Monday, 11 August 2014

Sister donates her kidney and saved her brothers life

रक्षा बंधन, एक ऐसा पर्व जिसमें बहन भाई को रक्षा-सूत्र बांधती है और भाई उसकी हर मुश्किल घड़ी में रक्षा का वचन देता है। बहनें सालभर इस पर्व का इंतजार करती हैं, क्योंकि प्यार के साथ उन्हें भाइयों से तोहफा भी मिलता है। लेकिन भोपाल निवासी एक बहन ने रायपुर निवासी अपने भाई को ऐसा तोहफा दिया कि भाई ताउम्र उसे नहीं भूल पाएगा। डायलिसिस पर जिंदगी की जंग लड़ रहे भाई को बचाने के लिए बहन ने अपनी किडनी दी और आज इस बहन की राखी सलामत है।

बावन वर्षीय रवींद्र फरतारे आज बिल्कुल स्वस्थ्य हैं, पहले की तरह अपना कारोबार संभाल रहे हैं। एक समय था, जब उन्हें एहसास हो चुका था कि उनका बच पाना मुश्किल है। वे हार चुके थे, पूरा परिवार अपने मुखिया की लंबी उम्र की कामना कर रहा था, मंदिर-देवालयों में पूजा-पाठ कर रहा था। क्योंकि रवींद्र डायलिसिस पर पहुंच चुके थे। वजन 78 किलो से घटकर 48 किलो हो गया था। रायपुर के डॉक्टर्स इलाज के नाम पर प्रयोग कर रहे थे और स्थिति बिगड़ती चली जा रही थी।

अच्‍छे अस्‍पताल की जानकारी जुटाने में लगे

ऐसे में परिवार उन्हें इलाज के लिए जयपुर ले गया, जहां 3 महीने तक डायलिसिस चली और जवाब मिला कि किडनी ने काम करना बंद कर दिया है। इसका एक मात्र इलाज है किडनी ट्रांसप्लांट। यह पता लगते ही परिवार का हर सदस्य किडनी देने तैयार हो गया। रवींद्र बताते हैं कि उनका नौकर तक किडनी देने तैयार था। फिर परिवार के सदस्यों ने किडनी ट्रांसप्लांट के लिए अच्छे अस्पताल की जानकारी जुटाने में लग गए। पता चला कि हैदराबाद के एक अस्पताल में बेहतर सुविधा है।

रवींद्र को हैदराबाद ले जाया गया। अस्पताल में सारी जांच हुईं। किडनी तो सब देने तैयार थे, पर सवाल था मैच किसकी किडनी करेगी। रवींद्र की सबसी छोटी बहन वंदना गलांडे भोपाल में रहती हैं, वे सरकारी शिक्षिका हैं। वंदना ने भी मन बना लिया था कि वे भाई को किडनी देंगी, उनके पति अविनाश गलांडे ने उन्हें प्रोत्साहित किया। 47 साल की वंदना हैदराबाद पहुंचीं, उनकी सारी जांच हुई, फिर डॉक्टर्स ने खुशखबरी दी कि वंदना किडनी डोनेट कर सकती हैं।

फिर किडनी दान करने के संबंध में भोपाल और रायपुर जिला प्रशासन में आवेदन किया गया। कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद किडनी ट्रांसप्लांट कर दिया गया। व्हील चेयर पर पहुंच चुके रवींद्र आज स्वस्थ हैं। खुद को फिर से पुरानी दिनचर्या में शामिल कर लिया है और वंदना छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ मुश्किलों का डटकर सामना करने का पाठ पढ़ा रही हैं।

मैंने कुछ भी नहीं किया- वंदना गलांडे, रवींद्र फरतारे की बहन।

'नईदुनिया' ने इनसे फोन पर बातचीत की-

जब मैं अपने भाई को देखती हूं तो मैं खुश हो जाती हूं। यह सब ऊपर वाला करवा देता है, मैंने कुछ भी नहीं किया। शायद यह पिछले जन्म का कुछ होगा। लेकिन इतना बड़ा फैसला लेना किसी भी महिला वह शादीशुदा हो, तब ही मुमकिन है जब आपका परिवार-पति सपोर्ट करें। इस फैसले में मेरे पति का सबसे बड़ा योगदान है, जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया। किडनी डोनेट करने का फैसला लेने के बाद मेरे अंदर एक मिनट के लिए कोई डर नहीं आया। बस मेरा भाई सलामत रहे, सदा खुश रहे।

ऐसी बहन सबको मिले- रवींद्र फरतारे

मेरे मन में आ चुका था कि अब बच पाना मुश्किल है। लेकिन इसे चमत्कार ही कहिए कि मेरी बहन ने मुझे नया जीवन दिया। आज राखी है, मैं उसे क्या तोहफा दूंगा, उसने जो दिया है... (कहते-कहते उनकी आंखें भर आईं)। आज भाई-भाई के लिए नहीं करता, हजार बार सोचता है। मैं जिंदा हूं तो अपनी बहन की वजह से।


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