Tuesday, 8 July 2014

Hanuman was the son of kunti the unique word bhim

यह तो हम सभी जानते हैं कि हनुमानजी को चिरंजीवी रहने का वरदान प्राप्त था। हनुमानजी जब वृद्ध थे उस समय का जिक्र महाभारत के अरण्यपर्व में मिलता है।

इस वृद्धावस्था में उनकी भेंट भीम से हुई वह वायु पुत्र थे, जो पांच पांडवों में से एक थे। हनुमानजी ने भीम को महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा पर आरूढ़ होकर सहायता करने का भी वचन दिया था।

हनुमान और भीम दोनों पवन पुत्र थे और आपस में भाई। एक बार भीम से द्रोपदी ने दिव्य कमल लाने के लिए कहा, भीम दिव्य कमल लाने के लिए चल दिए। वे रास्ते में चिल्लाते हुए जा रहे थे ताकि शेर आदि भय से दूर चले जाएं। भीम आगे बड़ते गए। थोड़ी दूर जाने पर उन्हें गंधमादन के शिखर पर अत्यंत विशालक कदलीवन मिला, जो कई योजन, लंबा था। गर्जना करते हुए भीम ने कदलीवन में प्रवेश किया।

उसी वन में हनुमानजी रहते थे। भीम की गर्जना सुन कर वह समझ गए कि उनका भाई आ रहा है। हनुमान ने सोचा कि भीम का इस मार्ग से इंद्रपुरी जाना ठीक नहीं है। यह सोचकर वह कदलीवन के छोटे से मार्ग को रोककर लेट गए और अपनी पूंछ पटकर ध्वनि करने लगे, जिसे सुनकर भीमसेन के रोंगटे खड़े हो गए।

भीम ने उन्हें हटने के लिए कहा, पर हनुमान जी ने कहा कि मैं तो पशु हूं। रोगी हूं। तुम बुद्धिमान हो, मैं यहां सुबह से सोया हुआ था तुमने मुझे जगा दिया। इससे आगे मनुष्य का जाने का मार्ग नहीं है तुम कहां जा रहे हो। भीमसेन उसी रास्ते से जाने की जिद करने लगे और नाराज हो गए।

भीम बोले कि मैं कुंती पुत्र हूं। अब तुम मुझे उठकर रास्ता दे दो। पर हनुमानजी नहीं माने। भीम को क्रोध आ गया। तब हनुमानजी ने कहा तुम मुझे लांघकर चले जाओ।

भीम बोले कपिश्रेष्ठ, प्राणियों में ईश्वर का वास होता है इसलिए मैं आपको नहीं लांघ सकता। यदि शास्त्रों में वर्णित भगवान के स्वरूप का ज्ञान मुझे नहीं होता तो मैं तुम्हें तो क्या इस आकाश को छूने वाले पर्वत को भी लांघ जाता जैसे महावीर हनुमान ने सौ योजन विस्तार वाले समुद्र को लांध दिया था। हनुमान मेरे भाई हैं।

हनुमानजी ने कहा कि तब तुम मेरी पूंछ को हटाकर यहां से चले जाओ। भीम ने काफी प्रयत्न किया पर वह पूंछ को हिला भी नहीं पाए। तब हनुमानजी ने अपना परिचय दिया कि मैं तुम्हारा भाई हूं। और उन्होंने भीम को श्रीराम की कथा भी सुनाई।

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