Friday 29 August 2014

Dantewada news

 कहने को दक्षिण बस्तर में हॉकी कम लोकप्रिय है, इसके बावजूद साठ के दशक में क्षेत्रवासियों का इस खेल से नाता जुड़ चुका था। जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर बचेली में दक्षिण बस्तर का इकलौता हॉकी मैदान स्थित है। जिसकी आधारशीला रायगढ़ वासियों ने रखीं थीं।

जिले के इस इकलौते हॉकी मैदान की कहानी शुरू होती है 1965 से। जब भारत सरकार का सार्वजनिक उपक्रम एनएमडीसी द्वारा लौह अयस्क खनन के उद्देश्य बचेली में परियोजना स्थापित की गई थी। देश के अलग-अलग प्रांतों के अलावा राज्य के रायगढ़, अम्बिकापुर क्षेत्र के लोग भी नौकरी के लिए यहां पहुंचे थे। उस वक्त लौहनगरी में मनोरंजन का कोई जरिया भी नहीं था, लिहाजा खेल की बारिकियों से अवगत रायगढ़ क्षेत्र के लोगों ने अपने मनोरंजन के लिए हॉकी खेलना शुरू किया था।

खेल जहां नियमित खेला जाने लगा था, आज वह स्थान हॉकी ग्राउंड में तब्दील हो चुका है। इस तरह क्षेत्र में हॉकी की लोकप्रियता बढ़ने लगी। जिन्हें खेलना नहीं आता था सीखने की ललक से वे भी इसे खेलने लगे। इस तरह यहां हॉकी की टीम तैयार हो गई थी। 70 के दशक में रायपुर स्थित दुर्गा कॉलेज की तरफ से इंटर कॉलेज हॉकी टूर्नामेंट खेल चुके परियोजना कर्मी जे खलको की मानें तो वर्ष 1975 में ही हॉकी मैदान के लिए कवायद शुरू हुई थी। इसके बाद धीरे-धीरे यहां मैदान विकसित हो गया था।

1984 में हुई थी पहली प्रतियोगिता

लौह नगरी में पहली हॉकी प्रतियोगिता वर्ष 1984 को हुई थी। एनएमडीसी की तरफ से यहां अंतर परियोजना हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन किया गया था, जिसमें बचेली, किरंदुल सहित द्रोणामलई, पन्ना व इरूगुडू परियोजना से टीम हॉकी खेलने पहुंची थी।

2002 में संघ का गठन

पहली अंतर परियोजना प्रतियोगिता के प्रतिवर्ष इसका आयोजन होने लगा। रायगढ़, जशपुर,अम्बिकापुर क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले परियोजना कर्मी जो हॉकी खेलते थे उनके द्वारा वर्ष 2002 में छोटो नागपुर संघ का गठन किया गया था। इसके बाद यहां स्थानीय स्तर पर प्रतियोगिताएं शुरू हुई, जिसमें दंतेवाड़ा के अलावा बीजापुर, बस्तर, रायपुर, कोरबा, दामनझोड़ी, नाल्को से हॉकी टीमें प्रतियोगिता में हिस्सा लेने पहुंचने लगी थी, लेकिन बस्तर में नक्सलवाद की समस्या के पैर पसारने के साथ दहशत के चलते बीते कुछ वर्षों से प्रतियोगिता में स्थानीय व बस्तर संभाग के कांकेर क्षेत्र से टीमें पहुंचती है।

हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा है, लेकिन क्रिकेट के मुकाबले इस खेल की लोकप्रियता निरंतर घटी है। आदिवासी बहुल इस इलाके में हॉकी को लोकप्रिय बनाने में योगदान देने वाले खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिक्रिया में सरकारी तंत्र को जिम्मेदार बताते है।

उपेक्षा से घटी हॉकी की लोकप्रियता

एक तरफ हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर देश में 29 अगस्त को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं प्रोत्साहन न देकर हॉकी की उपेक्षा की जाती है। इससे हॉकी खिलाड़ियों का मनोबल गिर रहा है। इसके साथ इस खेल की लोकप्रियता भी कम हो रही है।

जे.खलको, परियोजना कर्मी

कॉर्पोरेट कल्चर हावी

हॉकी घरेलू खेल होकर भी कम लोकप्रिय है, वहीं क्रिकेट विदेशी खेल के बावजूद प्रशंसकों की गिनती करोड़ों में होती है। हॉकी को उभारने सरकारें ध्यान नहीं देती है। चूंकि खेलों पर कॉर्पोरेट कल्चर का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। क्रिकेट के लिए इंस्पांसर आगे आते है, वहीं हॉकी के मामले में पीछे हटते है।

अजीत कुजूर, परियोजना कर्मीमॉडल

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