डॉ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विवि में बीएड कॉलेजों के मामले में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। बीएड कॉलेजों को अस्थायी मान्यता देने के लिए विवि प्रशासन ने एक निरीक्षण समिति का गठन किया था, जिसने कॉलेजों का निरीक्षण भी नहीं किया और 4 दिनों में 5 जिलों के 19 बीएड कॉलेजों का निरीक्षण प्रतिवेदन बनाकर विवि प्रशासन के सुपुर्द कर दिया। वहीं विवि प्रशासन ने भी आंख बंद कर सभी कॉलेजों को अस्थायी मान्यता दे दी।
बीएड के मामले में समिति के सदस्यों के बयानों में तालमेल नहीं बचा है। इतना ही नहीं छात्र हित का हवाला देकर विवि प्रशासन ने सेंट्रल यूनीवर्सिटी एक्ट 2009 की भी धज्जियां उड़ाई हैं। विवि प्रशासन ने बीएड कॉलेजों की अस्थायी संबद्घता के संबंध में एक 4 सदस्यीय निरीक्षण समिति का गठन किया था।
समिति में चेयरमैन प्रो. आरएस कसाना, संयोजक डायरेक्टर- कॉलेज डेवेलपमेंट काउंसिल प्रो. आरके नामदेव, सदस्य डीन- स्कूल ऑफ एजुकेशनल स्टडीज् प्रो. गनेश शंकर और सदस्य हेड- डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन (बीएड) यूटीडी डॉ. चंद्रकांता जैन को बनाया गया था।
विवि प्रशासन ने यदि कॉलेज के निरीक्षण के लिए कई समितियों का गठन किया था तो डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन (बीएड) से कौन से सदस्य को समिति में चुन लिया, यह बात चौंकाने वाली है, क्योंकि विभाग में सिर्फ दो ही सीनियर अधिकारी हैं। निरीक्षण के मामले में समिति के सदस्यों के अलग-अलग बयान देने से भी साफ होता है कि बीएड में बड़ा फर्जीवाड़ा किया गया है।
इस प्रकार चला अभियान
विवि प्रशासन से 10 मई 2014 तक बीएड की अस्थायी मान्यता के लिए आवेदन करने वाले कॉलेजों को हरी झंडी दी है। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 19 मई और 20 मई को लिखे गए पत्र विवि प्रशासन को 20 मई को ही प्राप्त हो जाते हैं और 20 मई को ही विवि प्रशासन 19 नए और पुराने कॉलेजों को अस्थायी मान्यता दे देता है।
इतना ही नहीं 19 कॉलेजों में उन कॉलेजों के नाम भी शामिल हैं, जिनकी मान्यता पूर्व में विवि प्रशासन ने ही खत्म की थी। भ्रष्टाचार निवारण एवं जनकल्याण मंच के सचिव डॉ. धरणेन्द्र जैन द्वारा लगाई गई आरटीआई में मिली जानकारी में यह तथ्य सामने आए हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. जैन ने इस मामले की शिकायत मानव संसाधन विकास मंत्रालय से की है। सूत्रों के हवाले से पता चला है कि कुछ महीनों पहले एक शासकीय कॉलेज को विवि प्रशासन ने अफिलीएशन देने से इंकार कर दिया था, लेकिन निजी महाविद्यालय के लिए युद्घ स्तर पर कार्रवाई की गई।
कौन सा छात्र हित
सेंट्रल यूनिवर्सिटी एक्ट, 2009 के तहत केन्द्रीय विवि किसी भी संस्थान को अफिलीएशन नहीं दे सकता। यह बात विवि प्रशासन ने खुद भी मप्र शासन के उच्च शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. वीएस निरंजन को लिखे गए पत्र में स्वीकार की है लेकिन लार्जर इंटरेस्ट ऑफ द स्टुडेंट्स कम्युनिटी की बात का उल्लेख करके विवि प्रशासन ने किसी खास मकसद से 19 नए कॉलेजों को शैक्षणिक सत्र 2014-15 के लिए अढाक/टेम्परेरी/इंटरिम अफिलीएशन दिया है।
जब कॉलेजों को अस्थायी मान्यता दी गई थी उस समय बीएड के लिए काउंसलिंग प्रारंभ हुई थी और इसके पहले बीएड के मामले में कॉलेजों का कोई अस्तित्व नहीं था। इस स्थिति में सवाल यह उठता है कि जब कॉलेजों में किसी छात्र को दाखिला ही नहीं दिया गया था तो विद्यार्थियों का इंटरेस्ट कैसे आ गया।
डीसीडीसी से बात करने के बाद ही कुछ बता पाऊंगा। उनसे अभी बात नहीं हो पा रही है। - प्रो. आरएस कसाना, चेयरमेन, निरीक्षण समिति (मीडिया अधिकारी डॉ. कन्हैया त्रिपाठी द्वारा)
