Friday 22 August 2014

3 years ago will not get drinking water from the narmadashipra link

नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना अगले तीन साल तक न तो पूरी क्षमता से चल पाएगी और न ही इंदौर, उज्जैन और देवास के 331 गांवों को पीने का पानी मिल पाएगा। उद्योगों को भी पानी देने का काम भी अभी तक अटका है।

नर्मदा शिप्रा लिंक परियोजना की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने इससे जुड़ी सभी प्रोजेक्ट्स को सिंहस्थ से पहले पूरे करने के निर्देश दिए थे लेकिन 2017 से पहले यह किसी भी हाल में संभव होता नजर नहीं आ रहा है। इसमें सबसे बड़ी योजना है 331 गांवों को घर-घर पीने का पानी पहुंचाना है।

जल बोर्ड निगम द्वारा बनाई गई इस योजना को गति मिलने में समय लगेगा क्योंकि अभी तो सिर्फ आरएफक्यू (रिक्यूवेस्ट फॉर कोटेशन) मंगवाया गया है। इसके तहत 10 एजेंसियों ने आवेदन किया है। इसमें से अधिकतम 6 एजेंसियों का चयन करना है। कंपनियों के लिए फायनेंनशियल नॉर्म्स क्या होंगे, पीपीपी सेल से अनुमति और फिर टेंडर बुलाए जाने की प्रक्रिया के बाद ही काम शुरू हो पाएगा।

49 टंकियों से बंटेगा पानी

इसके लिए 49 टंकियां बनाई जाएंगी। इन टंकियों से पाइप लाइन के जरिए यह गांव-गांव तक पहुंचेगा। पाइप बिछाने के लिए जमीन अधिग्रहण से लेकर सरकारी विभागों की अनुमति में कम से कम तीन साल लगेंगे।

केंद्र सरकार की अनुमति के बाद समय बता पाएंगे

2017 तक तो प्रोजेक्ट की समायवधि है लेकिन यह कब तक पूरा हो पाएगा यह सबकुछ केंद्र से मिलने वाली अनुमति पर निर्भर करेगा।

-राजेश जोशी, डीजीएम, जल निगम बोर्ड

(मालवा निमाड़ में पेयजल परियोजनाओं के प्रभारी)

असर: पांच की जगह 1.5 क्यूमैक्स पानी ही खींच रहे हैं

432 करोड़ की इस योजना में चार पंपिंग स्टेशन बनाए गए हैं। जो नर्मदा से पांच क्यूमैक्स पानी खींचकर शिप्रा तक ला सकता है लेकिन फिलहाल 1.5 क्यूमैक्स ही इस्तेमाल हो रहा है। क्योंकि पानी लेकर उसके इस्तेमाल की कोई व्यवस्था नहीं है। यानी सारे पंपिंग स्टेशन पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं।

नुकसान: सालभर बाद बिजली का बिल सरकार के माथे

पेय जल योजना और पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र को पानी देने की योजना में जितनी देरी होगी सरकार के लिए यह प्रोजेक्ट धीरे-धीरे उतना ही महंगा होता जाएगा। नर्मदा विकास प्राधिकरण और लिंक परियोजना बनाने वाली कंपनी के बीच जो एग्रीमेंट हुआ है उसके तहत ब्रेक इवन के बाद सालभर तक इसके मेंटेनेंस का जिम्मा कंपनी का है। ऐसे में फिलहाल तो बिजली का खर्चा और मेंटेनेंस कंपनी उठा रही है लेकिन उसके बाद यह खर्च सरकार के माथे होगा। इसके बिजली का खर्च लगभग 3 करोड़ रुपए प्रति माह है।


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