Monday 14 July 2014

Find something like this in mind the mind

ध्यान में एकाग्रता नहीं है तो उसका कारण है कि ध्यान के प्रति आपकी प्यास में कुछ कमी है। प्रेम जैसी लगन ध्यान में भी होना चाहिए केवल तभी आप आध्यात्मिक उत्कर्ष की राह पर बढ़ पाएंगे। जब तक आप ध्यान के लिए प्रयास नहीं करते तब तक उसमें मन नहीं लगेगा।

आध्यात्मिक राह पर आगे

बढ़ने वाले के मन में कुछ जिज्ञासाएं उठती ही हैं। जैसे मन में यह शिकायत रहती है कि बहुत समय, ऊर्जा और संसाधन खर्च करने के बावजूद मन अभी भी भटकता है और हमेशा की तरह ही अनुशासनहीन बना हुआ है। जान लीजिए कि यह इसी वजह से हो रहा है क्योंकि आपके भीतर कहीं गहरे में सांसारिक चीजों के प्रति अधिक आकर्षण मौजूद है।

अभी भी आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्यास उस तरह नहीं जगी है जैसे जगना चाहिए। अभी भी इस दुनिया में जो कुछ भी तथाकथित आकर्षण और चमक है- जैसे धन, सत्ता, रुतबा, तरक्की, संबंध और अन्य सभी चीजें वे ही जीवन के सबसे बड़े लक्ष्य नजर आते हैं।

ये ही चीजें हैं जिनके लिए आदमी मेहनत करता है, जिनके पीछे भागता है और जिन्हें हर कीमत पर पाना चाहता है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि दिमाग इन्हीं चीजों को पाने, इनसे जुड़े व्यक्तियों और पक्षों के बारे में विचार करे। इसका आशय यही है कि किसी भी व्यक्ति ने अपने जीवन की प्राथमिकताएं तय कर रखी हैं और दिमाग उन्हीं चीजों को पाने के पीछे दौड़ता है।

अब जब ध्यान आपकी प्राथमिकता में ही नहीं है तो इसे आप दूसरे दर्जे पर रखेंगे और आपके लक्ष्य ज्यादा महत्वपूर्ण नजर आएंगे। इन्हीं स्थितियों में एक व्यक्ति शिकायत करता है, 'मैं क्यों ध्यान के लिए नहीं बैठ पा रहा हूं?" - यह इसी कारण है कि आपने उसे प्राथमिकता में नहीं रखा।

एक उदाहरण के साथ इस बात को समझते हैं। एक पुरुष किसी महिला से प्रेम करने लगता है। वह ऐसी स्थितियां बनाता है या ऐसे उपाय करता है जिससे कि वह अपनी प्रेमिका से मिल सके। सोचकर बताइए कि उसे ऐसे उपाय कौन सुझाता है? यह चाह ही होती है जो उसके मन को उस ओर ले जाती है।

तब जीवन में काम भी है, परिवार भी है और अन्य संबंध भी हैं लेकिन उसका ध्यान प्रेमिका की ओर रहता ही है। वह उसे रिझाने के लिए हरसंभव प्रयास करता है। जब तक ध्यान के लिए ऐसी लगन नहीं हो तब तक ध्यान लगता नहीं। संस्कारों के कारण, दूसरों के विचारों के प्रभाव से, अज्ञात के भय से कोई व्यक्ति अध्यात्म के पथ पर चलने, ध्यान करने का निर्णय तो ले लेता है लेकिन यह सब वह बिना किसी चाह के करता है। तात्पर्य यही है कि जब आपमें उसके प्रति ललक नहीं है तो आप ध्यान कैसे कर पाएंगे।

जिस तरह दुनिया के अन्य आकर्षणों की तरफ ध्यान देना पड़ता है उसी तरह क्या ध्यान के प्रति भी उत्सुकता नहीं होना चाहिए? अगर कोई व्यक्ति प्रेम संबंधों में समय और ऊष्मा का निवेश नहीं करेगा तो क्या वे चलेंगे? शायद बिलकुल नहीं। अगर आप गिफ्ट, फूल, डिनर, चॉकलेट और समय नहीं देंगे तो संबंध ज्यादा चलेगा नहीं। जब संबंधों के लिए इतना करना पड़ता है तो आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए इससे सौ गुना प्रयास करना होते हैं।

इसे एक और उदाहरण के साथ समझा जा सकता है। अगर आप अपने बॉस की बात नहीं सुनते हैं या अपना प्रोजेक्ट समय पर शुरू नहीं करते हैं तो आपका बॉस आपसे नाराज हो सकता है और आपकी नौकरी जा भी सकती है। इसलिए बॉस आपकी प्राथमिकता है। इसी तरह जिस दिन गुरु के कहे शब्द आपकी प्राथमिकता बन जाएंगे तो आप ध्यान की ओर उन्मुख हो सकेंगे।

आध्यात्मिक राह को सम्मान और श्रद्धा देना जरूरी है तभी आप अपना समय उस पर खर्च करेंगे। भले ही आपकी व्यस्त दिनचर्या में आधा घंटा ही ऐसा हो लेकिन जब इतना समय भी होगा तो आप उसके हर सेकंड को अनुभूत कर पाएंगे। आप किसी और को उस समय में व्यवधान पैदा नहीं करने देंगे।

यह समय आपके लिए होगा और आपके उत्कर्ष के लिए। यह आपकी शांति के लिए होगा और आपकी चिंता से मुक्ति के लिए। इसी समय की तलाश में हम सभी रहते हैं।

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