Wednesday, 6 August 2014

MP government will take cases less then three years

सालों से विभिन्न न्यायालयों में लंबित ऐसे प्रकरणों को राज्य सरकार वापस लेने जा रही है, जिनमें तीन साल से कम सजा का प्रावधान है। इसके लिए गृह विभाग ने कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति गठित की है। इसमें एसपी और जिला अभियोजन अधिकारी को सदस्य बनाया गया है। समिति 30 जून 2011 से पहले के ऐसे मामलों को वापस लेने की अनुशंसा करेगी, जिनमें सालों से आरोपी, शिकायकर्ता और गवाह न्यायालय में उपस्थित नहीं हो रहे हैं। इस वजह से न्यायालयों का काम-काज बाधित हो रहा है।

गृह विभाग द्वारा जारी निर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि समिति उन प्रकरणों पर कतई विचार नहीं करेगी जो भ्रष्टाचार, सार्वजनिक निधि का दुरूपयोग, आर्थिक अपराध, घरेलू हिंसा, टैक्स अधिनियम एवं राज्य के विरूद्ध अन्य प्रकार से संबंधित हैं। विभाग द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार कलेक्टर हर तीन माह में न्यायालय में बेवजह लंबित प्रकरणों को वापस लेने के संबंध में बैठक करेंगे।

जिस भी प्रकरण को वापस लेना है उसके लिए कलेक्टर को पूरा कारण बताना होगा। प्रकरणों की संख्या अधिक होने पर कलेक्टर एक अतिरिक्त प्रकोष्ठ का गठन कर सकेंगे। यह प्रकोष्ठ प्रकरणों की स्क्रूटनी कर कलेक्टर की समिति में रखेगा। प्रकरण को वापस लेने की मंजूरी मिलने के बाद अभियोजन अधिकारी इन्हें वापस लेने के लिए न्यायालय में आवेदन करेगें।

इन मामलों के केस होंगे वापस

-मप्र पुलिस अधिनियम के प्रकरण।

-सार्वजनिक जुआ अधिनियम के प्रकरण।

-मप्र दुकान एवं स्थापना अधिनियम के प्रकरण।

-मप्र माप एवं तौल अधिनियम के प्रकरण।

-मोटरयान अधिनियम के प्रकरण।

-आईपीसी के ऐसे मामले जिनमें तीन साल का जुर्माना और सजा शामिल है।

-आबकारी अधिनियम की धारा 34-38 के एससी-एसटी क्षेत्रों के आदिवासियों के विरुद्ध दर्ज ऐसे मामले जिनमें 49 बल्क लीटर तक की अवैध शराब जब्त की गई है।

-आर्म्स एक्ट की धार 25(1) (बी) के ऐसे मामले जिनमें अधिकतम तीन वर्ष की सजा हो।

2 comments:

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