Friday, 22 August 2014

Forest land has been searching for 100 big projects

छत्तीसगढ़ में शुरू होने वाली सौ से अधिक बड़ी-और मध्यम परियोजनाओं के लिए जंगल की जमीन की तलाश की जा रही है, लेकिन जमीन का रिकार्ड और ब्योरा जमा न होने के कारण जमीन आवंटन के प्रकरण लंबित हैं। सरकार इस कोशिश में है कि पूरे राज्य में जंगल की ऐसी जमीन का ब्योरा हासिल कर एक भूमि बैंक बनाया जाए, इसके बाद यह भूमि औद्योगिक, खनन, सिंचाई, विद्युत आदि की नई परियोजनाओं के साथ रेल तथा सड़क यातायात के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र को दी जा सकेगी। जंगल की जमीन का डायवर्सन किया जाएगा। जंगल की जितनी जमीन ली जाएगी, उससे दोगुने हिस्से में नए जंगल लगाने की योजना है।

राज्य सरकार ने इस काम के लिए प्रदेश के सभी 27 जिला कलेक्टरों से ऐसी वन भूमि का ब्योरा मांगा है, जिसका डायवर्सन किया जा सके। लेकिन एक-दो जिलों से ही इस बारे में सही जानकारी आई है। ऐसे में कई बड़ी एवं महत्वाकांक्षी सरकारी और निजी परियोजनाओं के लिए जमीन का आवंटन मुश्किल हो गया है।

राज्य सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार वन संरक्षण अधिनियम 1980 के प्रावधान के मुताबिक वनभूमि डायवर्शन की अनुमति के कई मामले वन विभाग के समक्ष लंबित हैं। इनमें कोयला, बाक्साईट खनन,बिजली, सिंचाई आदि की करीब सौ परियोजनाएं शामिल हैं।

बनेगा भूमि बैंक

सरकार इस कोशिश में है कि राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों से विभिन्ना परियोजनाओं के लिए हो रही जमीन की मांग पूरी करने के लिए एक भूमि बैंक बनाया जाए। भूमि बैंक में उपलब्ध जमीन परियोजनाओं के लिए देने के बाद उसी जमीन में से गैर वन भूमि क्षतिपूरक वनीकरण के लिए वन विभाग को हस्तांतरित की जाए। राज्य शासन के राजस्व विभाग के सूत्रों के अनुसार जिलों में उपलब्ध वन भूमि का ब्योरा लेने राज्य के सभी 27 जिला कलेक्टरों को आठ माह पूर्व पत्र एवं आवश्यक निर्देश भेजे गए थे। अप्रैल तक केवल एक-दो कलेक्टरों ने निर्देश के मुताबिक जानकारी भिजवाई। अप्रैल से अगस्त के बीच अब तक जानकारी न मिलने से भूमि बैंक बनाने का काम धीमा हो गया है। बताया गया है कि कई जिला कलेक्टरों ने जो जानकारी भेजी, वह गलत निकली।

डायवर्सन योग्य जमीन का ब्योरा मांगा है

राजस्व विभाग के सचिव केआर पिस्दा ने नईदुनिया से चर्चा करते हुए माना कि कलेक्टरों से जो जानकारी मांगी जा रही है वह अब तक सही प्रारूप में नहीं मिली है। एक-दो कलेक्टरों के अलावा किसी ने भी जानकारी नहीं दी है। सरकार भूमि बैंक बनाने का नीतिगत फैसला ले चुकी है। इस पर काम भी जारी है, लेकिन इसकी गति धीमी है।

भूमि सुधार के बिना भूमि बैंक बनाया जाना गलत

सामाजिक कार्यकर्ता और नदी घाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंदोपाध्याय का कहना है कि राज्य भूमि सुधार (लैंड रिफार्म) किए बिना भूमि बैंक बनाया जाना गलत होगा। सरकार द्वारा बनाया जा रहा भूमि बैंक दरअसल विश्व बैंक के एजेंडे पर किया जाने वाला काम है। भूमि हमारी पहचान है, अस्मिता है और इसके जरिए समाज में पकड़ बनी रहती है। भूमि को केवल पूंजी के रूप में देखा जाना गलत है। भूमि बैंक बनाने का मतलब भूमि को छीनना और पूंजीपतियों के हवाले करना है। हमारी अर्थव्यवस्था किसान और वन आधारित है, इस लिहाज से भूमि बैंक बनाने के लिए सरकारी कदम को सराहनीय नहीं कहा जा सकता।

सौ परियोजनाओं के प्रकरण लंबित

प्रधान मुख्य वन संरक्षक रामप्रकाश का कहना है कि करीब सौ बड़ी और मध्यम परियोनाओं के लिए जमीन की मांग के आवेदन लंबित हैं। इन परियोजनाओं के लिए जंगल की जितनी जमीन दी जाएगी, उससे दोगुनी भूमि पर नए जंगल लगाए जाएंगे।

नहीं मिल रहा है फारेस्ट क्लीयरेंस

छत्तीसगढ़ उद्योग महासंघ के चेयरमैन महेश कक्कड़ के अनुसार प्रदेश में फारेस्ट क्लीयरेंस के कई मामले लंबित हैं, लेकिन अनुमति नहीं मिल रही है। इसी वजह से कई बड़े प्रोजेक्ट रुके हैं।

No comments:

Post a Comment