊं। वे सीमाएं जिनके बारे में उसने तय कर लिया था कि वे तटस्थ भाव से खींची गई हैं और सही हैं।
मेरा उससे कहने का मन नहीं था कि पौराणिकता को इस तरह नस्लीय आधार पर देखने की दृष्टि को 20 वीं सदी के ब्रिटिश विद्वानों ने लोकप्रिय बनाया था। ये विद्वान भारत और उन भारतीयों को समझने के लिए संघर्ष कर रहे थे जो कि अपने ही इतिहास के प्रति अपेक्षाकृत रूप से उदासीन नजर आते हैं।
उन्होंने इस नस्लीय और आक्रांता सिद्धांत को लोकप्रियता दी। गोरी चमड़ी के लोगों की उच्चता पर उनके विश्वास को यह सिद्धांत फिर से पुष्ट भी करता था। यह बताते हुए कि भारत के प्रभावी समुदाय जिनमें विभिन्ना राज्यों में शासन कर रहे मुस्लिम शासक और उनके ब्राह्मण मंत्री सभी पूर्ववर्ती आक्रमणकारियों के वंशज थे, वे भारत पर ब्रिटिश शासन को तर्कसंगत ठहराते हैं।
क्या यह एक समझबूझ के साथ बनाई गई रणनीति थी या सामान्य सिद्धांत, तभी खारिज हो गया था? हम कभी नहीं जान पाएंगे। निश्चित रूप से हम चाय के प्याले पर इस पर कितनी भी बात कर सकते हैं।
फिर मुझे एक नाराज सामाजिक कार्यकर्ता का ई-मेल मिला और उन्होंने पूछा था कि हिन्दू उसकी पूजा क्यों करते हैं जिसने अपनी गर्भवती पत्नी को जंगल में छोड़ दिया था। मैंने अनुभव किया कि चूंकि निर्णय सुना दिया गया है, और मैं पौराणिक व्याख्याकार हूं और हिन्दू भी तो अचानक ही मुझे राम का बचाव करने को कहा गया था। इस विमर्श के लिए सभी मापदंड ई-मेल लिखने वाले ने तय कर दिए थे और वह कुछ भी ऐसा सुनने को अनिच्छुक था जिनसे कि बातचीत के मानक बदल जाते।
रामायण जैसे भारतीय महाकाव्यों की सत्य और न्याय के चश्मे से ऐसी व्याख्या अमेरिकन विद्वानों द्वारा प्रचलित की गई। अमेरिका पृथ्वी पर खुद को ऐसा देश होने का श्रेय देता है जिसने सामतंशाही और राजतंत्र को चुनौती दी और लोकतंत्र आधारित शासन का मॉडल स्थापित किया। और इसलिए अमेरिकी विद्वान जहां कहीं भी एक 'आदर्श राजा" देखते हैं वे बिना विचारे तप्त हो जाते हैं। तभी से राम एक्टिविस्ट के लिए एक विषय हो गए जिन पर बात करने के लिए वे हमेशा तैयार हैं।
इसी तरह कृष्ण के बारे में भी है जो धर्म की स्थापना के लिए नियमों को तोड़ते और मोड़ते हैं। 'धार्मिकता" से योरपियन जो अर्थ लगाते रहे या जो गलत अर्थ निकालते रहे हैं वह भारतीय लेखकों और पत्रकारों तक ऐसे ही आता रहा। यह दक्षिणपंथी चरमपंथियों को भी नाराज करता रहा है और उन्हें उत्तेजित भी करता रहा। कोई भी संतुलित विमर्श संभव ही नहीं है।
हिन्दू पौराणिकता को समझने के लिए हमें हिन्दू मान्यताओं से भी सहमत होना होगा। जो कि बहुत कठिन है क्योंकि आधुनिक विश्व पूरी तरह पश्चिमी मान्यताओं पर आधारित है। जैसे पुनर्जन्म एक हिन्दू मान्यता है। इसलिए रामायण और महाभारत को उस दायरे में देखा जाना चाहिए जहां कि हर घटना पूर्व में घटित घटना का एक क्रम है।
इसलिए शोषित, खलनायक और नायक जैसे शब्द यहां आसानी से लागू नहीं किए जा सकते हैं। ये शब्द तो एकरेखा में चलने वाली निश्चित समय में सिमटी ग्रीक पौराणिक आख्यान जैसी चीजों पर लागू होते हैं। राम और कृष्ण नायक और महानायक नहीं हैं, वे तो अवतार हैं जिसका कि बहुत ही विशिष्ट अर्थ है जो पश्चिमी जगत के लिए कोई मायने नहीं रखता है। परिप्रेक्ष्य को चुनौती देने वाली ऐसी बातचीत बहुत ही दुर्लभ है क्योंकि हमें बहुत ही सरल और कहें कि सरलतम व्याख्या पाने और उसे स्वीकारने के लिए तैयार किया गया है ऐसी कि जो हमारे मन में पहले से मौजूद अनुमानों को पुष्ट करती हों।
Source: Spiritual Hindi News & Horoscope 2014
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