केन्द्र सरकार ने अल्ट्रा मेगा इस्पात संयंत्र स्थापित करने के लिए गीदम को चिन्िहत कर फिर से दक्षिण बस्तर के लोगों में अच्छे दिनों की उम्मीदें जगा दी है। नक्सलवाद की विकराल समस्या से जूझ रहा दक्षिण बस्तर में सामाजिक व आर्थिक विकास में तेजी आएगी एवं स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार के व्यापक अवसर भी प्रदान होगें।
लेकिन डेढ़ दशक पूर्व भी गीदम के हीरानार गांव में एनएमडीसी द्वारा इस्पात संयंत्र लगाने की कोशिश हुई थी। किन्तु पुर्नस्थापना व पुनर्वास का भारी विरोध होने के कारण इस्पात संयंत्र लगाने की योजना धरी रह गई। जो अब नगरनार में संयंत्र के रूप में आकार ले रहा है। इसी तरह भांसी-धुरली में बहुराष्ट्रीय कंपनी एस्सार स्टील द्वारा इस्पात संयंत्र लगाने के लिए वर्ष 2006 से जमीन अधिग्रहण की कोशिश में लगी हुई है। उसे भी अब तक सफलता नहीं मिली है। यहां नक्सली दबाव में ग्रामीणों ने संयंत्र स्थापना का भारी विरोध किया। जिससे चलते एस्सार स्टील को संयंत्र के लिए जमीन नहीं मिल पाई है। बोधघाट विद्युत परियोजना का काम भी विरोध के चलते दशकों से बंद पड़ा हुआ है।
पूर्व की परियोजनाओं का अब तक दक्षिण बस्तर में क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। ऐसे में केन्द्र की घोषणा पर अमल करने में राज्य सरकार को भारी मशक्कत करनी होगी। पहले के अनुभव को देखते हुए शासन को इस्पात संयंत्र स्थापित करने के लिए शासकीय भूमि की तलाश करनी होगी। जिससे वह बिना किसी बाधा के इस योजना को अमलीजामा पहना सके।
एक नजर पिछली परियोजनाओं पर
केस - 1
बोधघाट परियोजना
तीन दशक पूर्व बारसूर में इंद्रावती नदी पर पनबिजली परियोजना स्थापित करने की योजना बनाई गई थी। जिसकी प्रारंभिक तैयारियों के लिए करोड़ों रुपये भी खर्च किए गए। हजारों वृक्षों की कटाई से पर्यावरण को नुकसान पहुंचने के चलते केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय से इसकी मंजूरी नही मिली। जिसके कारण यह परियोजना ठप पड़ी हुई है। कुछ साल पूर्व एक निजी कंपनी ने छोटी-छोटी परियोजनाएं स्थापित कर बिजली उत्पादन करने में रूचि दिखाई थी। लेकिन नक्सलियों के दखल के बाद उसे भी अपना काम समेटना पड़ा है।
केस - 2
हीरानार स्टील प्लांट
जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर गीदम ब्लॉक के ग्राम हीरानार में एनएमडीसी द्वारा इस्पात संयंत्र की स्थापना की परिकल्पना डेढ़ दशक पूर्व की गई थी। संयंत्र स्थापना के लिए 1500 हेक्टेयर भूमि की आवश्कता थी। यहां पर भी भूस्वामियों ने जमकर विरोध किया। कई बार विरोध व समर्थन में रैलियां व सभाएं हुई। टकराव बढ़ता देख एनएमडीसी ने हीरानार में संयंत्र स्थापना का ख्याल छोड़ दिया।
केस - 3
एस्सार स्टील प्लांट
भांसी-धुरली में एस्सार कंपनी ने 3.2 मिलियन टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता वाली स्टील प्लांट लगाना प्रस्ताव शासन को दिया था। कंपनी द्वारा इस संयंत्र में 6362 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश किया जाना था। संयंत्र की स्थापना के लिए पहले चरण में 600 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता थी। इसमें 389.11 हेक्टेयर निजी एवं 211.83 हेक्टेयर शासकीय भूमि का चयन किया गया। वर्ष 2006 में जिला पुनर्वास समिति ने इसे अनुमोदित किया था। लेकिन निजी भूमि मालिकों एवं नक्सलियों के भारी विरोध के बाद आठ वर्षो बाद भी एस्सार को कार्य प्रारंभ करने के लिए एक इंच जमीन भी नहीं मिल पाई है।जिसके चलते यह बड़ी परियोजना भी अब दम तोड़ती जा रही है।
