छत्तीसगढ़ में माओवादी मोर्चे पर सीआरपीएफ के साथ भारतीय सेना के पूर्व सैनिक भी माओवादी कारवाई में हिस्सा ले रहे हैं ,राज्य में अब तक सैकड़ों की संख्या में पूर्व सैनिकों को घोर नक्सल प्रभावित इलाकों में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के साथ लगाया गया है ।
ये पूर्व सैनिक न सिर्फ रणनीति के निर्माण में अपनी भूमिका निभा रहे हैं ,बल्कि माओवादियों से आमने सामने के इनकाउंटर में भी इनका इस्तेमाल किया जा रहा हैं ,खबर यह भी है कि लैंड माइंस को डिफ्यूज करने में भी इन पूर्व सैनिकों की मदद ली जा रही है । इस मामले में सबसे चौंका देने वाली जानकारी यह है कि 11र्च को सुकमा में माओवादियों द्वारा सीआरपीएफ की टुकड़ी पर किये गए हमले में मारे गए जवानों में दो जवान इन्स्पेक्टर तिलक राज सिंह और हेड कांस्टेबल लखबीर सिंह भारतीय सेना के पूर्व सैनिक थे।
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भारतीय सेना के पूर्व सैनिक केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की वर्दी में सेवाएँ दे रहे हैं।दरअसल इस पूरे मामले का खुलासा सीआरपीएफ के जवानों और इन पूर्व सैनिकों की शहादत के बाद प्रस्तावित अनुग्रह राशि के वितरण में भेदभाव से सामने आया ।
गौरतलब है कि केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल ने घटना में मारे गए बल के 9 जवानों को 15-15 लाख की अनुग्रह राशि दे दी ,लेकिन इन दो जवानों को एक पैसा भी नहीं दिया गया , इन जवानों के परिजनों ने इसकी शिकायत गृह मंत्रालय में की तो अंतत: काफी जोर मशक्कत के बाद सोमवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह इन दोनों पूर्व सैनिकों को भी एक सामान अनुग्रह राशि देने की घोषणा की ।
नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के द्वारा भारतीय थल सेना के पूर्व जवानों को संविदा के आधार पर नियुक्त किये जाने के मामले की पुष्टि करते हुए गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव (नक्सल ) ने कहा कि ऐसी नियुक्तियां पिछले दो सालों से हो रही हैं ,उनका कहना था कि जहाँ तक मेरी जानकारी है सीआरपीएफ इन जवानों का इस्तेमाल केवल लैंडमाइंस को डिफ्यूज करने में कर रही है ।
महत्वपूर्ण है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गृह मंत्रालय से पूर्व सैनिकों को नक्सल क्षेत्रों में तैनात करने की मांग लम्बे अरसे से की जा रही थी ।नईदुनिया को जानकारी मिली है कि सीआरपीऍफ़ ने इस किस्म की तैनाती केवल छत्तीसगढ़ में की है और जो जवान तैनात किये जा रहे हैं उनमे से ज्यादातर सेना के इन्फेंट्री डिविजन के हैं।
महत्वपूर्ण है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गृह मंत्रालय से राज्य में सूबेदार मेजर से ब्रिगेडियर रैंक तक के सेवानिवृत अधिकारियों की तैनाती की इजाजत मांगी गई है ।हालांकि सरकार का दावा है कि संविदा के आधार पर तैनात किये जाने वाले इन अधिकारियों की तैनाती का मुख्य प्रयोजन माओवादी आपरेशन के लिए नहीं बल्कि अर्धसैनिक बलों और राज्य पुलिस के जवानो को प्रशिक्षण देना होगा।
पता चला है कि राज्य पुलिस ने इस हेतु गृह मंत्रालय से इन्फेंट्री डिवीजन के उन अधिकारियों का नाम माँगा है ,जो छत्तीसगढ़ जैसी भौगोलिक परिस्थितियों में काम करने का अनुभव रखते हो । गृह मंत्रालय के एक अधिकारी कहते हैं कि अगर राज्य सरकार माओवादी आपरेशन के लिए सेना के कुछ अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर लेना भी चाहे तो बिना सेना की मंजूरी कुछ भी संभव नहीं है।
वो कहते हैं "सेना के अधिकारी अपनी मूल नियुक्ति को छोड़ेंगे इसकी सम्भावना कम है।किन अगर राज्य सरकार माओवादी मोर्चे पर पूर्व सैनिकों का इस्तेमाल करना चाहती है तो इसके लिए उन्हें किसी के इजाजत की जरुरत नहीं है ।
