Tuesday, 1 July 2014

Where did mansur ali sjada

त्रेतायुग में भगवान राम की नगरी अयोध्या में है, हनुमान जी का एक ऐसा मंदिर जहां है बजरंगबली की सबसे छोटी प्रतिमा। जिसके दर्शन मात्र से आपकी मनोकामना पूरी हो सकती हैं। यह मंदिर हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है।

6 इंच की इस अद्भुत प्रतिमा के दर्शन के लिए भक्त 76 सीढ़ियों का सफर तय करके, हनुमानगढ़ी मंदिर पर पहुंचते हैं। यह प्रतिमा ज्यादातर फूलों से सुशोभित रहती है। इस मंदिर की दीवारों पर हनुमान चालीसा अंकित है। जो यहां की आस्था को और अधिक बढ़ा देती है।

अष्टसिद्धि और नवनिधि के दाता संकटमोचन के इस मंदिर में दूर-दूर से भक्त अपनी परेशानियां लेकर यहां आते हैं और ले जाते हैं ढेरों खुशियां।

इतिहास में स्पष्ट साक्ष्य नहीं

कहते हैं कि जब भगवान राम लंका जीतकर अयोध्या लौटे तो उन्होंने अपने प्रिय भक्त हनुमान जी को रहने के लिए यही स्थान दिया था। साथ ही यह वरदान दिया कि जो भी भक्त मेरे दर्शन और पूजन के लिए आएगा उसे तुम्हारे दर्शन जरूर करने होंगे तभी उसका अयोध्या आने का पुण्य मिलेगा।

त्रेतायुग के इस मंदिर के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो इतिहास में नहीं मिलते हैं। लेकिन कहा जाता है कि अयोध्या नगरी न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी लेकिन यह स्थान हमेशा अपने मूल रूप में रहा। जो वर्तमान में हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है।

मंसूर अली ने किया था सजदा

संकटमोचन का यह मंदिर का महत्व किसी धर्म विशेष में बंधकर नहीं रहा। जिस किसी ने जो भी मुराद मांगी उसे हनुमानजी ने वही दिया। इतिहास में वर्णित है कि अवध के नबाव मंसूर अली का पुत्र बहुत बीमार पड़ गए। पुत्र के प्राण बचाने के लिए कोई आसरा न देख कर नबाव ने बजरंग बली के चरणों में सजदा (सर झुका) कर दिया।

हनुमानजी नबाव के पुत्र के प्राणों को वापस लौटा दिया। इस सुखद घटना के बाद नबाव ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया बल्कि ताम्रपत्र पर लिखकर घोषणा की। कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और ना ही यहां के चढ़ावे से कर वसूला जाएगा।

No comments:

Post a Comment