छत्तीसगढ़ में रहने वाले प्रत्येक नागरिक पर 2000 रुपए से अधिक का कर्ज है। यह कर्ज उसने खुद नहीं लिया है, लेकिन नागरिकों के लिए सुविधाएं और सब्सिडी देने के लिए सरकार ने पिछले पांच सालों में खुले बाजार से 5250 करोड़ रुपए का कर्ज उठाया है, जबकि राज्य की आबादी 2011 की जनगणना के मुताबिक 2.55 करोड़ है।
कर्ज की यह राशि प्रत्येक नागरिक में तकसीम करें तो प्रति व्यक्ति 2059 रुपए हो रही है। सवा आठ फीसदी से 9.50 फीसदी की दर से लिए गए इस कर्ज को जमा करने के लिए हर साल 383 करोड़ रुपए का ब्याज दिया जा रहा है। आर्थिक मामलों के जानकार इसे सरकार की खस्ता आर्थिक नीतियों का परिणाम बता रहे हैं।
वहीं वित्त विभाग का कहना है कि सरकार के बढ़ रहे खर्च को पूरा करने के लिए कर्ज लेने की जरूरत पड़ती है और यह एक सामान्य प्रक्रिया है। वित्त विभाग के प्रमुख सचिव डीएस मिा का कहना है कि छत्तीसगढ़ पूरे देश में सबसे कम लोन लेने वाला राज्य है।
राज्य सरकार ने वर्ष 2009-10 में 700 करोड़ रुपए लिए थे, जिस पर 8.25 प्रतिशत ब्याज लग रहा है। यह राशि 11 नवंबर, 2019 तक वापस करनी है। इसी तरह 2012-13 में 1500 करोड़ की राशि ली, जिस पर 8.65 प्रतिशत ब्याज लग रहा है। मूलधन की वापसी 20 मार्च 2023 तक की जाएगी। वर्ष 2013-14 में 2300 करोड़ रुपए की राशि तीन किस्तों में ली गई है।
इनमें से 800 करोड़ की राशि पर 8.12 प्रतिशत, 700 करोड़ की राशि पर 8.02 प्रतिशत व 800 करोड़ की राशि पर 9.30 प्रतिशत सालाना ब्याज लग रहा है। 2013-14 में ली गई राशि की वापसी 2023 तक होगी। हाल ही में सरकार ने 750 करोड़ का कर्ज लिया है।
आरबीआई की कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (ई कुबेर) के माध्यम से लिए गए इस लोन की ब्याज दर 9.50 फीसदी है। वित्त अफसरों के मुताबिक यह लांगटर्म लोन है जो आरबीआई के शर्तों के हिसाब से भुगतान होता रहेगा।
सब्सिडी का बोझ बढ़ा रहा कर्ज
प्रदेश में हर साल राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ बढ़ रहा है। वर्ष 2013-14 में 2 हजार 274 करोड़ रुपए सब्सिडी के रूप में खर्च किए गए। इस मद में पिछले पांच साल में सवा सौ प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2007-08 में यही सब्सिडी मात्र 800 करोड़ की थी।
सरकार द्वारा गरीबों को सस्ता चावल, किसानों को सस्ती बिजली सहित कई अन्य योजनाओं के लिए खजाने से राशि दिए जाने के कारण सब्सिडी का बोझ बढ़ा है। अर्थ विशेषज्ञों की नजर में सब्सिडी का बढ़ना सकारात्मक तो नहीं माना जा सकता, लेकिन व्यापक जनहित की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए इस तरह राशि खर्च की जाती है। सरकार को मिलने वाले राजस्व व्यय का औसतन दस फीसदी हिस्सा सब्सिडी में खर्च हो रहा है।
गैर योजना और स्थापना व्यय में बढ़ोतरी
