Wednesday, 6 August 2014

Mines allotment suspended

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश की सबसे बड़ी चूना खदान के आवंटन को रद्द करने के आदेश दिए हैं। यह खदान सतना के 25 वर्ग किलोमीटर दायरे में बिरला कार्पोरेशन की कंपनी तलवंडी सीमेंट को आवंटित की गई थी, जिसके खिलाफ आदित्य बिरला ग्रुप की समूह अल्ट्राटेक सीमेंट कंपनी ने हाईकोर्ट की शरण ली थी।

मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर व जस्टिस आलोक आराधे की युगलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने रखा। उन्होंने दलील दी कि खान एवं खनिज अधिनियम की धारा-11 (3) की सहपठित धारा-35 में दी गई आवश्यक कानूनी बाध्यताओं को ताक पर रखकर इतना बड़ा लीज क्षेत्र आवंटित कर दिया गया। चूंकि यह आवंटन सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश को नजरअंदाज कर किया गया है, इसलिए रद्द किए जाने योग्य है।

पूर्व खनिज मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने किया था आवंटन

बहस के दौरान बताया गया कि सितम्बर 2008 में सतना के रामपुर बघेलान गांव में तत्कालीन खनिज मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा द्वारा 20 से अधिक आवेदनों पर सुनवाई की गई और तलवंडी सीमेंट को महज इस आधार पर चूना खदान आवंटित कर दी गई कि वह अपनी पैतृक कंपनी बिरला कार्पोरेशन के साथ सामंजस्य में सीमेंट उद्योग स्थापित करेगी। इस बिंदु को ध्यान में रखते हुए बाकी के सभी आवेदकों की मैरिट को दरकिनार कर दिया गया। इस संबंध में ठोस कारण नहीं बताया गया।

आपत्तियों की अनदेखी कर मनमाना आदेश-

हाईकोर्ट को बताया गया कि खनिज मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने सुनवाई के एक साल बाद खदान आवंटन का विधिवत आदेश जारी किया और इससे पहले के अन्य आदेवकों की लिखित आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया। रोचक यह है कि खनिज विभाग ने ही आपत्तियां मंगाई थीं। इस तथ्य पर गौर नहीं किया गया कि तलवंडी सीमेंट के पास खनिज दोहन का अनुभव, उद्योग स्थापित करने की योग्यता व पूंजी और सक्षम अधिकारी व कर्मचारी हैं कि नहीं?

तीन माह में नए सिरे से करें आवंटन- हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर गौर करने के बाद खदान आवंटन को विधि-विरुद्ध पाकर रद्द कर दिया। खनिज विभाग को निर्देश दिया कि वह तीन माह के भीतर नए सिरे से सभी पक्षों को सुनवाई का समुचित अवसर देकर खदान आवंटन सुनिश्चित करे।

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