Tuesday, 5 August 2014

Branded vs generic drugs only difference in name not quality

अगर आपको यह लगता है कि ब्रांडेड दवाएं ज्यादा फायदा करती हैं और जेनरिक कम असरकारक होती हैं, तो यह आपकी गलतफहमी है। जेनरिक और ब्रांडेड दवाओं में सिर्फ नाम का फर्क है क्वालिटी का नहीं। नेशनल एक्रीडेशन बोर्ड फॉर लेबोरेट्री (एनएबीएल) अप्रूव्ड लैब से जेनरिक दवाएं क्वालिटी में खरी उतरी हैं। इतना ही नहीं एम्स के पास खोले गए एक दवा स्टोर पर ब्रांडेड के मुकाबले जेनरिक दवाएं 20 गुना तक सस्ती मिल रही हैं।

केन्द्र और राज्य सरकारें भी जेनरिक दवाएं आमजन को खिला रही हैं। केन्द्र सराकर के औषधि निर्माण विभाग द्वारा जगह-जगह जन औषधि केन्द्र खोले जा रहे हैं। एनएबीएल लैब से जांच में खरी उतरने वाली दवाओं की सप्लाई ही इन स्टोर्स पर की जा रही है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में निःशुल्क दवा वितरण योजना के तहत जेनरिक दवाओं की सप्लाई की जा रही है। प्रदेश के सभी अस्पतालों में मिलाकर चार से पांच लाख लोगों को रोज जेनरिक दवाएं दी जा रही हैं।

बीस गुना तक कम होती है कीमत

ब्यूरो ऑफ पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग ऑफ (इंडिया) बीपीपीआई के जीएम पीके सांत्रा ने बताया कि जेनरिक और ब्रांडेड दवा में सिर्फ नाम का फर्क होता है। दोनों दवाओं की गुणवत्ता एक जैसी होती है। इसकी वजह यह कि दोनों तरह की दवाओं में एक ही तरह का कच्चा मेटेरियल उपयोग किया जाता है। दवाओं की गुणवत्ता की जांच भी ब्रांडेड दवाओं की तरह ही की जाती है। उन्होंने बताया कि रैपर, कलर और नाम जरूर ब्रांडेड दवाओं के अलग हो सकते हैं।

ब्रांडेड कंपनियां भी बनाती हैं जनरिक दवाएं

फार्मासिस्ट अरुण आदित्य दुबे ने बताया के जेनरिक दवाओं को मतलब यह नहीं है कि स्थानीय स्तर पर बनाई जाती हैं। एक से एक ब्रांडेड कंपनियां भी जेनरिक दवाएं बनाती हैं। फर्क सिर्फ इतना रहता है कि जेनरिक दवा में कंपनी का नाम रहता है, लेकिन दवा का कोई नाम नहीं दिया जाता है।

जेनरिक की बढ़ी मांग

राजधानी में मेडिकल स्टोर संचालक और दवाओं पर रिसर्च कर रहे संदीप सिंह ने बताया कि दोनों तरह की दवाओं में ज्यादा फर्क नहीं है। जेनरिक दवाओं को लेकर लोगों में जागरुकता आई है। उन्होंने बताया कि हृदय रोग और अन्य गंभीर बीमारियों को छोड़कर डॉक्टर भी ब्रांडेड दवा नहीं लिख रहे हैं। ऐसे में मेडिकल स्टोर संचालकों को चाहिए कि वे मरीज को ब्रांडेड दवा न दें। उन्होंने कहा कि मरीज भी मेडिकल स्टोर संचालक से यह पूछ सकते हैं उसे ब्रांडेड दवा दी जा रही है या जेनरिक।

दवाओं की कीमत प्रति 10 टेबलेट (रुपए में)

दवा का नाम ब्रांडेड जेनरिक

डाइक्लोफेनेक 100 एमजी- 39.73- 4.43

पेरासिटामाल 500 एमजी- 18.84- 5.60

ट्रामाडोल 50 एमजी- 78- 3.49

अमोक्सीसिलिन 500 एमजी- 65.45-37

रेबीप्रोजोल 20एमजी- 57.84-6.12

सिट्रीजिन 10 एमजी 30 3

एनालप्रिल 5 एमजी 31 7

एटोरवास्टिन 20 एमजी 175 10

अलवेंडाजोल 400 एमजी 132 20

डोमपेरिडान 10 एमजी 25 3

सिप्रोफ्लाक्सासिन 250 एमजी 47 16

निमेसुलाइड 100 एमजी 33 3

एजिथ्रोमाइसिन 500 एमजी 265 105

लोसार्टन 50 एमजी 67 7

ब्रांडेड की इसलिए ज्यादा है कीमत

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के औषधि निर्माण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि दवा कंपनियां अपने ब्रांड नाम के विज्ञापन पर ज्यादा पैसा खर्च करती है। ब्रांडेड दवाओं पर टैक्स भी ज्यादा होता है। इस कारण उनकी कीमत ज्यादा होती है। ब्रांडेड दवाओं के प्रमोशन के लिए एमआर नियुक्त किए जाते हैं।

जेनरिक और ब्रांडेड दवाओं में सिर्फ नाम का अंतर है। बीमारियों पर इनका असर एक समान होता है। मल्टीनेशनल दवा निर्माता कंपनियां ज्यादा कमाई के लालच में शुरू से ही जान-बूझकर जेनरिक दवाओं को लेकर भ्रांति फैला रही हैं। जबकि वे भी नाम बदलकर जेनरिक दवाएं ही बेच रही हैं। ये कंपनियां दवाओं के स्ट्रिप पर दवा की मूल कीमत का 70 से 80 गुना तक ज्यादा मूल्य अंकित रहता है। महंगाई के दौर में जेनरिक दवाओं से आम आदमी को काफी राहत मिलेगी। सरकार का जेनरिक दवाओं के स्टोर खोलने का फैसला सराहनीय है। मैं और मेरा परिवार पांच साल से जेनरिक दवाएं खा रहे हैं और इनका असर ब्रांडेड दवाओं की तरह ही है।

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