शहर में हर साल सैकड़ों सांप निकलते हैं, जिनमें 50 फीसदी जहरीले होते हैं। अगर इन्हें समय रहते नहीं पकड़ा गया तो इनका हमला जानलेवा साबित सकता है। जहरीले सांपों को काबू में करना और इन्हें नुकसान पहुंचाएं बगैर सुरक्षित ढंग से न सिर्फ पकड़ना, बल्कि जंगलों तक छोड़ने का जिम्मा उठाया है, शहर के कुछ युवाओं ने। नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी नाम की यह संस्था बीते 10 साल से सांपों को पकड़ने का काम कर रही है।
इस संस्था के सदस्यों में कोई मैकेनिकल इंजीनियर है तो कोई बी.एससी, बी.कॉम डिग्रीधारी। ये न सिर्फ सांपों को पकड़ते हैं, बल्कि लोगों को जागरूक भी करते हैं। समझाते हैं कि सांपों को न मारें, उन्हें दुश्मन न समझें। लेकिन इन युवाओं को इस रेस्क्यू काम के लिए कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है, ये स्वयं के पैसों से मौके तक पहुंचते हैं, सांपों को पकड़ते हैं और फिर इन्हें जंगल तक छोड़ने भी जाते हैं। अब तक हजारों सांपों को पकड़ चुके इस समिति सदस्यों का कहना है कि अगर उनकी शासन मदद करता है तो ये और बेहतर ढंग से काम कर सकते हैं।
जागरू हुए लोग
शहर में कुछ साल पहले तक लोग कहीं सांप दिखाई देने पर उसे मरवा देते थे। हर साल हजार-दो हजार सांपों को मार दिया जाता था, लेकिन नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी द्वारा चलाए जा रहे सांप बचाव अभियान के बाद लोग जागरूक हुए हैं। अब लोग सीधे इस सोसाइटी के सदस्यों को फोन कर सूचना देते हैं। शहर में कुछ समय पहले तक वन विभाग, नंदनवन प्रबंधन सांपों को पकड़ने का काम करता था।
लेकिन अब इन विभागों ने यह काम बंद कर दिया है। 'नईदुनिया' से बातचीत में समिति के सचिव मोइज अहमद ने बताया कि जब उनकी संस्था बनी तब उन्हें भी उम्मीद नहीं थी कि उनके साथ युवा जुड़ेंगे, न सिर्फ युवा जुड़े बल्कि बारिश के मौसम में तो रोजाना सोसाइटी के सदस्य सारे काम छोड़कर सिर्फ रेस्क्यू करते हैं, और हम किसी से पैसा भी नहीं लेते।
रोजाना 20 कॉल-
सोसाइटी सदस्यों के पास रोजाना 15-20 कॉल आते हैं। सोसाइटी सदस्यों ने बताया कि अगर हम कॉल अटेंट नहीं करेंगे तो लोगों का विश्वास हम पर से उठ जाएगा। और वे सांपों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देंगे। इसलिए हम निजी संसाधनों के बल पर यह काम कर रहे हैं। रोजाना 1 हजार रुपए का पेट्रोल लगता है। सांपों को पकड़कर गरियाबंद तक जंगल में छोड़ना होता है, इस काम के लिए हम अपनी बाइक या फिर किराए की गाड़ी से आते-जाते हैं। वन विभाग ने 3 लाख रुपए सांपों के सर्वे के लिए दिए थे, जबकि प्रोजेक्ट में साढ़े तीन-4 लाख रुपए लग गए। अगर मदद मिले तो हम लोग अपने इस शौक को बरकरार रख सकते हैं।
सांप डरता है-
सर्प विशेषज्ञों का कहना है कि सांप एक डरने वाला सरीसृप है, जो आहट पाते ही बिल में छिप जाता है, इसलिए अगर वह कहीं भी दिखे तो उससे डरें मत। न ही उसके साथ छेड़छाड़ करें, उसे लाठी-डंडा-पत्थर न मरें। अगर व शांत बैठा है तो उसे बैठे रहने दें और तत्काल सांप पकड़ने वालों को सूचना दें, ताकि वे उसे सुरक्षित पकड़कर जंगल में छोड़ दे।
सोसाइटी में कौन कितना पड़ा लिखा-
एमएल खान- बी.एससी एग्रीकल्चर, मोइज अहमद- बी.एससी, बीए, सूरज राव- बीई. मैकेनिकल, इंद्रप्रकाश भंडारी- बी.एससी, मोइब खान- बीजे, एमए, आजाद अहमद- बी.कॉम, इरफान-उल-हक- बीए-फर्स्ट ईयर, अंजाद रहमान- 12वीं।
कब कितने सांप पकड़े-
