Tuesday 26 August 2014

Chhattisgarh needs 15 thousand doctors

छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है, उसी अनुपात में लोगों के इलाज की जरूरत भी बढ़ती जा रही है। लेकिन सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी पूरे प्रदेश में आमतौर पर सरकारी और निजी क्षेत्र को मिलाकर भी इलाज के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हो पाए हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंडों के अनुसार वर्ष 2020 तक प्रत्येक 1000 की आबादी पर एक चिकित्सक उपलब्ध कराए जाने के लक्ष्य को केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है। इस मान से छत्तीसगढ़ राज्य की आबादी के अनुसार वर्ष 2020 तक लगभग 25 हजार चिकित्सक राज्य में होने चाहिए।

राज्य में वर्तमान में शासकीय तथा निजी क्षेत्र में कुल मिलाकर लगभग साढ़े दस हजार चिकित्सक ही कार्यरत हैं। अगले साढ़े पांच साल में करीब 15 हजार डॉक्टरों की और जरूरत होगी। एक सरकारी अनुमान के हिसाब से 2015 तक चार हजार डॉक्टर और तैयार हो जाएंगे। लेकिन इसके बाद भी प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर ऊंचा उठाने की चुनौती कायम रहेगी।

छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की नियुक्ति स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए चुनौती बनी हुई है। हाल ही में सरकारी अस्पतालों में एमबीबीएस डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए 874 पदों के लिए ऑनलाइन आवेदन बुलाए गए थे। लेकिन मात्र 494 पदों के लिए आवेदन आए। आवेदन करने वालों के दस्तावेजों की जांच के बाद मात्र 190 आवेदक ही पात्र पाए गए। यह पहला अवसर नहीं है। इससे पहले भी डॉक्टरों की भर्ती प्रक्रिया का यही हाल रहा। नतीजतन सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर के पद खाली हैं।

जानकारों के मुताबिक राज्य के बस्तर और सरगुजा जैसे दूरस्थ और सुविधाविहीन और पिछड़े इलाकों में डॉक्टर काम करने नहीं जाना चाहते हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अस्पतालों की अधोसंरचना बदहाल है और इलाज के लिए उपकरणों और दवाओं की कमी है। डॉक्टरों की कमी के कारण इन इलाकों में रहने वालों को इलाज की न्यूनतम सुविधा भी नहीं मिल पा रही है।

मेडिकल कॉलेज मात्र छह

छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों की संख्या में कमी के पीछे बड़ी वजह यह है कि यहां ऐलोपेथी मेडिकल कॉलेजों की संख्या मात्र छह है। आयुर्वेद, यूनानी, नेचरोपेथी, और होम्योपेथी के कॉलेज भी कम हैं। मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों में करीब 50 फीसदी संख्या ऐसे विद्यार्थियों की है, जो दूसरे प्रदेशों से आते हैं, शिक्षा हासिल करने के बाद वे अपने मूल प्रदेश में चले जाते हैं।

जारी हैं सरकारी कोशिशें

इधर, राज्य सरकार ने चिकित्सा सुविधा के विस्तार के प्रयास में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन उससे उम्मीद के मुताबिक सफलता अभी नहीं मिली है। राज्य सरकार ने प्रदेश में ऐलोपेथिक चिकित्सा महाविद्यालयों की स्थापना के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने एक नीति बनाई है। निजी क्षेत्र की संस्थाओं को रियायती दर पर जमीन उपलब्ध कराई जा रही है। इस तरह खुलने वाले मेडिकल कॉलेज के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वहां राज्य सरकार का आरक्षण नियम लागू हो और प्रदेश के 50 प्रतिशत विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाए। इसी तरह निजी क्षेत्र के लिए सुपर स्पेशलिटी अस्पताल और नर्सिंग होम खोलने के प्रावधान भी किए गए हैं।

फैक्ट फाइल

    प्रदेश में मान्यता प्राप्त डॉक्टरों की संख्या-10453 (एलोपेथिक,डेंटल, आयुर्वेद, यूनानी, नेचरोपेथी, होम्योपेथी)

    मेडिकल कॉलेज, डेंटल की संख्या-10

    नर्सिंग कॉलेज की संख्या -60

    एम्स-1

    जिला अस्पताल-27

    सिविल अस्पताल-15

    सिविल डिस्पेंसरी (शहरी) 29

    समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र- 156

    प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र- 783

    उप स्वास्थ्य केंद्र- 5161

    लेप्रोसी होम और अस्पताल-3

    शहरी परिवार कल्याण केंद्र-10

    पाली क्लिनिक-1

    प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर-362

    सामुदयिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ-58

    सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या-12012

और अधिक प्रयास करने की जरूरत

स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला का कहना है कि प्रदेश में पिछले 14 साल में स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार हुआ है, लेकिन अभी और अधिक प्रयास करने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों की कमी है, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। यह भी सही है कि केवल डॉक्टर होने से स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल जाती।

अस्पतालों में पैरा मेडिकल स्टॉफ, नर्स, रेडियोग्राफर सहित अन्य स्टॉफ की जरूरत होती है। जब राज्य बना था, यहां केवल एक मेडिकल कॉलेज था, अब पांच सरकारी और एक निजी मेडिकल कॉलेज है। पहले केवल सौ सीटें थीं जो कई गुना बढ़ी हैं। देश के दूसरे प्रदेशों में भी दूरस्थ इलाकों में इलाज की सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। हमारे यहां भी यही स्थिति है।

चिकित्सा शिक्षा के उदारीकरण में देरी

रायपुर के एक निजी चिकित्सक डॉ. राकेश गुप्ता का कहना है कि शिक्षा के क्षेत्र खासकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के मामले में सरकार ने 25 साल पहले उदारीकरण की जरूरत को समझा, लेकिन चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में इस उदारीकरण को समझने की प्रक्रिया अब भी जारी है। सरकार अभी भी इस दिशा में सोच रही है।

अगर चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में उदारीकरण को पहले ही समझ लिया जाता तो स्थिति कुछ और होती। हमें केवल डॉक्टरों की ही नहीं, बल्कि पैरा मेडिकल स्टॉफ की भी बहुत जरूरत है। जिस अनुपात में डॉक्टर चाहिए, उससे आठ गुना पैरा मेडिकल स्टॉफ की जरूरत है। डॉ. गुप्ता का यह भी कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार सरकारी क्षेत्र में अधिक होना चाहिए। निजी क्षेत्र में विस्तार होने से चिकित्सा का व्यवसायीकरण बढ़ेगा और सामाजिक दायित्व में कमी आएगी। इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

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