मैंने किसी कॉलेज का निरीक्षण नहीं किया है। आपको इस मामले में ज्यादा जानकारी मीडिया अधिकारी दे सकते हैं। - प्रो. आरके नामदेव, संयोजक, निरीक्षण समिति
बीएड के मामले में समिति के सदस्यों के बयानों में तालमेल नहीं बचा है। इतना ही नहीं छात्र हित का हवाला देकर विवि प्रशासन ने सेंट्रल यूनीवर्सिटी एक्ट 2009 की भी धज्जियां उड़ाई हैं। विवि प्रशासन ने बीएड कॉलेजों की अस्थायी संबद्घता के संबंध में एक 4 सदस्यीय निरीक्षण समिति का गठन किया था।
समिति में चेयरमैन प्रो. आरएस कसाना, संयोजक डायरेक्टर- कॉलेज डेवेलपमेंट काउंसिल प्रो. आरके नामदेव, सदस्य डीन- स्कूल ऑफ एजुकेशनल स्टडीज् प्रो. गनेश शंकर और सदस्य हेड- डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन (बीएड) यूटीडी डॉ. चंद्रकांता जैन को बनाया गया था।
विवि प्रशासन ने यदि कॉलेज के निरीक्षण के लिए कई समितियों का गठन किया था तो डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन (बीएड) से कौन से सदस्य को समिति में चुन लिया, यह बात चौंकाने वाली है, क्योंकि विभाग में सिर्फ दो ही सीनियर अधिकारी हैं। निरीक्षण के मामले में समिति के सदस्यों के अलग-अलग बयान देने से भी साफ होता है कि बीएड में बड़ा फर्जीवाड़ा किया गया है।
इस प्रकार चला अभियान
विवि प्रशासन से 10 मई 2014 तक बीएड की अस्थायी मान्यता के लिए आवेदन करने वाले कॉलेजों को हरी झंडी दी है। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 19 मई और 20 मई को लिखे गए पत्र विवि प्रशासन को 20 मई को ही प्राप्त हो जाते हैं और 20 मई को ही विवि प्रशासन 19 नए और पुराने कॉलेजों को अस्थायी मान्यता दे देता है।
इतना ही नहीं 19 कॉलेजों में उन कॉलेजों के नाम भी शामिल हैं, जिनकी मान्यता पूर्व में विवि प्रशासन ने ही खत्म की थी। भ्रष्टाचार निवारण एवं जनकल्याण मंच के सचिव डॉ. धरणेन्द्र जैन द्वारा लगाई गई आरटीआई में मिली जानकारी में यह तथ्य सामने आए हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. जैन ने इस मामले की शिकायत मानव संसाधन विकास मंत्रालय से की है। सूत्रों के हवाले से पता चला है कि कुछ महीनों पहले एक शासकीय कॉलेज को विवि प्रशासन ने अफिलीएशन देने से इंकार कर दिया था, लेकिन निजी महाविद्यालय के लिए युद्घ स्तर पर कार्रवाई की गई।
कौन सा छात्र हित
सेंट्रल यूनिवर्सिटी एक्ट, 2009 के तहत केन्द्रीय विवि किसी भी संस्थान को अफिलीएशन नहीं दे सकता। यह बात विवि प्रशासन ने खुद भी मप्र शासन के उच्च शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. वीएस निरंजन को लिखे गए पत्र में स्वीकार की है लेकिन लार्जर इंटरेस्ट ऑफ द स्टुडेंट्स कम्युनिटी की बात का उल्लेख करके विवि प्रशासन ने किसी खास मकसद से 19 नए कॉलेजों को शैक्षणिक सत्र 2014-15 के लिए अढाक/टेम्परेरी/इंटरिम अफिलीएशन दिया है।
जब कॉलेजों को अस्थायी मान्यता दी गई थी उस समय बीएड के लिए काउंसलिंग प्रारंभ हुई थी और इसके पहले बीएड के मामले में कॉलेजों का कोई अस्तित्व नहीं था। इस स्थिति में सवाल यह उठता है कि जब कॉलेजों में किसी छात्र को दाखिला ही नहीं दिया गया था तो विद्यार्थियों का इंटरेस्ट कैसे आ गया।
डीसीडीसी से बात करने के बाद ही कुछ बता पाऊंगा। उनसे अभी बात नहीं हो पा रही है। - प्रो. आरएस कसाना, चेयरमेन, निरीक्षण समिति (मीडिया अधिकारी डॉ. कन्हैया त्रिपाठी द्वारा)
मैंने किसी कॉलेज का निरीक्षण नहीं किया है। आपको इस मामले में ज्यादा जानकारी मीडिया अधिकारी दे सकते हैं। - प्रो. आरके नामदेव, संयोजक, निरीक्षण समिति
No comments:
Post a Comment