Friday 11 July 2014

Guru purnima is a festival to honor

भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से ही गुरु को आदर-सम्मान देने की परंपरा रही है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना जाता है।

'आचार्य देवोभव:" का स्पष्ट अनुदेश भारत की पुनीत परंपरा है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में गुरु को भी भगवान की तरह सम्मानजनक स्थान दिया गया है। गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को यह विशेष पर्व मनाया जाता है। गुरु अपने आपमें पूर्ण होते हैं। अत: पूर्णिमा को उनकी पूजा का विधान स्वाभाविक है।

पथ प्रदर्शक हैं गुरु

आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी होती है। ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के बाद सभी देवी-देवता चार मास के लिए सो जाते हैं। इसलिए देवशयनी एकादशी के बाद पथ प्रदर्शक गुरु की शरण में जाना आवश्यक हो जाता है। परमात्मा की ओर संकेत करने वाले गुरु ही होते हैं।

इसीलिए गुरु की छत्रछाया से निकले कपिल, कणाद, गौतम, पाणिनी जैसे विद्वान ऋषि आदि अपनी विद्या वैभव के लिए आज भी संसार में प्रसिद्ध हैं। गुरुओं के शांत पवित्र आश्रम में बैठकर अध्ययन करने वाले शिष्यों की बुद्धि भी वहां के वातावरण के अनुकूल उज्जवल और उदात्त हुआ करती थी। तब सादा जीवन, उच्च विचार गुरुजनों का मूल मंत्र था। तप और त्याग ही उनका पवित्र ध्येय था। लोकहित के लिए अपने जीवन का बलिदान कर देना ही उनकी शिक्षा का आदर्श होता था।

श्रीकृष्ण हैं जगत् गुरु

धर्मग्रंथों में गुरु शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा गया है कि जो शिष्य के कानों में ज्ञान रूपी अमृत का सिंचन करे और उन्हें धर्म का मार्ग दिखाए वही गुरु है। यह जरूरी नहीं है कि हम किसी व्यक्ति को ही अपना गुरु बनाएं। योग दर्शन नामक पुस्तक में भगवान श्रीकृष्ण को जगत्गुरु कहा गया है, क्योंकि महाभारत युद्ध के दौरान उन्होंने अर्जुन को कर्मयोग का उपदेश दिया था।

व्रत का विधान

इसी उदात्त परंपरा की याद दिलाने के लिए प्रत्येक वर्ष आषाढ़ी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन प्रात:काल शांत चित्त से अपने गुरु का स्मरण करते हुए गुरु पूर्णिमा व्रत का संकल्प करें। इस दिन अपने गुरुु के पास जाकर उनका अर्चन, वंदन और सम्मान करना चाहिए।

इस दिन अपने गुरु से आशीर्वाद, उपदेश और भविष्य के लिए निर्देश ग्रहण करना चाहिए। यदि गुरु दूर रहते हों, दिवंगत हों या आपने भगवान को ही अपना गुरु मान लिया हो तो उनके चित्र या पादुका (खड़ाऊं) को उच्च स्थान पर रखकर, लाल, पीले और सफेद कपड़े को बिछाकर स्थापित करें, लाल स्नेह, पीला समृद्धि और श्वेत शांति का प्रतीक है। ये तीनों ही जीवन में परम आवश्यक है। गुरु के चित्र या पादुका का धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, चंदन, नैवेद्म आदि से पूजन करें। गुरु स्रोत का पाठ करें और श्रद्धापूर्वक गुरु का स्मरण करें।

वेद व्यास ने वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन किया है। इसलिए वेद व्यासजी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वेद व्यासजी का जन्म भी इसी दिन हुआ था। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। आज के दिन व्यासजी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का भी अध्ययन करना चाहिए।

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