गैर योजना खर्च और स्थापना व्यय में लगातार वृद्धि भी सरकार का खर्च बढ़ाने की लिए जिम्मेदार मानी जा रही है। गैर योजना में होने वाला खर्च जो 2007-08 में 7 हजार करोड़ था, जो अब बढ़कर 14 हजार करोड़ हो गया है। स्थापना व्यय में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 2011-12 में कुल बजट का वेतन और मजदूरी में खर्च 28.8 प्रतिशत था, जो अब बढ़कर करीब 30 प्रतिशत हो गया और अकेले वेतन खर्च पर ही पांच साल में औसतन 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- राज्य सरकार के बढ़ रहे खर्च के लिए कर्ज लेने की जरूरत पड़ती है। हर प्रदेश नागरिकों की जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेता है। हम देश में सबसे कम कर्ज लेने वाले राज्य हैं। हमारे यहां कर्ज कुल जीडीपी का 14 फीसदी है, जबकि अन्य राज्यों पर 25 से 26 फीसदी तक कर्ज है।
-डीएस मिश्रा, प्रमुख सचिव, वित्त
- प्रदेश में लगातार बढ़ रहे सब्सिडी और दिए जा रहे छूट के कारण आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। नागरिकों के हितों के लिए की गई घोषणाओं को पूरा नहीं किया गया तो लोग नाराज होंगे। लगातार कर्ज लेना आर्थिक दृष्टि से अच्छा नहीं माना जा सकता, लेकिन सरकार के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।
-जेएल भारद्वाज, अर्थशास्त्री
कब-कब लिए कर्ज
2009-10 में - 700 करोड़
2012-13 में - 1500 करोड़
2013-14 में - 2300 करोड़
2014-15 में - 750 करोड़
राज्य सरकार का बजट
सरकार का कुल बजट - 54710 करोड़
आय- 54661 करोड़
इस वर्ष का घाटा- 49 करोड़
पुराना घाटा- 1915 करोड़
कुल घाटा- 1964 करोड़
बड़ी जिम्मेदारी, जिसमें रुपए जा रहे
धान बोनस- 2400 करोड़
सस्ता चावल- 3200 करोड़
किसानों को ब्याज मुक्त कृषि ऋण- 140 करोड़
किसानों को निःशुल्क बिजली- 300 करोड़
कर्ज की यह राशि प्रत्येक नागरिक में तकसीम करें तो प्रति व्यक्ति 2059 रुपए हो रही है। सवा आठ फीसदी से 9.50 फीसदी की दर से लिए गए इस कर्ज को जमा करने के लिए हर साल 383 करोड़ रुपए का ब्याज दिया जा रहा है। आर्थिक मामलों के जानकार इसे सरकार की खस्ता आर्थिक नीतियों का परिणाम बता रहे हैं।
वहीं वित्त विभाग का कहना है कि सरकार के बढ़ रहे खर्च को पूरा करने के लिए कर्ज लेने की जरूरत पड़ती है और यह एक सामान्य प्रक्रिया है। वित्त विभाग के प्रमुख सचिव डीएस मिा का कहना है कि छत्तीसगढ़ पूरे देश में सबसे कम लोन लेने वाला राज्य है।
राज्य सरकार ने वर्ष 2009-10 में 700 करोड़ रुपए लिए थे, जिस पर 8.25 प्रतिशत ब्याज लग रहा है। यह राशि 11 नवंबर, 2019 तक वापस करनी है। इसी तरह 2012-13 में 1500 करोड़ की राशि ली, जिस पर 8.65 प्रतिशत ब्याज लग रहा है। मूलधन की वापसी 20 मार्च 2023 तक की जाएगी। वर्ष 2013-14 में 2300 करोड़ रुपए की राशि तीन किस्तों में ली गई है।
इनमें से 800 करोड़ की राशि पर 8.12 प्रतिशत, 700 करोड़ की राशि पर 8.02 प्रतिशत व 800 करोड़ की राशि पर 9.30 प्रतिशत सालाना ब्याज लग रहा है। 2013-14 में ली गई राशि की वापसी 2023 तक होगी। हाल ही में सरकार ने 750 करोड़ का कर्ज लिया है।
