Wednesday, 2 July 2014

50 thousand devotees pulled the chariot

पिछले सात साल से भुवनेश्वर वाणीक्षेत्र स्थित जगन्नाथ मंदिर में रथयात्रा का आयोजन किया जा रहा है। इस साल 29 जून रविवार को मंदिर प्रांगण से रथ यात्रा मंदिर के मुख्य संरक्षक एवं कीट्-कीस् के संस्थापक डॉ. अच्युत सामंत द्वारा छेरापंहरा किए जाने के साथ आरंभ हुई।

पहले चरण में देव विग्रहों को पहंडी विजय कराकर रथारूढ़ किया गया और लगभग 50 हजार जगन्नाथ भक्तों ने अपने हाथों से बलभद्रजी के तालध्वज रथ, सुभद्राजी के देवदलन रथ और जगन्नाथजी के नंदिघोष रथ को खींचकर अपने मानव जीवन को सार्थक बनाया। रथारूढ़ चतुर्धा देवों बलभद्रजी, सुभद्राजी, सुदर्शनजी और जगन्नाथजी ने रथ पर ही रात्रि विश्राम किया। दूसरे दिन सोमवार को पहंडी विजय कराकर उन्हें गुंडिचा मंदिर लाया गया, जहां उन्हें महा स्नान कराकर नवीन वस्त्र से सुशेभित किया गया। ऐसी मान्यता है कि लंबी यात्रा के उपरांत देव विग्रह काफी थक जाते हैं इसलिए उनको महास्नान कराया जाता है।

इस शोभायात्रा का हजारों जगन्नाथ ने अपने अपने घर की छतों पर से ही आनंद लिया। मंदिर के प्रशासक श्री केके राउत के अनुसार सब कुछ बहुत अच्छा रहा यहां तक कि मौसम ने भी साथ दिया और कीट्-कीस् के बच्चों के साथ-साथ सभी संकाय प्रमुखों, सदस्यों एवं कर्मचारियों ने स्वेच्छा से इसमें योगदान दिया।

प्राचीन नगरी कटक में पूरी श्रद्धा के साथ जगन्नाथ जी की रथयात्रा संपन्न हुई। कटक के दो प्रमुख जगन्नाथ मंदिर दोलमुंडई पतित पावन जीउ मंदिर एवं चांदनी चौक जगन्नाथ मंदिर के पास हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भी़ड़ उमड़ी।

सुबह से दोनों जगहों पर पुरी की ही तरह तमाम रीति रिवाज के अनुसार सूर्य पूजा व मंगल आरती आदि रस्म अदा की गई। इसके बाद चतुर्धा मूर्ति की पहंडी व छेरा पहंरा किए जाने के बाद अपराह्न् को रथ खींचा गया। दोलमुंडाई रथ सेमीनारी चौक से होकर मौसी मां मंदिर परिसर पहुंचा। ठीक उसी तरह चांदनी चौक रथ भी शांतिपूर्ण तरीके से गुंडिचा मंदिर पहुंचने के बाद शताधिक श्रद्धालुओं की भीड़ दोनों जगह देखी गई। हालांकि कुछ सालों के परंपरा के मुताबिक दोनों जगहों पर माता सुभद्रा के रथ को महिलाओं ने खींचा। रथयात्रा के चलते कमिश्नरेट पुलिस की तरफ से सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे। दोनों जगहों पर धारा विवरण व प्रवचन सुबह से लेकर रात 10 बजे तक चला। दोनों जगहों पर रातभर भीड़ काफी संख्या में श्रद्धालु जमे रहे।

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