सिखों के छठे गुरु श्री हरिगोविंद जी ने आषाढ़, कृष्ण पक्ष प्रथम, संवत 1652 विक्रमी के अनुसार 5 जुलाई, 1595 को पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी एवं माता गंगा जी के घर गुरु की वडाली (अमृतसर) में जन्म लिया था।
शहादत से मात्र पांच दिन पहले 11 जून सन् 1606 को गुरु श्रीअर्जुन देव ने इन्हें मात्र 11 वर्ष की आयु में गुरु-गद्दी प्रदान की और समझाया कि अब अत्याचारियों के विरुद्ध सत्य और मानवता की रक्षा के लिए स्वयं भी शस्त्र धारण करना और सिखों को भी शस्त्रधारी बनाना। गुरु पिता की आज्ञानुसार गुरु हरिगोविंद जी ने सिखों का नेतृत्व संभाला।
अत्याचारियों से संघर्ष करने के लिए गुरु जी ने सिखों को शस्त्रधारी बनाने का कार्य आरंभ किया। गुरु-गद्दी पर विराजमान होते समय छठे गुरु ने दो तलवारें धारण कीं। एक 'मीरी' अर्थात राजनीतिक शक्ति की और दूसरी 'पीरी' अर्थात आध्यात्मिक शक्ति की। बहुत ही कम समय में एक बड़ी सिख सेना तैयार हो गई।
गुरु जी ने अमृतसर में लौहगढ़ नाम का एक किला भी तामीर करवाया। इन सब प्रयासों से सिखों की राजनीतिक शक्ति में अद्भुत वृद्धि हुई।
सिखों की सैनिक तैयारियों ने जहांगीर को चिंतित कर दिया था। उसने गुरु जी को किसी बहाने से आगरा बुलाया और गिरफ्तार करके ग्वालियर के किले में भेज दिया।
ग्वालियर के किले में पहले से ही 52 हिंदू राजा बगावत के आरोप में कैद थे। गुरु जी ने जेल का भोजन लेने से इंकार कर दिया और वे एक घसियारे सिख हरिदास द्वारा परिश्रम से जुटाए गए भोजन को ही ग्रहण करते रहे।
गुरु जी की कैद ने पंजाब में सिखों को आक्रोशित कर दिया। सिख बाबा बुड्ढा जी एवं भाई गुरदास के नेतृत्व में जत्थे बनाकर ग्वालियर जाते और किले की दीवारों को चूमते, परिक्रमा करते और लौट आते।
सिखों के शांतिपूर्ण आंदोलन और कुछ न्यायप्रिय सलाहकारों के समझाने पर जहांगीर गुरुजी को रिहा करने के लिए तैयार हो गया। लेकिन गुरु जी ने कहा कि वे सिर्फ तभी रिहा होंगे जब 52 हिंदू राजाओं को भी उनके साथ रिहा किया जाएगा।
यहां जहांगीर ने एक चाल चली। उसने कहा कि जितने राजा गुरुजी का चोला पकड़कर बाहर आ जाएंगे, उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। भाई हरिदास ने गुरु जी के लिए ऐसा चोला तैयार करवाया, जिसमें 52 कलियां थीं। हर राजा ने एक-एक कली पकड़ी और किले से बाहर आकर मुक्त हो गए। तब से गुरु जी 'बंदी छोड़ दाता' के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
उन्होंने मुगलों के विरुद्ध चार युद्ध लड़े और सभी जीते भी। इस प्रकार उन्होंने सिद्ध कर दिया कि महान योद्धा होने के साथ-साथ दूसरों की भलाई करने व न्याय दिलाने का गुण भी व्यक्ति के भीतर होना चाहिए।
Source: Spirituality News & Aaj Ka Rashifal
शहादत से मात्र पांच दिन पहले 11 जून सन् 1606 को गुरु श्रीअर्जुन देव ने इन्हें मात्र 11 वर्ष की आयु में गुरु-गद्दी प्रदान की और समझाया कि अब अत्याचारियों के विरुद्ध सत्य और मानवता की रक्षा के लिए स्वयं भी शस्त्र धारण करना और सिखों को भी शस्त्रधारी बनाना। गुरु पिता की आज्ञानुसार गुरु हरिगोविंद जी ने सिखों का नेतृत्व संभाला।
अत्याचारियों से संघर्ष करने के लिए गुरु जी ने सिखों को शस्त्रधारी बनाने का कार्य आरंभ किया। गुरु-गद्दी पर विराजमान होते समय छठे गुरु ने दो तलवारें धारण कीं। एक 'मीरी' अर्थात राजनीतिक शक्ति की और दूसरी 'पीरी' अर्थात आध्यात्मिक शक्ति की। बहुत ही कम समय में एक बड़ी सिख सेना तैयार हो गई।
गुरु जी ने अमृतसर में लौहगढ़ नाम का एक किला भी तामीर करवाया। इन सब प्रयासों से सिखों की राजनीतिक शक्ति में अद्भुत वृद्धि हुई।
सिखों की सैनिक तैयारियों ने जहांगीर को चिंतित कर दिया था। उसने गुरु जी को किसी बहाने से आगरा बुलाया और गिरफ्तार करके ग्वालियर के किले में भेज दिया।
ग्वालियर के किले में पहले से ही 52 हिंदू राजा बगावत के आरोप में कैद थे। गुरु जी ने जेल का भोजन लेने से इंकार कर दिया और वे एक घसियारे सिख हरिदास द्वारा परिश्रम से जुटाए गए भोजन को ही ग्रहण करते रहे।
गुरु जी की कैद ने पंजाब में सिखों को आक्रोशित कर दिया। सिख बाबा बुड्ढा जी एवं भाई गुरदास के नेतृत्व में जत्थे बनाकर ग्वालियर जाते और किले की दीवारों को चूमते, परिक्रमा करते और लौट आते।
सिखों के शांतिपूर्ण आंदोलन और कुछ न्यायप्रिय सलाहकारों के समझाने पर जहांगीर गुरुजी को रिहा करने के लिए तैयार हो गया। लेकिन गुरु जी ने कहा कि वे सिर्फ तभी रिहा होंगे जब 52 हिंदू राजाओं को भी उनके साथ रिहा किया जाएगा।
यहां जहांगीर ने एक चाल चली। उसने कहा कि जितने राजा गुरुजी का चोला पकड़कर बाहर आ जाएंगे, उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। भाई हरिदास ने गुरु जी के लिए ऐसा चोला तैयार करवाया, जिसमें 52 कलियां थीं। हर राजा ने एक-एक कली पकड़ी और किले से बाहर आकर मुक्त हो गए। तब से गुरु जी 'बंदी छोड़ दाता' के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
उन्होंने मुगलों के विरुद्ध चार युद्ध लड़े और सभी जीते भी। इस प्रकार उन्होंने सिद्ध कर दिया कि महान योद्धा होने के साथ-साथ दूसरों की भलाई करने व न्याय दिलाने का गुण भी व्यक्ति के भीतर होना चाहिए।
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