Tuesday, 8 July 2014

Terms and four months of abstinence

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ मास शुक्लपक्ष एकादशी को भगवान विष्णु अगले चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक माह में देवोत्थानी एकादशी पर जाग्रत होते हैं। चूंकि सनातन धर्म में सभी मांगलिक कार्यों का शुभारंभ भगवान विष्णु को साक्षी मानकर किया जाता है तो उनके क्षीरसागर में शयन के लिए जाते ही सारे मंगल कार्यों पर विराम लग जाता है।

भगवान विष्णु के विश्राम के इन चार महीनों को चातुर्मास कहा गया है। आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी या पूर्णिमा अथवाजब सूर्य का मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश होता है तब से चातुर्मास व्रत का आरंभ होता है। इसकी समाप्ति कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को होता है। ये माह ध्यान, साधना, नियम और व्रत के माह हैं। ये चार माह मन को साधने के अभ्यास के महीने हैं।

वर्णन आता है कि संस्कृत में हरि शब्द सूर्य, चंद्रमा, वायु, विष्णु आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त है। हरिशयन का तात्पर्य इन चार माह में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चंद्रमा का तेज क्षीण हो जाने या उनके शयन से भी है। इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती है या सो जाती है। इसकी पुष्टि वैज्ञानिक भी करते हैं कि चातुर्मास में विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग-जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य प्रकाश मद्धिम हो जाता है।

चातुर्मास की इस अवधि में जल में तिल और आंवले का मिश्रण डालकर स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इन महीनों में शरीर और मन को साधने का अभ्यास किया जाता है। यह भी कहा जाता है श्रावण मास में हरी सब्जियां, भाद्र में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक मास में दालों का त्याग करना चाहिए।

चातुर्मास में सभी तरह के कंदमूल, बैंगन, गन्नो का सेवन वर्जित माना गया है। चातुर्मास में व्रती को रात्रि को तारों के दर्शन के बाद एक समय भोजन करना चाहिए। चूंकि यह माना जाता है कि इस अवधि में भगवान विष्णु जल में निवास करते हैं इसलिए तीर्थ स्थानों में स्नान की महिमा मानी जाती है।

माना जाता है कि व्रती चातुर्मास में जिन चीजों का त्याग करता है वह उसे अक्षय रूप में प्राप्त होती है। वृहत्तर अर्थ में ये महीने आत्मा और शरीर को साधने के हैं।

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