ये पूर्व सैनिक न सिर्फ रणनीति के निर्माण में अपनी भूमिका निभा रहे हैं ,बल्कि माओवादियों से आमने सामने के इनकाउंटर में भी इनका इस्तेमाल किया जा रहा हैं ,खबर यह भी है कि लैंड माइंस को डिफ्यूज करने में भी इन पूर्व सैनिकों की मदद ली जा रही है । इस मामले में सबसे चौंका देने वाली जानकारी यह है कि 11र्च को सुकमा में माओवादियों द्वारा सीआरपीएफ की टुकड़ी पर किये गए हमले में मारे गए जवानों में दो जवान इन्स्पेक्टर तिलक राज सिंह और हेड कांस्टेबल लखबीर सिंह भारतीय सेना के पूर्व सैनिक थे।
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भारतीय सेना के पूर्व सैनिक केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की वर्दी में सेवाएँ दे रहे हैं।दरअसल इस पूरे मामले का खुलासा सीआरपीएफ के जवानों और इन पूर्व सैनिकों की शहादत के बाद प्रस्तावित अनुग्रह राशि के वितरण में भेदभाव से सामने आया ।
गौरतलब है कि केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल ने घटना में मारे गए बल के 9 जवानों को 15-15 लाख की अनुग्रह राशि दे दी ,लेकिन इन दो जवानों को एक पैसा भी नहीं दिया गया , इन जवानों के परिजनों ने इसकी शिकायत गृह मंत्रालय में की तो अंतत: काफी जोर मशक्कत के बाद सोमवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह इन दोनों पूर्व सैनिकों को भी एक सामान अनुग्रह राशि देने की घोषणा की ।
नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के द्वारा भारतीय थल सेना के पूर्व जवानों को संविदा के आधार पर नियुक्त किये जाने के मामले की पुष्टि करते हुए गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव (नक्सल ) ने कहा कि ऐसी नियुक्तियां पिछले दो सालों से हो रही हैं ,उनका कहना था कि जहाँ तक मेरी जानकारी है सीआरपीएफ इन जवानों का इस्तेमाल केवल लैंडमाइंस को डिफ्यूज करने में कर रही है ।
महत्वपूर्ण है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गृह मंत्रालय से पूर्व सैनिकों को नक्सल क्षेत्रों में तैनात करने की मांग लम्बे अरसे से की जा रही थी ।नईदुनिया को जानकारी मिली है कि सीआरपीऍफ़ ने इस किस्म की तैनाती केवल छत्तीसगढ़ में की है और जो जवान तैनात किये जा रहे हैं उनमे से ज्यादातर सेना के इन्फेंट्री डिविजन के हैं।
महत्वपूर्ण है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गृह मंत्रालय से राज्य में सूबेदार मेजर से ब्रिगेडियर रैंक तक के सेवानिवृत अधिकारियों की तैनाती की इजाजत मांगी गई है ।हालांकि सरकार का दावा है कि संविदा के आधार पर तैनात किये जाने वाले इन अधिकारियों की तैनाती का मुख्य प्रयोजन माओवादी आपरेशन के लिए नहीं बल्कि अर्धसैनिक बलों और राज्य पुलिस के जवानो को प्रशिक्षण देना होगा।
पता चला है कि राज्य पुलिस ने इस हेतु गृह मंत्रालय से इन्फेंट्री डिवीजन के उन अधिकारियों का नाम माँगा है ,जो छत्तीसगढ़ जैसी भौगोलिक परिस्थितियों में काम करने का अनुभव रखते हो । गृह मंत्रालय के एक अधिकारी कहते हैं कि अगर राज्य सरकार माओवादी आपरेशन के लिए सेना के कुछ अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर लेना भी चाहे तो बिना सेना की मंजूरी कुछ भी संभव नहीं है।
वो कहते हैं "सेना के अधिकारी अपनी मूल नियुक्ति को छोड़ेंगे इसकी सम्भावना कम है।किन अगर राज्य सरकार माओवादी मोर्चे पर पूर्व सैनिकों का इस्तेमाल करना चाहती है तो इसके लिए उन्हें किसी के इजाजत की जरुरत नहीं है ।
Source: Chhattisgarh News & MP Hindi News
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