Monday, 4 August 2014

200 corer of crop insurance in pocket of insurance companies

- 40 फीसद से अधिक बारिश पर क्षतिपूर्ति नहीं देंगी कंपनियां

नईदुनिया एक्सक्लूसिव, रायपुर (ब्यूरो)। फसल आधारित बीमा में किसानों की मेहनत की कमाई की 200 करोड़ रु. से अधिक की राशि निजी बीमा कंपनियों की जेब में जाने वाली है। ऐसा सरकार से कृषि ऋण लेने वाले किसानों पर जबरिया लादी गई फसल बीमा योजना की वजह से होने वाला है। इस बात को लेकर किसान खासे चिंतित हैं कि उन्हें बीमा की शर्तों के हिसाब से क्षतिपूर्ति नहीं मिलने वाली। इसके बावजूद ऋण लेते ही उनके खाते से एक हजार रु. प्रति हेक्टेयर की दर से मौसम आधारित बीमा की प्रीमियम राशि निकाली जा रही है।

राज्य सरकार ने 31 जुलाई की स्थिति में प्रदेश के आठ लाख से अधिक किसानों को 1900 करोड़ रु. से अधिक का ऋण बांटा है। 2 लाख से अधिक किसानों को और ऋण बांटा जाएगा। यह कर्ज खाद, बीज और कीटनाशक खरीदने के लिए दिया गया है। किसानों की शिकायत है कि ऋण के साथ ही फसल बीमा की किस्त एक हजार रु.प्रति हेक्टेयर की दर से उनके खाते से काटी जा रही है।

ऐसा मौसम आधारित फसल बीमा के लिए किया जा रहा है। फसल बीमा की शर्तों के मुताबिक किसी भी क्षेत्र में 40 फीसद से अधिक बारिश होने पर वे कोई क्षतिपूर्ति नहीं देंगे, जबकि प्रदेश के 22 जिलों में 80 फीसद से अधिक बारिश हो चुकी है। अन्य जिलों में 60 फीसद से अधिक यानी साफ है कि उनके खाते से प्रीमियम काटे जाने के बाद तय है कि उन्हें नुकसान होने के बावजूद क्षतिपूर्ति नहीं मिलेगी।

अतिवृष्टि का डर दिखा रहे

प्रदेश के वरिष्ठ कृषक नेताओं ने इस बीमा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। वे लगातार किसानों से बीमा नहीं कराने की सलाह दे रहे हैं। इसके बावजूद उनके खातों से प्रीमियम की राशि काटी जा रही है। विरोध करने पर अब अतिवृष्टि का डर दिखाया जा रहा है। किसानों का कहना है कि जैसे-तैसे प्रदेश सूखे से उबरा है। ऐसे में अतिवृष्टि के लिए केवल बीमा कराया जाए, जिसकी क्षतिपूर्ति कंपनी के नियमों के मुताबिक अधिकतम 2000 तक मिलेगी।

प्रयोग के रूप में देख रहे हैं

'यह योजना प्रयोग के तौर पर लाई गई है। किसानों को होने वाले नुकसान की ठीक तरह से भरपाई नहीं हुई तो योजना बदली जाएगी। बीमा करने वाली सभी कंपनियां केंद्र सरकार से मान्यता प्राप्त हैं। कंपनियां रिस्क कवरेज के लिए इंश्योरेंस कर रही हैं। उनके क्राइटेरिया में आएगा तो वे जरूर इसका रिस्क कवरेज देंगी। ऋण के साथ इसे इसलिए अनिवार्य किया गया है, क्योंकि ऋण देने वाली संस्था चाहेगी कि नुकसान होने पर उसका रिस्क न रहे।' -बृजमोहन अग्रवाल, कृषि मंत्री

एफआईआर कराएं किसान

'फसल बीमा अनिवार्य करके सरकार निजी कंपनियों को सीधे फायदा पहुंचा रही है। किसी भी किसान के खाते से बगैर उसकी मर्जी के रकम निकालना रिजर्व बैंक आफ इंडिया के नियमों के खिलाफ है। किसानों को इसका विरोध करना चाहिए। विरोध के बावजूद अगर राशि काटी जाती है तो प्रबंधक के खिलाफ किसानों को एफआईआर करानी चाहिए।"

-धनेंद्र साहू, कृषक नेता व विधायक, अभनपुर

किसानों पर छोड़ें फैसला

- निजी क्षेत्रों ने जो बीमा की शर्तें हैं, उन्हें देखकर तो नहीं लगता कि इससे किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई पर्याप्त हो सकेगी। यह काम सरकार को अपने हाथ में लेना चाहिए। जहां तक मौसम आधारित फसल बीमा का सवाल है तो वर्तमान में इतनी बारिश हो चुकी है कि बीमा की शर्तों के मुताबिक किसानों को प्रीमियम जमा करने के बावजूद क्षतिपूर्ति नहीं मिलेगी। ऐसी पॉलिसी को अनिवार्य करने के बजाय सरकार बीमा कराने का फैसला किसानों पर छोड़ देना चाहिए।

-जेएल भारद्वाज, अर्थशास्त्री

फैक्ट फाइल

छग में फसल बीमा- 10 लाख किसानों का

बीमा का प्रीमियम - 2000 स्र्पए प्रति हेक्टेयर

कुल राशि- 200 करोड़ रु. कंपनियों के खाते में

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