केस-01
अधिवक्ता दुर्गा शंकर सिंह ने सात जुलाई 2014 को स्कूटर ली थी। उसकी कीमत टैक्स के साथ 48.837 रुपए थी। इसके अलावा शो-रूम ने 3,968 रुपए आरटीओ के नाम पर लिया। इसमें रजिस्ट्रेशन फीस 60 रुपए, स्मार्ट कार्ड 120 रुपए और गाड़ी का रजिस्ट्रेशन 2442 होता है। कुल 2622 रुपए होते हैं। 732 रुपए अतिरिक्त लिए गए।
केस-02
संजीव अग्रवाल ने आठ जुलाई 2014 को स्कूटर खरीदी। उसकी कीमत टैक्स के साथ 48,831 रुपए थी। ऑटोमोबाइल कारोबारी ने 3,467 रुपए आरटीओ के नाम से बिल में अलग जोड़ा। रजिस्ट्रेशन फीस, स्मार्ट कार्ड और गाड़ी की रजिस्ट्रेशन फीस का कुल 2,622 रुपए होता है, लेकिन ग्राहक से 845 रुपए ज्यादा लिए गए।
केस-03
मौदहापारा के एक व्यक्ति ने 27 फरवरी 2014 को कार खरीदी। कार की कीमत टैक्स के साथ छह लाख नौ हजार रुपए थी। लेकिन ऑटोमोबाइल शो-रूम ने छह लाख 23 हजार रुपए का बिल काटकर दिया। 14 हजार रुपए अतिरिक्त लिए गए।
नईदुनिया के पास ट्रेड ट्रैक्स और ट्रेड फीस घोटाले से संबंधित तीन प्रकरणों के दस्तावेज हैं। दरअसल, ऑटोमोबाइल शोरूम को वाहन की कीमत के साथ रजिस्ट्रेशन फीस, स्मार्ट कार्ड फीस और गाड़ी का पंजीयन शुल्क ग्राहक के बिल में जोड़ना चाहिए। लेकिन शोरूम तीनों शुल्क के अलावा भी ग्राहकों से वसूली कर रहे हैं। दोपहिया वाहनों में यह राशि आठ सौ रुपए से लेकर एक हजार और चारपहिया में 10 हजार से शुरू है। ग्राहकों को इस अतिरिक्त राशि की जानकारी दी ही नहीं जाती है। जबकि नईदुनिया पड़ताल में मालूम हुआ है कि यह राशि ट्रेड टैक्स और ट्रेड फीस की होती है। इसे ग्राहकों से नहीं लिया जा सकता है। ट्रेड शुल्क और ट्रेड फीस वाहन निर्माता कंपनी और व्यापारी पर लगता है। निर्माता या व्यापारी को आरटीओ में यह टैक्स जमा करना चाहिए।
नईदुनिया के पास आरटीआई के तहत क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी कार्यालय से प्राप्त जानकारी की प्रति भी है। इसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि छत्तीसगढ़ मोटरयान कराधान अधिनियम 1991 की तृतीय अनुसूची में संशोधन किया गया है। किसी भी निर्माता या व्यापारी के कब्जे में हर वाहन पर वार्षिक कर निर्धारण किया गया है। उसके तहत निर्माता और व्यापारी को कर जमा करना होता है। लेकिन, यहां ऑटोमोबाइल शोरूम बेधड़क शासन के अधिनियम की धज्जी उड़ा रहे हैं। इस पर चर्चा के लिए आरटीओ एचएल नायक से उनके मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन, उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।
विभाग को मतलब नहीं
ऑटोमोबाइल के टैक्स घोटाले से शासन को तो नहीं, लेकिन ग्राहकों को नुकसान जरूर हो रहा है। शासन के खाते में ऑटोमोबाइल व्यापारी से नहीं तो ग्राहकों की जेब से टैक्स जमा हो ही रहा है। इसी कारण परिवहन अधिकारियों से शिकायत के बावजूद ऑटोमोबाइल शोरूम पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
परिवहन आयुक्त तक पहुंची शिकायत
स्कूटर क्रेता आरटीआई कार्यकर्ता ी अग्रवाल और अधिवक्ता ी सिंह ने परिवहन आयुक्त से मामले की शिकायत की है। दोनों क्रेताओं ने ऑटोमोबाइल कारोबारियों पर एफआईआर कराने की मांग की है। उनका कहना है कि ऑटोमोबाइल कारोबारी आरटीओ के नाम पर वसूली कर रहे हैं।
इनका कहना है
ट्रेड टैक्स और ट्रेड फीस वैसे तो वाहन निर्माता या ऑटोमोबाइल व्यापारी को जमा करना होता है। लेकिन स्पष्ट जानकारी तत्काल नहीं दे पाऊंगा। इस संदर्भ में कल जानकारी लेकर विस्तृत जानकारी दी जा सकेगी।
एचके राठौर अतिरिक्त परिवहन आयुक्त
