विशेषज्ञों का कहना है कि नाले के पानी से उगाए गए फल और सब्जियों में कई हानिकारक तत्व पाए जाते हैं। जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। तमाम वैज्ञानिक जांचे भी इस बात को पुष्ट करती हैं। लेकिन हैरत की बात है कि राजधानी में जहरीले सीवेज के पानी से उगाई जा रहीं सब्जियां और फल 'पौष्टिक' हैं!
ये हम नहीं कह रहे बल्कि, खाद्य एवं औषधि प्रशासन की रिपोर्ट इसकी पुष्टि कर रही है, जिसमें सीवेज फार्मिंग से लिए गए फल और सब्जियों के सभी 37 नमूने पास हो गए हैं। जाहिर है इससे खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा सीवेज फार्मिंग के खिलाफ की गई कार्रवाई और जांच पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। इधर, राजधानी में सीवेज के पानी से खेती बदस्तूर जारी है।
जानकारी के मुताबिक खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने प्रत्येक सैंपल की जांच के लिए एक हजार रुपए भुगतान किया। इस तरह करीब 37 हजार रुपए खर्च कर एक भी फल व सब्जी विक्रेता के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाई। मानकों के अनुसार खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा लिए गए कुल सैंपल में से करीब 8 से 10 प्रतिशत सैंपल फेल होने चाहिए, लेकिन सीवेज फार्मिंग वाला एक भी सैंपल फेल नहीं हुआ।
इनका कहना है
अगर सभी सैंपल पास हुए हैं, तो इसमें खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा की गई सैपलिंग प्रक्रिया को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। शासन के निर्देशानुसार आगे भी फलों व सब्जियों की सैंपलिंग की जाएगी।
डॉ. पंकज शुक्ला, जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी, भोपाल
सीवेज से उगाई गई सब्जियों में कुछ ऐसे तत्व होते हैं, जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए इन सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए। प्रशासन को इस मामले में गंभीरता से कार्रवाई करनी चाहिए।
-बीएमएस तोमर, पूर्व संयुक्त संचालक, कृषि विभाग
उल्लेखनीय है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जिला प्रशासन को निर्देश दिए थे कि सीवेज के पानी से उगाई जा रही सब्जियों पर कार्रवाई की जाए। इसके बाद खाद्य सुरक्षा अधिकारियों ने बावड़िया कलां, कोच फैक्ट्री व पातरा नदी के किनारे स्थित खेतों से सैंपल लिए थे।
इसके अलावा विभिन्न जगहों से फल व फलों के जूस के सैंपल भी लिए गए थे। खाद्य एवं औषधि प्रशासन की खाद्य प्रयोगशाला में फलों व सब्जियों के सैंपल की जांच की व्यवस्था नहीं है। इसके चलते इंदौर की एक निजी लैब से अनुबंध कर नमूनों की जांच कराई गई। प्रत्येक नमूने के लिए एक हजार रुपए दिए गए।
ये हम नहीं कह रहे बल्कि, खाद्य एवं औषधि प्रशासन की रिपोर्ट इसकी पुष्टि कर रही है, जिसमें सीवेज फार्मिंग से लिए गए फल और सब्जियों के सभी 37 नमूने पास हो गए हैं। जाहिर है इससे खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा सीवेज फार्मिंग के खिलाफ की गई कार्रवाई और जांच पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। इधर, राजधानी में सीवेज के पानी से खेती बदस्तूर जारी है।
जानकारी के मुताबिक खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने प्रत्येक सैंपल की जांच के लिए एक हजार रुपए भुगतान किया। इस तरह करीब 37 हजार रुपए खर्च कर एक भी फल व सब्जी विक्रेता के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाई। मानकों के अनुसार खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा लिए गए कुल सैंपल में से करीब 8 से 10 प्रतिशत सैंपल फेल होने चाहिए, लेकिन सीवेज फार्मिंग वाला एक भी सैंपल फेल नहीं हुआ।
इनका कहना है
अगर सभी सैंपल पास हुए हैं, तो इसमें खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा की गई सैपलिंग प्रक्रिया को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। शासन के निर्देशानुसार आगे भी फलों व सब्जियों की सैंपलिंग की जाएगी।
डॉ. पंकज शुक्ला, जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी, भोपाल
सीवेज से उगाई गई सब्जियों में कुछ ऐसे तत्व होते हैं, जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए इन सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए। प्रशासन को इस मामले में गंभीरता से कार्रवाई करनी चाहिए।
-बीएमएस तोमर, पूर्व संयुक्त संचालक, कृषि विभाग
उल्लेखनीय है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जिला प्रशासन को निर्देश दिए थे कि सीवेज के पानी से उगाई जा रही सब्जियों पर कार्रवाई की जाए। इसके बाद खाद्य सुरक्षा अधिकारियों ने बावड़िया कलां, कोच फैक्ट्री व पातरा नदी के किनारे स्थित खेतों से सैंपल लिए थे।
इसके अलावा विभिन्न जगहों से फल व फलों के जूस के सैंपल भी लिए गए थे। खाद्य एवं औषधि प्रशासन की खाद्य प्रयोगशाला में फलों व सब्जियों के सैंपल की जांच की व्यवस्था नहीं है। इसके चलते इंदौर की एक निजी लैब से अनुबंध कर नमूनों की जांच कराई गई। प्रत्येक नमूने के लिए एक हजार रुपए दिए गए।
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