लेकिन डेढ़ दशक पूर्व भी गीदम के हीरानार गांव में एनएमडीसी द्वारा इस्पात संयंत्र लगाने की कोशिश हुई थी। किन्तु पुर्नस्थापना व पुनर्वास का भारी विरोध होने के कारण इस्पात संयंत्र लगाने की योजना धरी रह गई। जो अब नगरनार में संयंत्र के रूप में आकार ले रहा है। इसी तरह भांसी-धुरली में बहुराष्ट्रीय कंपनी एस्सार स्टील द्वारा इस्पात संयंत्र लगाने के लिए वर्ष 2006 से जमीन अधिग्रहण की कोशिश में लगी हुई है। उसे भी अब तक सफलता नहीं मिली है। यहां नक्सली दबाव में ग्रामीणों ने संयंत्र स्थापना का भारी विरोध किया। जिससे चलते एस्सार स्टील को संयंत्र के लिए जमीन नहीं मिल पाई है। बोधघाट विद्युत परियोजना का काम भी विरोध के चलते दशकों से बंद पड़ा हुआ है।
पूर्व की परियोजनाओं का अब तक दक्षिण बस्तर में क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। ऐसे में केन्द्र की घोषणा पर अमल करने में राज्य सरकार को भारी मशक्कत करनी होगी। पहले के अनुभव को देखते हुए शासन को इस्पात संयंत्र स्थापित करने के लिए शासकीय भूमि की तलाश करनी होगी। जिससे वह बिना किसी बाधा के इस योजना को अमलीजामा पहना सके।
एक नजर पिछली परियोजनाओं पर
केस - 1
बोधघाट परियोजना
तीन दशक पूर्व बारसूर में इंद्रावती नदी पर पनबिजली परियोजना स्थापित करने की योजना बनाई गई थी। जिसकी प्रारंभिक तैयारियों के लिए करोड़ों रुपये भी खर्च किए गए। हजारों वृक्षों की कटाई से पर्यावरण को नुकसान पहुंचने के चलते केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय से इसकी मंजूरी नही मिली। जिसके कारण यह परियोजना ठप पड़ी हुई है। कुछ साल पूर्व एक निजी कंपनी ने छोटी-छोटी परियोजनाएं स्थापित कर बिजली उत्पादन करने में रूचि दिखाई थी। लेकिन नक्सलियों के दखल के बाद उसे भी अपना काम समेटना पड़ा है।
केस - 2
हीरानार स्टील प्लांट
जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर गीदम ब्लॉक के ग्राम हीरानार में एनएमडीसी द्वारा इस्पात संयंत्र की स्थापना की परिकल्पना डेढ़ दशक पूर्व की गई थी। संयंत्र स्थापना के लिए 1500 हेक्टेयर भूमि की आवश्कता थी। यहां पर भी भूस्वामियों ने जमकर विरोध किया। कई बार विरोध व समर्थन में रैलियां व सभाएं हुई। टकराव बढ़ता देख एनएमडीसी ने हीरानार में संयंत्र स्थापना का ख्याल छोड़ दिया।
केस - 3
एस्सार स्टील प्लांट
भांसी-धुरली में एस्सार कंपनी ने 3.2 मिलियन टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता वाली स्टील प्लांट लगाना प्रस्ताव शासन को दिया था। कंपनी द्वारा इस संयंत्र में 6362 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश किया जाना था। संयंत्र की स्थापना के लिए पहले चरण में 600 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता थी। इसमें 389.11 हेक्टेयर निजी एवं 211.83 हेक्टेयर शासकीय भूमि का चयन किया गया। वर्ष 2006 में जिला पुनर्वास समिति ने इसे अनुमोदित किया था। लेकिन निजी भूमि मालिकों एवं नक्सलियों के भारी विरोध के बाद आठ वर्षो बाद भी एस्सार को कार्य प्रारंभ करने के लिए एक इंच जमीन भी नहीं मिल पाई है।जिसके चलते यह बड़ी परियोजना भी अब दम तोड़ती जा रही है।
Source: Chhattisgarh Hindi News & MP Hindi News
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