अधिवक्ता दुर्गा शंकर सिंह ने सात जुलाई 2014 को स्कूटर ली थी। उसकी कीमत टैक्स के साथ 48.837 रुपए थी। इसके अलावा शो-रूम ने 3,968 रुपए आरटीओ के नाम पर लिया। इसमें रजिस्ट्रेशन फीस 60 रुपए, स्मार्ट कार्ड 120 रुपए और गाड़ी का रजिस्ट्रेशन 2442 होता है। कुल 2622 रुपए होते हैं। 732 रुपए अतिरिक्त लिए गए।
केस-02
संजीव अग्रवाल ने आठ जुलाई 2014 को स्कूटर खरीदी। उसकी कीमत टैक्स के साथ 48,831 रुपए थी। ऑटोमोबाइल कारोबारी ने 3,467 रुपए आरटीओ के नाम से बिल में अलग जोड़ा। रजिस्ट्रेशन फीस, स्मार्ट कार्ड और गाड़ी की रजिस्ट्रेशन फीस का कुल 2,622 रुपए होता है, लेकिन ग्राहक से 845 रुपए ज्यादा लिए गए।
केस-03
मौदहापारा के एक व्यक्ति ने 27 फरवरी 2014 को कार खरीदी। कार की कीमत टैक्स के साथ छह लाख नौ हजार रुपए थी। लेकिन ऑटोमोबाइल शो-रूम ने छह लाख 23 हजार रुपए का बिल काटकर दिया। 14 हजार रुपए अतिरिक्त लिए गए।
नईदुनिया के पास ट्रेड ट्रैक्स और ट्रेड फीस घोटाले से संबंधित तीन प्रकरणों के दस्तावेज हैं। दरअसल, ऑटोमोबाइल शोरूम को वाहन की कीमत के साथ रजिस्ट्रेशन फीस, स्मार्ट कार्ड फीस और गाड़ी का पंजीयन शुल्क ग्राहक के बिल में जोड़ना चाहिए। लेकिन शोरूम तीनों शुल्क के अलावा भी ग्राहकों से वसूली कर रहे हैं। दोपहिया वाहनों में यह राशि आठ सौ रुपए से लेकर एक हजार और चारपहिया में 10 हजार से शुरू है। ग्राहकों को इस अतिरिक्त राशि की जानकारी दी ही नहीं जाती है। जबकि नईदुनिया पड़ताल में मालूम हुआ है कि यह राशि ट्रेड टैक्स और ट्रेड फीस की होती है। इसे ग्राहकों से नहीं लिया जा सकता है। ट्रेड शुल्क और ट्रेड फीस वाहन निर्माता कंपनी और व्यापारी पर लगता है। निर्माता या व्यापारी को आरटीओ में यह टैक्स जमा करना चाहिए।
नईदुनिया के पास आरटीआई के तहत क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी कार्यालय से प्राप्त जानकारी की प्रति भी है। इसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि छत्तीसगढ़ मोटरयान कराधान अधिनियम 1991 की तृतीय अनुसूची में संशोधन किया गया है। किसी भी निर्माता या व्यापारी के कब्जे में हर वाहन पर वार्षिक कर निर्धारण किया गया है। उसके तहत निर्माता और व्यापारी को कर जमा करना होता है। लेकिन, यहां ऑटोमोबाइल शोरूम बेधड़क शासन के अधिनियम की धज्जी उड़ा रहे हैं। इस पर चर्चा के लिए आरटीओ एचएल नायक से उनके मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन, उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।
विभाग को मतलब नहीं
ऑटोमोबाइल के टैक्स घोटाले से शासन को तो नहीं, लेकिन ग्राहकों को नुकसान जरूर हो रहा है। शासन के खाते में ऑटोमोबाइल व्यापारी से नहीं तो ग्राहकों की जेब से टैक्स जमा हो ही रहा है। इसी कारण परिवहन अधिकारियों से शिकायत के बावजूद ऑटोमोबाइल शोरूम पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
परिवहन आयुक्त तक पहुंची शिकायत
स्कूटर क्रेता आरटीआई कार्यकर्ता ी अग्रवाल और अधिवक्ता ी सिंह ने परिवहन आयुक्त से मामले की शिकायत की है। दोनों क्रेताओं ने ऑटोमोबाइल कारोबारियों पर एफआईआर कराने की मांग की है। उनका कहना है कि ऑटोमोबाइल कारोबारी आरटीओ के नाम पर वसूली कर रहे हैं।
इनका कहना है
ट्रेड टैक्स और ट्रेड फीस वैसे तो वाहन निर्माता या ऑटोमोबाइल व्यापारी को जमा करना होता है। लेकिन स्पष्ट जानकारी तत्काल नहीं दे पाऊंगा। इस संदर्भ में कल जानकारी लेकर विस्तृत जानकारी दी जा सकेगी।
एचके राठौर अतिरिक्त परिवहन आयुक्त
Source: Chhattisgarh Hindi News & MP News in Hindi
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