आरबीआई की कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (ई कुबेर) के माध्यम से लिए गए इस लोन की ब्याज दर 9.50 फीसदी है। वित्त अफसरों के मुताबिक यह लांगटर्म लोन है जो आरबीआई के शर्तों के हिसाब से भुगतान होता रहेगा।
सब्सिडी का बोझ बढ़ा रहा कर्ज
प्रदेश में हर साल राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ बढ़ रहा है। वर्ष 2013-14 में 2 हजार 274 करोड़ रुपए सब्सिडी के रूप में खर्च किए गए। इस मद में पिछले पांच साल में सवा सौ प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2007-08 में यही सब्सिडी मात्र 800 करोड़ की थी।
सरकार द्वारा गरीबों को सस्ता चावल, किसानों को सस्ती बिजली सहित कई अन्य योजनाओं के लिए खजाने से राशि दिए जाने के कारण सब्सिडी का बोझ बढ़ा है। अर्थ विशेषज्ञों की नजर में सब्सिडी का बढ़ना सकारात्मक तो नहीं माना जा सकता, लेकिन व्यापक जनहित की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए इस तरह राशि खर्च की जाती है। सरकार को मिलने वाले राजस्व व्यय का औसतन दस फीसदी हिस्सा सब्सिडी में खर्च हो रहा है।
गैर योजना और स्थापना व्यय में बढ़ोतरी
गैर योजना खर्च और स्थापना व्यय में लगातार वृद्धि भी सरकार का खर्च बढ़ाने की लिए जिम्मेदार मानी जा रही है। गैर योजना में होने वाला खर्च जो 2007-08 में 7 हजार करोड़ था, जो अब बढ़कर 14 हजार करोड़ हो गया है। स्थापना व्यय में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 2011-12 में कुल बजट का वेतन और मजदूरी में खर्च 28.8 प्रतिशत था, जो अब बढ़कर करीब 30 प्रतिशत हो गया और अकेले वेतन खर्च पर ही पांच साल में औसतन 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- राज्य सरकार के बढ़ रहे खर्च के लिए कर्ज लेने की जरूरत पड़ती है। हर प्रदेश नागरिकों की जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेता है। हम देश में सबसे कम कर्ज लेने वाले राज्य हैं। हमारे यहां कर्ज कुल जीडीपी का 14 फीसदी है, जबकि अन्य राज्यों पर 25 से 26 फीसदी तक कर्ज है।
-डीएस मिश्रा, प्रमुख सचिव, वित्त
- प्रदेश में लगातार बढ़ रहे सब्सिडी और दिए जा रहे छूट के कारण आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। नागरिकों के हितों के लिए की गई घोषणाओं को पूरा नहीं किया गया तो लोग नाराज होंगे। लगातार कर्ज लेना आर्थिक दृष्टि से अच्छा नहीं माना जा सकता, लेकिन सरकार के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।
-जेएल भारद्वाज, अर्थशास्त्री
कब-कब लिए कर्ज
2009-10 में - 700 करोड़
2012-13 में - 1500 करोड़
2013-14 में - 2300 करोड़
2014-15 में - 750 करोड़
राज्य सरकार का बजट
सरकार का कुल बजट - 54710 करोड़
आय- 54661 करोड़
इस वर्ष का घाटा- 49 करोड़
पुराना घाटा- 1915 करोड़
कुल घाटा- 1964 करोड़
बड़ी जिम्मेदारी, जिसमें रुपए जा रहे
धान बोनस- 2400 करोड़
सस्ता चावल- 3200 करोड़
किसानों को ब्याज मुक्त कृषि ऋण- 140 करोड़
किसानों को निःशुल्क बिजली- 300 करोड़
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