Wednesday, 9 July 2014

Such devotees of sri hanuman who was imprisoned

त्रेतायुग में कुंडलपुर के राजा सुरथ बहुत ही परोपकारी और धार्मिक प्रवृति के थे। उनकी प्रजा भी बहुत ही धार्मिक, परोपकारी थी।

एक बार यमराज ने उनकी परीक्षा लेनी चाही और वह राजा सुरथ के दरबार में ऋर्षि का रूप में पहुंच गए और राजा सुरथ से संवाद किया, और उन्होंने अपने दिव्य रूप के दर्शन भी दिए। राजा के संवाद से खुश होकर उन्होंने राजा सुरथ से वरदान मांगने को कहा।

राजा सुरथ ने कहा यमराज से वरदान मांगा कि कि भगवन् ऐसा वर दीजिए कि जब तक मुझे भगवान के दर्शन न हो जाएं तब तक मेरी मृत्यु न हो। यमराज ने उन्हें वरदान दे दिया और कहा कि जल्द ही भगवान विष्णु का रामावतार होगा। वे उस युग में नर-लीला करेंगे। उन्हीं के रूप में तुम्हें भगवान के दर्शन होंगे। ऐसा कहकर यमराज चले गए।

कुछ दिनों बाद राजा सुरथ को जानकारी मिली की अयोध्या में राजा दशरथ के यहां श्रीराम का जन्म हुआ है। उन्हें श्रीराम के बारे में हर घटनाक्रम के बारे में जानकारी मिलती रही। जब राजा राम के अश्वमेघ यज्ञ का समय आया तो राजा सुरथ ने यज्ञ के घोड़े को रोकने का निश्चय किया, पर जल्द ही राजा सुरथ ने घोड़े के संरक्षक शत्रुधन ने बंदी बना लिया। जब यह समाचार अयोध्या पहुंचा तो वहां से अंगद, हनुमानजी भी आए उन्हें भी राजा सुरथ ने बंदी बना लिया।

राजा सुरथ ने बंदियों से कहा कि मैने यह युद्ध राम के लिए ठाना है। मैनें जिस रामस्त्र के बाल पर आपको बांधा है उसे काटने की शक्ति आप सभी में नहीं हैं। आप श्रीराम को यहां बुलाएं ताकि वह यह घोड़ा छु़ड़ा सकें ।

तब राम को यह पता चला कि उनके साथी बंदी बना लिए गए हैं तो वह स्वयं कुंडलपुर की ओर चल पड़े। राम को आता देख राजा सुरथ ने शस्त्र फेंककर राम के चरणों में गिर गए और श्रीराम ने भी उन्हं अपने दिव्य रूप के दर्शन दिए। प्रभु के दर्शन पाकर राजा सुरथ धन्य हो गए और बोले अब उनकी कोई कामना नहीं।

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