हिमाचल प्रदेश एवं उसके निकटवर्ती जनपदों में भगवान गुग्गा की पूजा की परंपरा है। गुग्गा को ही मुण्डलीक के नाम से पूजा जाता है।
कहते हैं युद्ध में गुग्गा अपने शत्रु से बिना सिर के भी बहुत देर तक लड़ते रहे। चंबा जनपद में गुग्गा का यही प्रतीत ज्यादा लोकप्रिय है। लोककवि, जो गुग्गा राणा की यशगाथा गाते हैं उन्हें नाथ के नाम से पुकारते हैं।
दरअसल पश्चिमी हिमाचल क्षेत्र में गुग्गा संप्रदाय के देवतातुल्य राणा गुग्गामल की पूजा की जाती है। हिमाचल प्रदेश के पूर्वोत्तर भाग में गुग्गा को विशेष मान्यता है। सर्पदंश से बचाव के लिए लगो गुग्गा की पूजा करते हैं। गुग्गा राणा की प्रतिमा कई गांवों में स्थापित की गई है।
उनके वजीर नरसिंह और दो सहायक भजनू और रत्नू की प्रतिमाएं गुग्गा के दोनों तरफ रखी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि गुग्गा राणा, नीला घोड़ा, मंत्री नरसिंह, निकट सहयोगीी भजनू और रत्नू का जन्म एक ही दिन, गुरु गोरखनाथ की कृपा से हुआ था। उन्हें पांच वीर के नाम से भी जाना जाता है।
गुग्गा संप्रदाय की परंपरा हिमाचल प्रदेश में बहुत पुरानी नहीं है। इस संप्रदाय का विस्तार लगभग सत्रहवीं शताब्दी के आसपास राजपूत प्रभाव के साथ-साथ राजस्थान के इस पहाड़ी क्षेत्र की ओर बढ़ा, जिसका प्रभाव आज भी विशेषकर चंबा, बिलासपुर, कांगड़ा, मंडी, सोलन, सिरमौर क्षेत्र तक विद्यमान है।
कहते हैं युद्ध में गुग्गा अपने शत्रु से बिना सिर के भी बहुत देर तक लड़ते रहे। चंबा जनपद में गुग्गा का यही प्रतीत ज्यादा लोकप्रिय है। लोककवि, जो गुग्गा राणा की यशगाथा गाते हैं उन्हें नाथ के नाम से पुकारते हैं।
दरअसल पश्चिमी हिमाचल क्षेत्र में गुग्गा संप्रदाय के देवतातुल्य राणा गुग्गामल की पूजा की जाती है। हिमाचल प्रदेश के पूर्वोत्तर भाग में गुग्गा को विशेष मान्यता है। सर्पदंश से बचाव के लिए लगो गुग्गा की पूजा करते हैं। गुग्गा राणा की प्रतिमा कई गांवों में स्थापित की गई है।
उनके वजीर नरसिंह और दो सहायक भजनू और रत्नू की प्रतिमाएं गुग्गा के दोनों तरफ रखी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि गुग्गा राणा, नीला घोड़ा, मंत्री नरसिंह, निकट सहयोगीी भजनू और रत्नू का जन्म एक ही दिन, गुरु गोरखनाथ की कृपा से हुआ था। उन्हें पांच वीर के नाम से भी जाना जाता है।
गुग्गा संप्रदाय की परंपरा हिमाचल प्रदेश में बहुत पुरानी नहीं है। इस संप्रदाय का विस्तार लगभग सत्रहवीं शताब्दी के आसपास राजपूत प्रभाव के साथ-साथ राजस्थान के इस पहाड़ी क्षेत्र की ओर बढ़ा, जिसका प्रभाव आज भी विशेषकर चंबा, बिलासपुर, कांगड़ा, मंडी, सोलन, सिरमौर क्षेत्र तक विद्यमान है।
Source: Spiritual Hindi News & Horoscope 2014

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