2012- 600, 2013- 450, 2014 (अब तक)- 350, इनमें कोबरा, रसल वाइपर, धामन जैसे जहरीले सांप शामिल हैं।
रायपुर में अगर सांप दिखाई दे तो इन नंबरों पर करें कॉल-
93033-45690, 93005-25486, 93002-34671
इस संस्था के सदस्यों में कोई मैकेनिकल इंजीनियर है तो कोई बी.एससी, बी.कॉम डिग्रीधारी। ये न सिर्फ सांपों को पकड़ते हैं, बल्कि लोगों को जागरूक भी करते हैं। समझाते हैं कि सांपों को न मारें, उन्हें दुश्मन न समझें। लेकिन इन युवाओं को इस रेस्क्यू काम के लिए कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है, ये स्वयं के पैसों से मौके तक पहुंचते हैं, सांपों को पकड़ते हैं और फिर इन्हें जंगल तक छोड़ने भी जाते हैं। अब तक हजारों सांपों को पकड़ चुके इस समिति सदस्यों का कहना है कि अगर उनकी शासन मदद करता है तो ये और बेहतर ढंग से काम कर सकते हैं।
जागरू हुए लोग
शहर में कुछ साल पहले तक लोग कहीं सांप दिखाई देने पर उसे मरवा देते थे। हर साल हजार-दो हजार सांपों को मार दिया जाता था, लेकिन नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी द्वारा चलाए जा रहे सांप बचाव अभियान के बाद लोग जागरूक हुए हैं। अब लोग सीधे इस सोसाइटी के सदस्यों को फोन कर सूचना देते हैं। शहर में कुछ समय पहले तक वन विभाग, नंदनवन प्रबंधन सांपों को पकड़ने का काम करता था।
लेकिन अब इन विभागों ने यह काम बंद कर दिया है। 'नईदुनिया' से बातचीत में समिति के सचिव मोइज अहमद ने बताया कि जब उनकी संस्था बनी तब उन्हें भी उम्मीद नहीं थी कि उनके साथ युवा जुड़ेंगे, न सिर्फ युवा जुड़े बल्कि बारिश के मौसम में तो रोजाना सोसाइटी के सदस्य सारे काम छोड़कर सिर्फ रेस्क्यू करते हैं, और हम किसी से पैसा भी नहीं लेते।
रोजाना 20 कॉल-
सोसाइटी सदस्यों के पास रोजाना 15-20 कॉल आते हैं। सोसाइटी सदस्यों ने बताया कि अगर हम कॉल अटेंट नहीं करेंगे तो लोगों का विश्वास हम पर से उठ जाएगा। और वे सांपों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देंगे। इसलिए हम निजी संसाधनों के बल पर यह काम कर रहे हैं। रोजाना 1 हजार रुपए का पेट्रोल लगता है। सांपों को पकड़कर गरियाबंद तक जंगल में छोड़ना होता है, इस काम के लिए हम अपनी बाइक या फिर किराए की गाड़ी से आते-जाते हैं। वन विभाग ने 3 लाख रुपए सांपों के सर्वे के लिए दिए थे, जबकि प्रोजेक्ट में साढ़े तीन-4 लाख रुपए लग गए। अगर मदद मिले तो हम लोग अपने इस शौक को बरकरार रख सकते हैं।
सांप डरता है-
सर्प विशेषज्ञों का कहना है कि सांप एक डरने वाला सरीसृप है, जो आहट पाते ही बिल में छिप जाता है, इसलिए अगर वह कहीं भी दिखे तो उससे डरें मत। न ही उसके साथ छेड़छाड़ करें, उसे लाठी-डंडा-पत्थर न मरें। अगर व शांत बैठा है तो उसे बैठे रहने दें और तत्काल सांप पकड़ने वालों को सूचना दें, ताकि वे उसे सुरक्षित पकड़कर जंगल में छोड़ दे।
सोसाइटी में कौन कितना पड़ा लिखा-
एमएल खान- बी.एससी एग्रीकल्चर, मोइज अहमद- बी.एससी, बीए, सूरज राव- बीई. मैकेनिकल, इंद्रप्रकाश भंडारी- बी.एससी, मोइब खान- बीजे, एमए, आजाद अहमद- बी.कॉम, इरफान-उल-हक- बीए-फर्स्ट ईयर, अंजाद रहमान- 12वीं।
कब कितने सांप पकड़े-
2012- 600, 2013- 450, 2014 (अब तक)- 350, इनमें कोबरा, रसल वाइपर, धामन जैसे जहरीले सांप शामिल हैं।
रायपुर में अगर सांप दिखाई दे तो इन नंबरों पर करें कॉल-
93033-45690, 93005-25486, 93002-34671
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