यहां सावन के महीने में दूरदराज के श्रद्धालु आकर पूजा करते हैं। दिन भर मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है। रात्रि में भव्य शिवबारात निकाली जाती है। इसका हजारों भक्त गवाह बनते हैं।
भगवान विश्वकर्मा ने स्थापित किया था मंदिर- कर्णेश्वर मंदिर की स्थापना कब हुई। इसका कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने की थी। इसका नाम कर्णेश्वर मंदिर होने के पीछे भी एक पौराणिक कहानी प्रचलित है।
लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व यहां घना जंगल था। उस वक्त यहां के गांव को श्रीगंज के नाम से जाना जाता था। उस समय एक व्यक्ति की गाय खो गई। उसे खोजते वह व्यक्ति यहां आ पहुंचा। उसने देखा कि एक पठार पर गाय दूध दे रही है। इस घटना की सूचना अंग प्रदेश के राजा कर्ण को दी गई। उन्होंने जानकारों को यहां भेजा।
उन्होंने राजा को बताया कि यहां जमीन के नीचे शिवलिंग अवस्थित है। राजा कर्ण के आदेश पर इसके चारों ओर कर्णपुर नामक गांव बसा दिया गया। वहीं मंदिर को कर्णेश्वर नाम दिया गया। बाद में अंग्रेजों ने इस गांव का नाम करौं रख दिया।
Source: Spiritual News & Rashifal 2014
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